हेड या टेल : यह ज्‍योतिष का नहीं आंकडों का खेल है

कल ज्‍योतिष को चुनौती दिए जाने से पहले मैने अपनी ओर से कुछ सुझावों का जिक्र किया था ,जिसे आप मेरी शर्तें भी मान सकते हैं । पर फिर भी पाठकों ने इसका स्‍वागत किया ,इसके लिए उनका बहुत बहुत शुक्रिया। वैसे इतनी सावधानी बरतने के पीछे जो कारण है ,उसके बारे में आप अनजान हो सकते हैं ,पर मैं नहीं। वैसे मैने अभी तक किसी ऐसी प्रतियोगिता मे भाग नहीं लिया ,पर प्रतियोगिता के फैसले के बाद उसकी जो रिपोर्ट पढी थी ,उससे वैज्ञानिकों के ज्‍योतिष के प्रति निष्‍पक्ष व्‍यवहार की तो उम्‍मीद नहीं की जा सकती है।आज फिरयह समाचारअभिषेक जी लेकर आए हैं।

इस आलेख को पढने के बाद पुन: मेरे दिमाग में बहुत बातें आयी , पर मुझे इसमें उलझना उचित न लगा और मैने यह टिप्‍पणी कर दी ....

“अब इस प्रकार की बहस में मुझे नहीं उलझना.. ज्‍योतिष के खेल को हेड और टेल साबित कर लिया गया .. इसके लिए वैज्ञानिकों को बहुत बहुत बधाई !!”

पर कह देना जितना आसान होता , करना उतना नहीं , सही को सही और गलत को गलत कहना अपने संस्‍कार में शामिल जो है। आप पाठकों से मैं तीन प्रश्‍नों के उत्‍तर चाहती हूं ....

1. ज्‍योतिष के क्षेत्र में आजतक सरकारी ,अर्द्धसरकारी या गैरसरकारी संगठनों द्वारा कितना खर्च किया गया है ?
2. ज्‍योतिष के क्षेत्र में कितना आई क्‍यू रखने वाले लोग मौजूद हैं ?
3. हमें पढने के लिए कौन सी पुस्‍तकें मिलती हैं ?

निश्चित रूप से आपका जवाब निराशाजनक होगा , कभी भी इस क्षेत्र में नाममात्र का भी खर्च नहीं किया गया है । साथ ही इस क्षेत्र में अधिक आई क्‍यू वाले लोग भी अधिक संख्‍या में पूर्ण तौर पर समर्पित नहीं हैं , क्‍यूंकि अधिक आई क्‍यू वाले लोग तो विभिन्‍न क्षेत्रों में सरकारी सेवाओं में चले जाते हें। अपने जीवन में असफल रहे लोग ही अधिकांशत: ज्‍योतिष के अध्‍ययन में देखे जाते हैं , या फिर अधिक पैसे कमाने के लालच में पडे कुछ लोग । ज्‍योतिष में रूचि रखनेवाले और प्रतिभाशाली इस क्षेत्र में अपवादस्‍वरूप ही होंगे , उन्‍हें भी जीवन निर्वाह के लिए किसी और धंधे से जुडा रहना पडता है । ज्‍योतिष में मजबूरीवश आए हो या शौकवश , पर ज्‍योतिष के क्षेत्र में आने के बाद हमलोगों को पढने के लिए जो मिल पाता है , उसमें एकमात्र ज्‍योतिष का सही आधार है , जो कि सर्वमान्‍य है । पर जैसे जैसे फलित के क्षेत्र में हम आगे बढते हैं , सूत्रों का ढेर , जो कि अनावश्‍यक रूप से ज्‍योतिष को विवादास्‍पद बनाता है । इतने सारे सूत्रों में कौन सही है कौन गलत , इसका फैसला भी आज तक ज्‍योतिषी नहीं कर सके हैं। बिना किसी प्रकार की सरकारी सहायता से या एकजुट हुए किस पद्धति को गलत ठहराएं , किसे सही , समझ में नहीं आता। इसी कारण ज्‍योतिषियों की भविष्‍यवाणियों में विविधता भी आती है , और गलती के भी चांसेज रहते हैं , पर इसके बावजूद एक सच्‍चा ज्‍योतिषी भविष्‍यवाणियों को एक सीमा तक सही ले जाने में समर्थ होता है , जो उसकी औसत आई क्‍यू और समाज की ओर से ज्‍योतिष के क्षेत्र में मिली उसकी कुल परिस्थितियों के हिसाब से वह बहुत अधिक होता है।

