एक मजदूर के घर में कई दिनों से घर में खीर बनाने का कार्यक्रम बन रहा था , पर किसी न किसी मजबूरी से वे लोग खीर नहीं बना पा रहे थे। बडा सा परिवार , आवश्यक आवश्यकताओं को पूरी करना जरूरी था , खीर बनाने के लिए आवश्यक दूध और चीनी दोनो महंगे हो गये थे। बहुत कोशिश करने के बाद कई दिनों बाद उन्होने आखिरकार खीर बना ही ली। खीर खाकर पूरा परिवार संतुष्ट था , उसकी पत्नी आकर हमारे बरामदे पर बैठी। आज पूरे परिवार ने मन भर खीर खाया था , यहां तक कि उसके घर आनेवाले दो मेहमानों को भी खीर खिलाकर विदा किया था।
हमारे घरवालों को आश्चर्य हुआ , कितना खीर बनाया इनलोगों ने ?
पूछने पर मालूम हुआ कि उनके घर में एक किलो चावल का खीर बना था।
यह हमारे लिए और ताज्जुब की बात थी , दूध कितना पडा होगा ?
मालूम हुआ .. 1 किलो।
अब हमारी उत्सुकता बढनी ही थी ..चावल गला कैसे ?
उसमें दो किलो पानी डाला गया।
अब इतनी मात्रा में खीर बनें तो चीनी तो पर्याप्त मात्रा में पडनी ही है , पूछने का कोई सवाल नहीं !!
इस बात से आपको हंसी तो नहीं आ रही, जरूर आ रही होगी
पर सोंचिए यदि हमने उस मजदूर को उसकी मजदूरी के पूरे पैसे दिए होते ,
तो वह ऐसी खीर तो न खाता !
इस प्रकार जैसे तैसे जीवनयापन करने को तो बाध्य नहीं होता !
इसी प्रकार धीरे धीरे उसका जीवन स्तर गिरता गया होगा और हम अपने स्तर पर नाज कर रहे हैं !
क्या स्वीकार करने की हिम्मत है आपको ??