Vrish lagna me grahon ka fal
इस वीडियो में आप वृष लग्न होने पर विभिन्न भावों के फलाफल के बारे में समझ पाएंगे। आसमान के 30 डिग्री से 60 डिग्री तक के भाग का नामकरण वृष राशि के रूप में किया गया है। जिस बच्चे के जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है , उस बच्चे का लग्न वृष माना जाता है। वृष लग्न की कुंडली के अनुसार मन का स्वामी चंद्र तृतीय भाव का स्वामी होता है और यह जातक के भाई , बहन , बंधु , बांधव , सहयोगी आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए वृष लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले ये सारे संदर्भ ही होते है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के मजबूत रहने पर भाई बंधुओं की मजबूत स्थिति से वृष लग्न के जातक का मन खुश और जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में चंद्र के कमजोर रहने पर भाई बंधु की कमजोर स्थिति से इनका मन आहत होता है।
Vrish lagna me surya ka fal
वृष लग्न की कुंडली के अनुसार समस्त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी होता है और यह जातक के मातृ पक्ष , हर प्रकार की संपत्ति और स्थायित्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए अपने नाम यश को फैलाने के लिए वृष लग्न के जातक मातृ पक्ष , मातृभूमि के लिए काम करना चाहते हैं। नाम यश फैलाने के लिए इनका सर्वाधिक ध्यान अपनी संपत्ति और स्थायित्व की स्थिति को मजबूती देने में भी बना होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के मजबूत रहने पर संपत्ति की मजबूती से इनकी कीर्ति फैलती और जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में सूर्य के कमजोर रहने पर संपत्ति की कमी से इनकी कीर्ति घटती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' में सूर्य को हर वक्त 50 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति दी जाती है, पर यह जिस ग्रह की राशि में होता है, उससे इन्हे गत्यात्मक शक्ति प्रभावित होकर थोड़ी धनात्मक या ऋणात्मक हो जाती है।
Vrish lagna me mangal ka fal
वृष लग्न की कुंडली के अनुसार मंगल सप्तम और द्वादश भाव का स्वामी होता है और यह जातक के घर गृहस्थी और खर्च का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्न के जातकों के घर गृहस्थी के वातावरण में खर्च की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के मजबूत रहने पर वृष लग्नवाले खर्च शक्ति की प्रचुरता से घर गृहस्थी में सुख ही सुख महसूस करते है , विपरीत स्थिति में यानि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में मंगल के कमजोर रहने पर खर्चशक्ति की कमी के कारण वृष लग्नवाले के घर गृहस्थी का वातावरण कष्टकर बना होता है। घर गृहस्थी का वातावरण सुखद हो तो खर्च की प्रचुरता दिखाई देती है , विपरीत स्थिति में खर्च का संकट। 'गत्यात्मक ज्योतिष' मंगल की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में मंगल सूर्य के निकट हो तो मंगल को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और मंगल आमने सामने हो तो मंगल काफी कमजोर होता है।
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Vrish lagna me shukra ka fal
वृष लग्न की कुंडली के अनुसार शुक्र प्रथम और षष्ठ भाव का स्वामी है और यह जातक के शरीर , व्यक्तित्व तथा रोग , ऋण या शत्रु जैसे किसी प्रकार के झंझट का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए किसी प्रकार के झंझट का वृष लग्न के जातक के स्वास्थ्य और आत्म विश्वास से गहरा संबंध होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के कमजोर रहने पर उपरोक्त में से कोई झंझट उपस्थित होकर इनके स्वास्थ्य मे गडबडी लाते हैं , आत्म विश्वास में कमी आती है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शुक्र के मजबूत रहने पर हर प्रकार के झंझट सुलझे हुए होते हैं और इनका स्वास्थ्य अच्छा होता है , आत्मविश्वास की प्रचुरता बनी होती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शुक्र की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, शुक्र की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो शुक्र को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही शुक्र वक्री होता है तेजी से घटती हुई गत्यात्मक शक्ति शुन्य हो जाती है।
Vrish lagna me budh ka fal
वृष लग्न की कुंडली के अनुसार बुध द्वितीय और पंचम भाव का स्वामी है और यह जातक के धन , कोष , बुद्धि , ज्ञान और संतान से संबंधित मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिण् इस लग्न के जातकों का इनमें आपस में सहसंबंध होता है। इनके बौद्धिक या संतान पक्ष के विकास में साधन की भूमिका अहम् होती है , जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के मजबूत रहने पर आर्थिक मजबूती से इनका काम आसानी से होता है , जबकि जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बुध के कमजोर रहने पर धनाभाव में खुद के या संतान पक्ष के मानसिक विकास में अच्छी खासी बाधाएं आ जाती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' बुध की शक्ति का निर्णय उसकी गति से करता है, बुध की गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो तो बुध को अधिक गत्यात्मक शक्ति मिलती है, प्रतिदिन 1 डिग्री हो तो 50 प्रतिशत , यदि गति 1 डिग्री से कम होने लगती है तो गत्यात्मक शक्ति भी कम होने लगती है, जैसे ही बुध वक्री होता है तेजी से घटती हुई इसकी गत्यात्मक शक्ति शून्य हो जाती है।
Vrish lagna me guru ka fal
वृष लग्न की कुंडली के अनुसार बृहस्पति अष्टम और एकादश भाव का स्वामी होता है और यह जातक के लाभ और जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए वृष लग्न के जातकों के लाभ से जीवनशैली और जीवनशैली से लाभ प्रभावित होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के मजबूत होने पर लाभ की प्रचुरता से जीवनशैली में मजबूती आती है तथा जीवनशैली की मजबूती से लाभ मजबूत होता है। लेकिन जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में बृहस्पति के कमजोर रहने पर लाभ की कमी जीवनशैली को कमजोर तथा जीवनशैली की कमजोरी लाभ को कमजोर बनाती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' गुरु की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में गुरु सूर्य के निकट हो तो गुरु को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और गुरु आमने सामने हो तो गुरु काफी कमजोर होता है।
Vrish lagna me shani ka fal
वृष लग्न की कुंडली के अनुसार शनि नवम और दशम भाव का स्वामी होता है यानि यह जातक के पिता पक्ष , प्रतिष्ठा पक्ष और भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस लग्नवाले जातकों के भाग्य के साथ कैरियर या सामाजिक राजनीतिक स्थिति का आपस में संबंध बना होता है। जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के मजबूत रहने पर भाग्य के साथ देने से यानि किसी प्रकार के संयोग के बनने से पद प्रतिष्ठा की मजबूती तथा जन्मकुंडली , दशाकाल या गोचर में शनि के कमजोर रहने पर भाग्य के न साथ देने से इसकी कमजोरी महसूस होती रहती है। इसी प्रकार पिता और सामाजिकता के मजबूत होने से भाग्य की मजबूती तथा उनके कमजोर होने से भाग्य की कमजोरी झेलनी पडती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' शनि की शक्ति का निर्णय इसके सूर्य के निकट होने या दूर होने से करता है, जन्मकुंडली में शनि सूर्य के निकट हो तो शनि को अधिकतम गत्यात्मक शक्ति मिलती है, सूर्य से जितना दूर होता है, शक्ति घटती जाती है, सूर्य और शनि आमने सामने हो तो शनि काफी कमजोर होता है।