आप इसी प्रतियोगिता को लें । “एक ही ज्योतिषी ऐसे थे जिन्होंने 40 में 24 हल निकालने का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (!) किया” मतलब 60 प्रतिशत नंबर उसको मिलने चाहिए थे । हमारे देश में 60 प्रतिशत नंबर लानेवाले लोगों को प्रथम श्रेणी दी जाती है। वैसे आप आज के युग में प्रथम श्रेणी का कोई महत्‍व नहीं देंगे , क्‍यूंकि आज तो 95 प्रतिशत लानेवाले ढेर सारे बच्‍चे हैं , पर उन बच्‍चों के पीछे होने वाले खर्च को भी ध्‍यान में रखिए । वैसे आज भी ग्रामीण क्षेत्र के किसी सरकारी स्‍कूल से 60 प्रतिशत लानेवाले बच्‍चे को पूरे गांव में प्रतिष्‍ठा मिलती है , क्‍यूंकि उन्‍होने बहुत कम सुविधा के बावजूद यह सफलता हासिल की है। यही कारण है कि मेरे मन में उक्‍त ज्‍योतिषी के लिए बहुत श्रद्धा है , और मैं उनसे अवश्‍य मिलना चाहूंगी , यदि कोई मुझे उनका नाम पता बताए , क्‍यूंकि उन्‍होने अपने दम पर इतना कुछ कहा तो।

पर पूरे समूह के ज्‍योतिषियो के द्वारा सटीक विश्‍लेषण न किए जाने का उन्‍हें फल किस प्रकार मिला , उसे आयोजकों के द्वारा किए गए आंकडों के उलट फेर के खेल से देखा जा सकता है , “सभी प्रतिभागियों की औसत सफलता 17.25 थी जो कि एक सिक्के के इतने ही हेड -टेल की संभावित से भी कम थी।“ यह तो वही बात हो गयी नकि गांव के किसी स्‍कूल के सारे बच्‍चों केऔसत परिणाम को गडबड देखकर स्‍कूल की व्‍यवस्‍था के दोष को न देखते हुए उक्‍त प्रथम श्रेणी से पास करनेवाले बच्‍चे की प्रतिभा को नकारा जाए। आश्‍चर्य है कि वैज्ञानिकों को और इतने सारे पाठकों को इतनी छोटी सी बात समझ में नहीं आती या फिर वास्‍तव में वे ज्‍योतिष के प्रति पूर्वाग्रह से ही ग्रस्‍त हैं ? मतलब यही है कि विज्ञान को सब सुविधा दो , फिर भी शत प्रतिशत सफलता की उम्‍मीद न करो , पर ज्‍योतिष को सुविधा तो कुछ भी नहीं दी जाएगी , पर 100 प्रतिशत सटीक करो , यदि नहीं तो ज्‍योतिष अंधविश्‍वास है। इस तरह की प्रतियोगिता में भाग लेने से तो हर कोई बचना चाहेगा । खासकर वैसी स्थिति में , जब ज्‍योतिषियों के पक्ष में कोई न हो (क्‍यूंकि दुनिया तो छुपछुपकर ज्‍योतिषियों के पास आती है) , ज्‍योतिषी हार मानने को बाध्‍य होंगे ही। चलिए , कुल मिलाकर बात यहीं पर आ जाती है कि ज्‍योतिष के क्षेत्र में प्रतिभागी चाहे जितना भी अच्‍छा प्रदर्शन कर ले , यानि सिक्‍का हेड गिरे या टेल ,आयोजकों के द्वारा किए गए आंकडों के हेर फेर से उनकी जीत तो निश्चित ही है।

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संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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