books on jyotish shastra
(Jyotish books pdf)
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में मेरे और पिताजी के लेखों को देखते हुए 'गत्यात्मक ज्योतिष' को जानने की इच्छा रखने वाले अनेक पाठकों के पत्र मुझे मिलते रहे हैं। उनकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए 1991 से ही विभिन्न ज्योतिषीय पत्र पत्रिकाओं में मेरे आलेख प्रकाशित होने शुरू हो गए और दिसंबर 1996 मे ही मेरी पुस्तक ‘गत्यात्मक ज्योतिष: ग्रहों का प्रभाव’ प्रकाशित होकर आ गयी थी । पर मेरे द्वारा पत्र पत्रिकाओं में ज्योतिष से संबंधित जितने भी लेख छपे , वो सामान्य पाठकों के लिए न होकर ज्योतिषियों के लिए थे। यहां तक कि मेरी पुस्तक भी उन पाठकों के लिए थी ,जो पहले से ज्योतिष का ज्ञान रखते थे। इसे पाठकों का इतना समर्थन प्राप्त हुआ था कि प्रकाशक को शीघ्र ही 1999 में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित करना पडा।
कुछ वर्ष पूर्व ही प्रकाशक महोदय का पत्र तीसरे संस्करण के लिए भी मिला था , जिसकी स्वीकृति मैने उन्हें नहीं दी थी। इसलिए छह महीने पूर्व तक यत्र तत्र बाजार में मेरी पुस्तकें उपलब्ध थी , पर इधर बाजार में मेरी पुस्तक नहीं मिल रही है। इसलिए आम पाठकों को यह जानकारी दे दूं कि मेरे पास इस पुस्तक की प्रतियां उपलब्ध हैं ...
Jyotish books pdf - 'गत्यात्मक ज्योतिष' आधारित धारणा पर संगीता पुरी की ई-पुस्तकों को प्राप्त करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें!
हर घर में रखने और पढने लायक इस पुस्तक ‘फलित ज्योतिष कितना सच कितना झूठ’ के लेखक श्री विद्या सागर महथा जी हैं। ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ को स्थापित करने का पूरा श्रेय अपने माता पिता को देते हुए ये लिखते हैं, ‘‘मेरी माताजी सदैव भाग्य और भगवान पर भरोसा करती थी। मेरे पिताजी निडर और न्यायप्रिय थे। दोनों के व्यक्तित्व का संयुक्त प्रभाव मुझपर पड़ा।’’
ज्योतिष के प्रति पूर्ण विश्वास रखते हुए भी इन्होने प्रस्तावना या भूमिका लिखने के क्रम में उन सैकडों कमजोर मुद्दों को एक साथ उठाया है, जो विवादास्पद हैं , जैसे ‘‘ज्योतिष और अन्य विधाएं परंपरागत ढंग से जिन रहस्यों का उद्घाटन करते हैं, उनके कुछ अंश सत्य तो कुछ भ्रमित करनेवाली पहेली जैसे होते हैं।’’
इस पुस्तक के लिए परम दार्शनिक गोंडलगच्छ शिरोमणी श्री श्री जयंत मुनिजी महाराज के मंगल संदेश ‘‘यह महाग्रंथ व्यापक होकर विश्व को एक सही संदेश दे सके ऐसा ईश्वर के चरणों में प्रार्थना करके हम पुनः आशीर्वाद प्रदान कर रहे है।’’ को प्रकाशित करने के साथ साथ ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के कुछ प्रेमियों के आर्शीवचन, प्रोत्साहन और प्रशंसा के पत्रों को भी ससम्मान स्थान दिया गया है।
ज्योतिष विशेषज्ञों के साथ ही साथ आम पाठकों के लिए भी पठनीय श्री विद्या सागर महथा जी की यह पुस्तक ‘फलित ज्योतिष सच या झूठ’ आस्थावान लोगों के लिए आस्था से विज्ञान तक का सफर तय करवाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोणवालों के लिए तो इसके हर पाठ में विज्ञान ही है। समाज में मौजूद हर तरह के भ्रमों और तथ्यों की चर्चा करते हुए इन्हें 31 शीर्षकों के अंतर्गत 208 पन्नों और 72228 शब्दों में बिल्कुल सरल भाषा में rखा गया है। राहु और केतु को ग्रह न मानते हुए चंद्र से शनि तक के आसमान के 7 ग्रहों के 21 प्रकार की स्थिति और उसके फलाफल को चित्र द्वारा समझाया गया है, ताकि इस पुस्तक को समझने के लिए ज्योतिषीय ज्ञान की आवश्यकता न पडे।
चाहे समाज में प्रचलित ‘वार’ से फलित कथन हो या यात्रा करने का योग, शकुन, मुहूर्त्त हो या नजर का असर जैसे अंधविश्वास हो, इस पुस्तक में इन्होने जमकर चोट की है ... ‘‘मैने मंगलवार का दिन इसलिए चयन किया क्योंकि इस दिन अंधविश्वास के चक्कर में पड़ने से लोगों की भीड़ तुम्हारे पास नहीं होती और इसलिए तुम फुर्सत में होते हो।’’
हस्तरेखा, हस्ताक्षर विज्ञान, न्यूमरोलोजी, वास्तुशास्त्र, प्रश्नकुंडली जैसी विधाएं ज्योतिष के समानांतर नहीं हो सकती ........ ‘‘वास्तुशास्त्र में उल्लिखित सभी नियमों या सूत्रों का प्रतिपादन जिस काल में हुआ था, उस काल के लिए वे प्रासंगिक थे’
राहु, केतु, कुंडली मेलापक, राजयोग और विंशोत्तरी पद्धति जैसे सभी अवैज्ञानिक तथ्यों का इस पुस्तक में विरोध किया गया है ....
‘‘अधिकांश राजयोगों की गाणितिक व्याख्या के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इस प्रकार के योग बहुत सारे कुंडलियों में भरे पड़े हैं, जिनका कोई विशेष अर्थ नहीं है।’’
इन्होने इस पुस्तक में अपनी खोज ‘गत्यात्मक दशा पद्धति’ का परिचय आसमान की विभिन्न स्थिति के ग्रहों के सापेक्ष चित्र बनाकर समझाया है .... ‘‘हम सभी यह जानते हैं कि बाल्यावस्था या शैशवकाल कुल मिलाकर भोलेपन का काल होता है और उसके भोलेपन का कारण निश्चित रुप से चंद्रमा होता है।’’
वास्तव में, बुरे ग्रहों का प्रभाव क्या है, कैसे पडता है हमपर , ज्योतिष के महत्व की चर्चा करते हुए ये लिखते हैं ....‘‘प्रकृति के नियमों के अनुसार ही हमारे शरीर, मन और मस्तिष्क में विद्युत तरंगें बदलती रहती है और इसी के अनुरुप परिवेश में सुख-दुःख, संयोग-वियोग सब होता रहता है।‘’
अंत में ज्योतिष का आध्यात्म से क्या संबंध है , इसकी विवेचना की गयी है ....‘‘परम शक्ति का बोध ही परमानंद है। जो लोग बुरे समय की महज अग्रिम जानकारी को आत्मविश्वास की हानि के रुप में लेते हैं, वे अप्रत्याशित रुप से प्रतिकूल घटना के उपस्थित हो जाने पर अपना संतुलन कैसे बना पाते होंगे ? यह सोचनेवाली बात है।