Panch mahapurush yog in Hindi'ज्योतिषीय योग' की पुस्तकों में स्थित 'पंच महापुरूष योग'
ज्योतिष शास्त्र की 'ज्योतिषीय योग' की पुस्तकों में 'पंच महापुरूष योग' का वर्णन है , जिनके नाम रूचक , भद्र , हंस , मालब्य और शश हैं। इन पांचों में कोई एक योग होने पर भी जातक महापुरूष होता है एवं देश विदेश में कीर्ति लाभ कर पाता है। मंगल अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण में अथवा उच्च राशि का होकर केन्द्र में स्थित हों , तो रूचक योग , बुध अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण में अथवा उच्च राशि का होकर केन्द्र में स्थित हो तो भद्र योग , बृहस्पति अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण में अथवा उच्च राशि का होकर केन्द्र में स्थित हो , तो हंस योग , शुक्र अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण में अथवा उच्च राशि का होकर केन्द्र में स्थित हो , तो मालब्य योग तथा शनि अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण या उच्च राशि का होकर केन्द्र में स्थित हो , तो जन्मकुंडली में शश योग बनता है।
'ज्योतिषीय योग' की पुस्तकों में लिखा होता है कि रूचक योग में जन्म लेनेवाला व्यक्ति स्वयं राजा या सेना या मिलिटरी में उच्चाधिकारी , आर्थिक दृष्टि से पूर्ण संपन्न अपने देश की सभ्यता और संस्कृति के प्रति पूर्ण जागरूक उसके विकास के लिए काम करता है। भद्र योग में जन्म लेनेवाला मनुष्य सिंह के समान पराक्रमी , प्रभावोत्पादक , विलक्षण बुद्धि वाला होता है , यह जीवन में धीरे धीरे प्रगति करते हुए सर्वोच्च स्थान प्राप्त करता है। हंस योग में जन्म लेनेवाला व्यक्ति सुंदर व्यक्तित्व वाला मधुरभाषी होता है। यह सफल वकील या जज बनकर निष्पक्ष न्याय करता है। मालब्य योग वाला व्यक्ति मजबूत दिमाग रखनेवाला , सफल कवि , चित्रकार , कलाकार या नृत्यकार होते हैं और देश विदेश में ख्याति प्राप्त करते हैं। शश योग वाले व्यक्ति साधारण कुल में जन्म लेकर भी राजनीति विशारद होते हैं , वे गांव का मुखिया , नगरपालिकाध्यक्ष , या प्रसिद्ध नेता होते हैं।
अब चूंकि पूरी दुनिया में कुछ खास अंतरालों में जन्म न लेकर हर वक्त बच्चे जन्म लेते ही रहते हैं , इसलिए उनकी जन्मकुंडलियों में विभिन योगों का बनना सामान्य ढंग से होगा। यदि गणित के संभावनावाद के नियम के हिसाब से जन्मकुंडली में इन योगों की संभाब्यता पर ध्यान दें , तो हमें कुछ भी खास नहीं प्राप्त हो पाएगा, क्यूंकि ये पांचो ग्रह 12 में से दो राशियों में स्वक्षेत्री होंगे , इस कारण इनके अपने राशि में होने की संभावना 2/12 यानि 1/6 तथा उसके मूल त्रिकोण में होने की संभावना 3/12 यानि 1/4 । इसी प्रकार इनके उच्च राशि में होने की संभावना 1/12 तथा केन्द्र में स्थित होने की संभावना 4/12 यानि 1/3 होती है। इस तरह जन्मकुंडली में इन पांचों में से किसी भी एक योग के उपस्थित होने की संभावना (1/6*1/4)+(1/12*1/3) = (1/24+1/36)यानि 5/72 होगी। यानि 72 लोगों में से किसी एक कुंडली में इनमें से कोई योग देखा जा सकता है। पर इन पांचों में से किसी एक योग के होने की संभावना 5/72 * 5 यानि 25 /72 होगी। इसका अर्थ है कि 72 व्यक्तियों में से 25 व्यक्ति की जन्मकुंडली में इन पांचों में से कोई एक योग हो सकता है।
जब पांचों में से किसी एक योग के होने की संभावना इतनी सामान्य हो , वहां इस योग के फल से जातक के महापुरूष बनने की संभावना के बारे में सोचना भी गलत होगी। हालांकि पुस्तकों में यह भी लिखा है हक संबंधित ग्रह निर्मल , अवेध , अवक्री और 10 से 25 डिग्री के मध्य में होना चाहिए , पर 'गत्यात्मक ज्योतिष' ग्रहों के मात्र स्वक्षेत्री होने , उच्च स्थान पर स्थित होने , केन्द्रगत होने या तिक्रोण में होने से इतने बडे फल प्राप्ति पर विश्वास नहीं रखता , जबतक कि ग्रह गत्यात्मक या स्थैतिक दृष्टि से काफी मजबूत न हों । इसलिए किसी प्रकार के ज्योतिषीय योग के अध्ययन से पहले यह ग्रहों की गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति की जानकारी आवश्यक समझता है। सिर्फ रटे रटाए विधि से की गयी भविष्यवाणी सटीक नहीं हो पाती , जबकि समय समय पर प्रायोगिक जांच से भविष्यवाणियों की सटीकता बढती है।