‘मित्रता’ जैसा पवित्र शब्द कुछ नहीं। सच्चे मित्र एक दूसरे के लिए जान देने को तैयार होते हैं। पर मित्रता को इस स्तर तक ले जाने के लिए वर्षों तक एक दूसरे के प्रति विश्वास की आवश्यकता होती है। जहां एक के मन दूसरे के प्रति विश्वास डगमग हुआ कि दोनो के मन में क्रमश: अविश्वास हावी होता चला जाएगा और मित्र की भावना को सही सही समझना मुश्किल होगा। वैसे तो बहुत से स्थान में ऐसी मित्रता कुछ दिनों बाद शत्रुता में भी बदल जाती है , पर यदि ऐसा न भी हो , तब भी अविश्वास के स्तर तक पहुंचने के बाद ‘मित्र’ का भला क्या मतलब ??
इसी प्रकार एक डॉक्टर के प्रति मरीज का विश्वास दवा के प्रभाव में बढोत्तरी लाता है। अपने पसंदीदा डॉक्टर के पास जाकर छोटे मोटे मरीजों के बिना दवा के भी ठीक हो जाने की खबर बहुतों ने सुनी होगी , पर कभी कभी गंभीर बीमारियों के मरीजों का भी उल्लेखनीय प्रगति डॉक्टरों को आश्चिर्यत करने पर मजबूर कर देती है। वास्तव में अपने जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण और खुद पर भरोसा भी हमारी बीमारी को ठीक करने में बहुत मदद करता है। यहां तक कि जहां समाज में शेयर बाजार के चक्कर में अपना घर बार पूंजी समाप्त कर देने की कितनी घटनाएं देखने को मिलती हैं , वहीं शेयर बाजार में लाभ कमाते हुए आनंद प्राप्त करनेवालों की भी दनिया में कमी नहीं। आखिर विश्वासियों के बल पर ही तो दुनिया में एक एक चीज का अस्तित्व है। गुरू के प्रति विश्वास न हो तो क्या उसके द्वारा दिए जा रहे ज्ञान को हम ग्रहण करने की योग्यता रख सकते हैं ??
ठीक इसी प्रकार की बात पति पत्नी के मध्य उपस्थित होती है। एक दूसरे के लिए अपने जीवन का तन , मन और धन को समर्पित कर अपनी आने वाली पीढी के शारिरीक, मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए बनाएब गए कार्यक्रमों को अंजाम देने में चाहे कितने भी क्यूं न थक जाएं , पर इसके बाद भी उनका जीवन स्वर्ग बना होता है। पर जहां दोनो के विचारों में टकराव हुआ या उनके मध्य संदेह का जन्म हुआ , तो फिर उनके जीवन के नरक बनते भी देर नहीं लगती। ‘हम’ की जगी ‘मैं’ और ‘तुम’ के हावी होने से ऐसा होने से वैवाहिक जीवन का अर्थ ही बदल जाता है। इस प्रकार पारिवारिक जीवन के सुख को प्राप्त करने में भी विश्वास एक बडी शक्ति होती है। क्या ‘अहं’ के हावी होने के बाद पति पत्नी का रिश्ता सुदृढ हो सकता है ??
चाहे ग्रहों के पृथ्वी पर पडने वाले प्रभाव की वास्तविकता की चर्चा की जाए या खुद को ईश्वर में आत्मसात करने की , ‘संदेह’ बडा हानिकारक होता है। आध्यात्मिक तौर पर मजबूती प्राप्त करने के लिए प्रकृति के नियमों और ईश्वर पर भरोसा करना बहुत आवश्यक है। इतने बडे ब्रह्मांड में जहां इतने विशालकाय पिंड एक निश्चित नियम के हिसाब से गति कर रहे हो , किसी व्यक्ति द्वारा अपने कर्म और अपनी सफलता पर खुद का गुमान करना अच्छी बात नहीं। किसी व्यक्ति ने अपनी जिन विशेषताओं के बल पर उपलब्धि हासिल की , वह प्रकृति की ओर से उसे वरदानस्वरूप प्राप्त थी , इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। यदि प्रकृति का सहयोग न मिले, तो सारा कार्यक्रम निबटने के बाद अंतिम क्षण में परिणाम के वक्त भी गडबडी आ सकती है,बस इन दोनो बातों को स्वीकारना ही आध्यात्म की ओर जाने का पहला कदम है। हम अपने ‘अहं’ का त्याग किए बिना प्रकृति का निर्माण करने वाले पर शक करते रहे , तो क्या हमें आध्यात्मिक सुख मिल सकता है ??
ज्योतिष की जानकारी देने के क्रम में किसी प्रकार के अन्य आलेख लिखने में बाधा हो रही थी , इसलिए एक नया ब्लॉग बना लिया है , इसके पुराने सारे लेखों को भी वहीं ले गयी हूं , पता है ....
आध्यात्मिक सुख की ओर बढने का पहला कदम
Reviewed by संगीता पुरी
on
6/24/2010
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11 टिप्पणियां:
विशवास पर ही तो आस्था टिकी है ।
बहुत अच्छी रचना
आप सही कह रही है कि हम नाहक ही स्वयं पर गुमान करते हैं। यदि आध्यात्म की ओर बढ़े अर्थात स्वयं की आत्मा को जानने का प्रयास हो तब मालूम पडता है कि हमारी सारी ही उपलब्धियों में पता नहीं कितने लोग और वातावरण सहयोगी होते हैं। बढिया पोस्ट बधाई।
विशवास पर ही तो आस्था टिकी है ।
विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।
बहुत हू अच्छी बात बताई आप ने धन्यवाद
"ज्योतिष की जानकारी देने के क्रम में किसी प्रकार के अन्य आलेख लिखने में बाधा हो रही थी , इसलिए एक नया ब्लॉग बना लिया है , इसके पुराने सारे लेखों को भी वहीं ले गयी हूं , पता है ....
http://jyotishsikhe.blogspot.com"
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यह अच्छा किया!
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बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
विश्वास है तो सब कुछ है, मूल है यह जीवन का।
और भी बहुत सी बातें सीखने को मिली आपकी पोस्ट से, बहुत ही प्रभावी !!
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सटीक मार्गदर्शन करता आलेख....अच्छा लगा
binu vishwah bhagati nahi....
bina vishwas to kuchh bhi nahi..
मित्रता , पति पत्नी के सम्बन्ध और डॉक्टर मरीज़ के संबंधों पर बढ़िया आलेख लिखा है संगीता जी । निसंदेह , संदेह रिश्तों में दरार उत्पन्न कर देता है ।
अच्छा लगा पढ़कर ।
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