अपने ब्लॉग के लिए इतने लंबे लंबे आलेख और 'साहित्य शिल्पी' में लंबी लंबी कहानियां लिखकर प्रकाशित करते हुए मैं अपना जितना समय जाया करती हूं , उससे कम पाठकों का भी नहीं होता , जबकि कुछ ब्लागर एक छोटी सी त्रिवेणी लिखकर अपना संदेश पाठकों तक पहुंचाकर प्रशंसा भरी ढेर सारी टिप्पणियां प्राप्त कर लेते हैं। ब्लॉग जगत में इतने दिनों में डॉ अनुराग जी के ढेर सारी त्रिवेणियॉं पढने के बाद यत्र तत्र प्रकाशित कुछ अन्य त्रिवेणियों को भी समझने की कोशिश करती रही । इस प्रकार मुझे अभिव्यक्ति की एक नई शैली की जानकारी मिली, किसी भी तरह का प्रयोग करने में मैं पीछे नहीं रहा करती , ये रहा मेरा पहला प्रयोग। ये भी पता नहीं कि यह त्रिवेणी है या कुछ और ... इसलिए आप सबों की आलोचनाओं के लिए तैयार हूं .....
धुंधला आईना, चेहरे की सारी कमियों को छुपा देता है ,
अखबार के गीले टुकडे से इसे चमकाने की जल्दबाजी क्यूं,
थोडी देर ही सही, भ्रम में रहकर खुश तो हो लें !!
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चंद्र-राशि, सूर्य-राशि या लग्न-राशि से नहीं,
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ये रहा मेरा पहला प्रयोग .. यह त्रिवेणी ही है या कुछ और ??
Reviewed by संगीता पुरी
on
12/02/2009
Rating:
20 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया त्रिवेणी ...... बढ़िया प्रयास है ....
behtareen-aabhar
बहुत सुंदर प्रयोग......
बहुत अच्छी लगी यह त्रिवेणी.....
संगीता जी,
अगर सब आइने को ही देखते रह कर अपने को सुधारने की कोशिश करें, ये दुनिया अपने-आप ही रहने के लिए बेहतर जगह बन जाएगी...
जय हिंद...
ये कैसा प्रयोग है ?? समझ से परे है आखिर त्रिवेणी कहाँ है !!!
बहुत सुन्दर त्रिवेणी -- सुन्दर प्रयोग्
तकनीक की बात दरकिनार करते हुए इतना ही कहना है कि बात समझ में आती है और भाव बहुत सुन्दर हैं ....
शुभ कामनाएं
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बढ़िया लगा आपका यह प्रयास ..
sangeeta ji .........ye to hamein bhi nhi pata ki triveni hai ya nhi magar bhav behtreen hain.........dil ko choo gaye.
त्रिवेणी-पन आ गया है ...
आगे जानें इस शिल्प के महारथी ...
अपना तो काम हो गया ...
संगीता जी भाब बहुत खूबसरत है,बाकि कोई टिप्पणीकार बतायेगा? त्रिवेणी क्या होती है ?
आपको जो कहना है , कहें !
शिल्प की चिन्ता में न रहें !
बढ़िया
कुछ और ..
Sangitaji laajawab! isi tarah naye prayog karti rahe taki mujh jaise kuch seekh sake:)
बहुत सुन्दर !!!!!!!
आईने से सच छुपा भी लें, तो भी सच तो सच ही रहेगा।
मेरे ख्याल से समस्या से भागने की बजाय उसे खत्म करना ज्यादा युक्तिसंगत है।
गगन शर्मा जी .. मेरे कहने का मतलब आप नहीं समझ सके .. शायद अन्य पाठक भीन समझ सके हों .. आईना जो भी सच छुपाता है.. उसे दूर करने में हमारा कोई वश नहीं होता .. इसलिए अपने आत्मविश्वास को बढाने के लिए .. उसे इग्नोर में ही भलाई है !!
बहुत ही अच्छा प्रयोग रहा आपका, और प्रस्तुति के भाव तो बहुत ही अच्छे लगे, आभार ।
वाकई बहुत बढ़िया.
अब त्रिवेणी है तो टिप्पणी होना भी लाजमी है. आपकी पहली त्रिवेणी पर बधाई.
ख़ुशी हुई कि आपकी कलम बड़ी-बड़ी, लम्बी पोस्ट के साथ छोटी सी त्रिवेणी में भी कमाल कर रही है..
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