जहां जीवन में अच्छे ग्रहों के कारण सुखमय समय जीवन को आनंदमय बनाए रहते हैं , वहीं बुरे ग्रहों के कारण चलने वाले बुरे समय को झेलने को भी मनुष्य विवश होता है , परंपरागत ज्योतिषियों द्वारा इसके इलाज के लिए बडे बडे दावे किए जाते हैं । 'गत्यात्मक ज्योतिष' इस बारे में एक अलग ही धारणा रखता है , इसपर मै लगभग 10 पोस्ट लिख चुकी हूं। कल पिताजी के द्वारा 15 वर्ष पूर्व हस्तलिखित कुंडली बनाई जाने वाली एक पुस्तिका मिली। इसमें उन्होने संक्षेप में बुरे समय के इलाज के निम्न विंदुओं को प्रकाशित करवाया था ....
- बुरे समय में घबडाहट की बात न हो , समय बहुत तेज गति से बदलता है।
- समय से पूर्व अभिष्ट की प्राप्ति नहीं होती , समय का इंतजार करें।
- समय की वास्तविक जानकारी ही हर प्रकार के भ्रमों का उन्मूलन करती है।
- अच्छे बुरे समय की जानकारी सही समय में सही कदम उठाने को प्ररित करती है।
- बुरे दिनों में रिस्क न ले , गर्दिश के ग्रहों का यह सर्वोत्तम इलाज है।
- रत्न धारण , पूजा पाठ , तंत्र मंत्र या किसी प्रकार के अनुष्ठान से अच्छा समय के अनुसार सूझ बूझ और धैर्य से किया गया काम होता है।
- बुरे समय का अभिप्राय निष्क्रियता नहीं , वरन् परिस्थितियों से समझौता है , अतिरिक्त रिस्क की अवहेलना करें।
- अनुशासित रहे , गुरूजनों की इज्जत एवं दलितों की सहायता करें।
- नेष्ट ग्रह जब गोचर में सबसे अधिक गतिशीलता को प्राप्त करे , तो अपने लग्नकाल में सोना , चांदी या ताम्बे को पूर्ण तौर पर गलाकर नया रूप देकर उसे धारण करें।