google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 प्राण प्रतिष्‍ठा के बाद मूर्तियां

प्राण प्रतिष्‍ठा के बाद मूर्तियां

यह जानते हुए कि पैरों के बिना सही ढंग से जीवन जीया नहीं जा सकता , हम अपने शरीर में पैरों का स्‍थान सबसे निकृष्‍ट मानते हैं। शायद शरीर के सबसे निम्‍न भाग में होने की वजह से गंदा रहने और किटाणुओं को ढोने में इसकी मुख्‍य भूमिका होने के कारण ही पैरो को अछूत माना गया हो। इसी वजह से लात मारना शिष्‍टाचार की दृष्टि से बिल्‍कुल गलत माना जाता है। हमारा पैर गल्‍ती से भी किसी को छू जाए , तो इसके लिए हम अफसोस करते हैं या माफी मांगते हैं। हमारी संस्‍कृति सिर्फ व्‍यक्ति को ही नहीं , किसी वस्‍तु को भी पैरों से छूने की इजाजत नहीं देती। चाहे वह घर के सामान हों , बर्तन हो या खाने पीने की वस्‍तु। यहां तक कि अन्‍न की सफाई करने वाले सूप , अनाज को रखी जानेवाली टोकरियां या फिर घर की सफाई के लिए प्रयुक्‍त होने वाली झाडू , सबमें लक्ष्‍मी है।

एक प्रसंग याद है , जब तुरंत होश संभालने के बाद एक बच्‍ची को गांव जाने का मौका मिला। घर में , बरामदे में किसी को पैर नहीं लगाना , बच्‍चे को पैर नहीं लगाना , बरतन को पैर नहीं लगाना, परेशान हो रही थी वो। खेती बारी का समय था , खलिहान में फसल थे , कुछ सामान वगैरह भी थे , जो बच्‍ची को खेल के लिए भाते थे। पर वह जिधर भी खेलने जाती , कोई न कोई टोक ही देता , उसपर मत चढों , उसे पैरो से मत कुचलो या फिर उसमें पैर मत लगाओ। हार कर वह पुआल में खेलने को गयी , वहां भी किसी ने टोक दिया तो बच्‍ची से रहा नहीं गया , उसने कहा, 'और सब तो अन्‍नपूर्णा है, नहीं छू सकती , अब पुआल में भी लक्ष्‍मी'  इतना ख्‍याल रखे जाने की परंपरा थी हमारी। 

लेकिन हमारी संस्‍कृति में दूसरों को इज्‍जत देने के लिए उनके पैरों को छूने की प्रथा है। इसका अर्थ यह माना जाना चाहिए कि हम सामने वाले के निकृष्‍ट पैरों को भी अपने सर से अधिक इज्‍जत दे रहे हें। बहुत सारे कर्मकांड में पैर पूजने का अर्थ है कि हम बडों के पैरों की धूलि को भी चरण से लगाते हैं। इसी तरह मूर्तियों की प्राण प्रतिष्‍ठा करने के बाद उसके चरणों की ही वंदना की जाती है , उनके चरणों की ही पूजा की जाती है, उनके चरणों में ही सबकुछ अर्पित किया जाता है। पर जहां कला की इज्‍जत करते हुए छोटे छोटे पेण्‍टिंग्‍स , छोटी छोटी कलाकृतियों आम लोगों की बैठकों में  स्‍थान पाते हैं , बिना प्राण प्रतिष्‍ठा के मूर्तियों को निकृष्‍ट मानना उचित नहीं। 

जिस देश की संस्‍कृति में एक एक जीव , एक एक कण को भगवान माना जाए , किसी को पैर लगाने की मना‍ही हो , वहां मूतिर्यों की पूजा करने के क्रम में विभिन्‍न देवियों की प्राण प्रतिष्‍ठा एक बहाना भी हो सकता है। मूर्तियों की पूजा करते समय हम अपने देश की मिट्टी की पूजा कर सकते हैं , मिट्टी के लचीलेपन की पूजा कर सकते हैं, विभिन्‍न देवी देवताओं की कल्‍पना को साकार रूप देने की सफलता की पूजा कर सकते हैं , और उस सब से ऊपर है कि उस मूर्ति का निर्माण करनेवाले सारे कलाकारों की कला की पूजा कर सकते हैं। हां , प्राण प्रतिष्‍ठा हो जाने के बाद आस्‍था से परिपूर्ण लोगों के मन में मौजूद ईश्‍वर के एक रूप की एक काल्‍पनिक और धुंधली छवि बिल्‍कुल सामने दृष्टिगोचर होती है , इसलिए पूजा के वक्‍त पूर्ण समर्पित हो जाना स्‍वाभाविक है। पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि प्राण प्रतिष्‍ठा करने के बाद या भगवान के रूप में माने जाने के बाद ही मूर्तियां पूजा करने योग्‍य होती हैं , उसके पहले उसका कोई महत्‍व नहीं।

संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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