मनुष्य के शारीरिक मानसिक विकास की चर्चा करने के क्रम में एक 'टीन एजर' बात अवश्य आ जाती है। यह शब्द 13 से 19 वर्ष तक के किशोरों के लिए प्रयुक्त किया जाता है। शारीरिक विकास के मामले में यह उम्र तो विशेष है ही , मानसिक संतुलन बनाए रखने में भी इस उम्र की बडी भूमिका होती है। इसी उम्र में जब कोई बच्चे सा काम करे , तो तुरंत फटकार मिलती है कि वे अब बच्चे नहीं रहे और जब बडे जैसा व्यवहार करते करने जा रहे होते , उन्हें टोका जाता है कि वे अभी बच्चे हैं।यदि अभिभावक समझदार हों और उनके साथ उनका दोस्ताना व्यवहार हो , तो भी इस समय बच्चों का व्यवहार सचमुच अजीब सा हो जाता है। कभी कभी तो अपनी पढाई लिखाई सबकुछ भूलकर वे ऐसी संगति में आ जाते हैं , बुरी आदतें अपना लेते हैं कि बच्चों को देखकर भी ताज्जुब हो सकता है।
एक मनोचिकित्सक उम्र के इस दौर को किसी भी प्रभाव से जोड सकता है। पर सिर्फ शारीरिक और मानसिक परिवर्तन की दौर से गुजरने के कारण ही किशोरों का16 से 20 वर्ष की उम्र तक यह व्यवहार अपनी चरम सीमा पर नहीं होता , हमारा अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि इस वक्त शनि के खास ज्योतिषीय प्रभाव के कारण जातक के समक्ष एक अलग प्रकार की परिस्थिति उपस्थित होती है। यदि आप अपनी जन्मतिथि में 16 और 20 वर्ष जोड दें , तो बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे , जो ऐसा नहीं पाएंगे कि कोई गल्ती न करने के बावजूद इन चार वर्षों के मध्य का कोई ढाई वर्ष खासकर 17 वां , 18 वां या 19 वां वर्ष आपने किसी खास तरह की गडबड परिस्थिति में गुजारे हैं। लगातार किसी परीक्षा में मन मुताबिक परिणाम न आना , शारीरिक अस्वस्थता का बने रहना या पिता या माता से किसी विचारों का विरोध जैसी कुछ बातों के निरंतर बने रहने के कारण अधिकांश जगहों पर शनि के प्रभाव की पुष्टि इस तरह हो जाएगी।
जो बच्चे पढाई लिखाई के क्षेत्र में नहीं हैं , उनसे कोई बडा अपराध इन्हीं दिनों में हो जाता है , जिसके कारण उनका पूरा जीवन बेकार हो जाता है। इसके अलावे आज के बच्चों और अभिभावकों की पढाई लिखाई के प्रति मानसिकता के कारण विद्यार्थियों के लिए यह उम्र तो और भी कष्टकर हो गया है। इसी उम्र के दौरान के कोई तीन वर्ष दसवीं , ग्यारहवी और बारहवीं की पढाई के साथ ही साथ किसी अच्छे कॉलेज में नामांकण कराने के भी होते हैं , इसलिए उनका दबाब भी बहुत अधिक होता है। वैसे तो हर कॉलेज में सीट कम होने के कारण किशोरों के समक्ष मनोनुकूल परिणाम की संभावना कम ही रहती है और अधिकांश को समझौता करते हुए ही अपनी पढाई को आगे ले जाना होता है। पर इस दौरान कुछ छात्र ऐसे होते हैं , जिनको बहुत बडा समझौता करना पडता है। हमेशा से अच्छे अच्छे स्कूलों और विभिन्न कोचिंग सेंटरों में टॉपर रहे किशोरों को अपनी आशा के विपरीत छोटे छोटे कॉलेजों मे दाखिला लेने को विवश होना पडता है।
व्यवहारिक कारण से ऐसा क्यूं होता है , इसे मैं परिभाषित नहीं कर सकती। लाखों की संख्या में परीक्षा दे रहे विद्यार्थियों में से किस अव्यवस्था के कारण ऐसे परिणाम आ जाते हैं , प्रतियोगिता की परीक्षाओं में पारदर्शिता न होने के कारण कह पाना मुश्किल है ।अब पहले वाली बात तो रही नहीं ,पिछले वर्ष छत्तीसगढ के मेडिकल इंटरेंस की परीक्षा में टॉप करने वाले विद्यार्थी ने परीक्षा ही नहीं दी थी , पिछले वर्ष ही होहल्ले के कारण झारखंड इंजीनियरिंग की परीक्षा का परिणाम भी दुबारा निकालना पडा, इन सब बातों को देखते हुए कुछ प्रतिशत खामियों से इंकार नहीं किया जा सकता। सामान्य बच्चे थोडी कमी बेशी के साथ आगे बढ भी जाएं , पर बहुत ही परेशान हालत में अधिकांश प्रतिभा संपन्न किशोरों को ही दंश झेलते हुए मैने अपने पास आते देखा है।
अभी फिर से सभी कॉलेजों के लिए इंटरेंस की परीक्षाओं के फॉर्म भरे जा रहे हैं। अपने अनुभव के आधार पर मेरा विद्यार्थियों से अनुरोध है कि वे अधिक से अधिक जगहों पर फॉर्म भरे और अपने लिए कोई न कोई सीट सुरक्षित रखने का प्रयास करें। कौन सी परीक्षा देते वक्त आपकी मन:स्थिति कैसी रहेगी और परीक्षा अच्छी हो जाने के बाद भी कौन सा परिणाम कितना अच्छा या बुरा होगा , इसकी कोई गारंटी नहीं होती। यदि आप सामान्य विद्यार्थी हैं , तो आप कुछ निश्चिंत रह भी सकते हैं , पर असाधारण प्रतिभा है आपमें तो आपको और सतर्क रहने की आवश्यकता है। अधिक से अधिक फॉर्म भरें और कहीं भी दाखिला लेकर अपनी पढाई पूरी करें। प्रतिभा किसी का मुहंताज नहीं होती , समय आने पर अपनी प्रतिभा से आप अपनी जगह बना ही लेंगे , समय एक जैसा नहीं होता , आशा है मेरे संकेत को आप समझ चुके होंगे।
रिजल्ट होने के बाद विकल्पों का चुनाव करते वक्त भी किशोरों को बहुत सावधानी रखनी चाहिए , जिसकी जानकारी देते हुए मैं एक पोस्ट परीक्षा परिणामों के बाद लिखूंगी !