मेरे परिवार का नाम पुराण !!

कहा जाता है नाम में क्‍या रखा है ? अरे नाम में ही तो सबकुछ रखा है , लोगों के कर्म , लोगों के विचार , लोगों की कल्‍पना , सब नाम में ही तो छुपी होती है। इसलिए परिवार के लोगों के नाम से ही आप उनके परिवार की मानसिकता , उनके संस्‍कार को समझ सकते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए , तो भारतवर्ष में नाम रखने के इतिहास से ही हमारी सभ्‍यता और संस्‍कृति के विकास का पूरा पता चल जाएगा। 

हिंदू धर्म में न तो ईश्‍वर की कमी है और न इनके नामों की , यही कारण है कि पहले ईश्‍वर के नाम पर लोगों के नाम रखे जाते थे, दूसरी बात कि ईश्‍वर के अलावे नाम रखने के लिए और बहुत शब्‍द नहीं थे , महीने , दिनों , तिथियों से लेकर पहर तक का उपयोग नाम रखने में किसी जाता था। प्राचीन काल में सारे बच्‍चों के नहीं तो कम से कम अपने एक दो बच्‍चे का नाम तो लोग भगवान का रखते ही थे।  इसके पीछे एक सोंच थी कि बच्‍चे के बहाने तो कम से कम वे ईश्‍वर के नाम जप सकेंगे। 

इतना ही नहीं , दुख दर्द में या मृत्‍यु से पहले बेटे को भी पुकारा तो अनायास ईश्‍वर का नाम लिया जा सकेगा।  लेकिन आज लोगों को उसकी कोई चिंता नहीं , बुरे वक्‍त में ईश्‍वर के नाम पर वे लूटे जा सकते हैं , पर अच्‍छे वक्‍त में उसकी सत्‍ता को भी स्‍वीकारने में उन्‍हें अपनी प्रतिष्‍ठा खोने का भय होता है।

इस लेख में अपने परिवार के लोगों के नाम से मैं भारतवर्ष के बहुत सारे परिवार के बदलते विचारों , बदलती मानसिकता पर प्रकाश डाल रही हूं। मेरे दादाजी तीन भाई थे , तीनों के नाम थे ... 'वंशीधर' , 'मुरलीधर' और 'जगदीश'। इनके नाम से उस युग के अनुरूप उनके माता पिता की धार्मिक भावना को स्‍पष्‍टत: समझा जा सकता है। 'स्‍वर्गीय वंशीधर महथा जी' के पांच पुत्र और एक पुत्री थी , जिनमें से तीन पुत्रों और एक पुत्री का नाम भी ईश्‍वर के नामों का अनुकरण करते हुए दिया गया था .. 'शिवनंदन' , 'दीनानाथ' , 'रामलोचन' और 'गौरी'। पर चौथे पुत्र में ही फैशन की थोडी हवा लग गयी थी और उनका नाम 'अनिल' रखा गया। पांचवे पुत्र के समय उन्‍हे गुण ज्ञान की महत्‍ता का अहसास हुआ होगा , जिसके कारण उनका नाम 'ज्ञानेश्‍वर' रखा गया।

मेरे दादा जी 'स्‍वर्गीय मुरलीधर महथा जी' के भी पांच पुत्र और एक पुत्री हुई , बडे पुत्र के जन्‍म के वक्‍त साधु गुण वाले व्‍यक्ति को ईश्‍वर से कम दर्जा नहीं होने की बात मन में आयी होगी , तभी तो उनका नामकरण 'साधु चरण' किया गया। पर उसके तत्‍काल बाद विद्या और बुद्धि की महत्‍ता समझ में आयी होगी , जिसके कारण उनसे छोटे दोनो भाई बहनों का यानि मेरे पिताजी और बुआजी का नाम 'विद्या सागर' और 'बुद्धिमति' रखा गया। 

पर विद्या और बुद्धि से क्‍या होता है ? देश गुलाम था , उसे आजाद करने के लिए चाहे लाख प्रयास हो रहे थे , प्रयास करने वालों को तो जेल भेजा जा रहा था , ऐसी स्थिति में देश की आजादी के लिए ईश्‍वर पर भी विश्‍वास किया जाना आवश्‍यक था। इसलिए जेल में चिंतन में मग्‍न मेरे बडे दादा जी ने मेरे चाचाजी का नामकरण 'रामविश्‍वास' किया। उसके बाद के उनके जेल में रहते हुए जन्‍मलेने वाले चौथे भाई 'रामविनोद' और स्‍वतंत्र भारत मे जन्‍म लेने वाले पांचवे भाई 'रामचंद्र' हुए। छोटे दादाजी के तीनो बेटों के नाम भी 'शंकर' , 'भोला' और 'कैलाश' ही रखे गए। इस तरह उस पीढी तक के नामकरण में ईश्‍वर को काफी महत्‍व दिया गया।

दूसरी पीढी में फैशन का पूरा दौर शुरू हो गया था , हालांकि ईश्‍वर की उपेक्षा यहां भी नहीं की जा सकती थी। हमारे परिवार की दोनो बडी पोतियों का नाम 'भारती' और 'आरती' रखा गया था। हमारे घर के पहले पोते को भले ही पप्‍पू के नाम से पुकारा जा रहा हो , पर धार्मिकता और आधुनिकता दोनो को समावेश करते हुए मेरे चाचा जी ने उसका नाम 'परितोष चंद्र चंद्रशेखर' रखा , इसी प्रकार दूसरे भतीजे का नाम 'गिरीन्‍द्र कुमार गिरीश' और तीसरे भतीजे का नाम 'अमर ज्‍योति अवनीश कुमार' रखा गया। 

तीनो नाम रखने वाले मेरे तीसरे चाचाजी की प्रतिभा का कायल तो सब थे , पर विद्यालय में नाम लिखवाते वक्‍त उस नाम में से कुछ हिस्‍सा कटना ही था। तीनो नाम कटकर बडे पापा जी के दोनो बच्‍चों का नाम 'परितोष कुमार' 'गिरीश कुमार' तथा मेरे भाई का नाम 'अमर ज्‍योति'  रह गया। बडे पिताजी के छोटे बेटे का नाम 'अनूप' क्‍यूं पडा , इसके बारे में कभी कोई चर्चा सुनने को नहीं मिली।

भले ही मेरे परिवार में मेरे नाम 'संगीता' को रखने में मेरे पापाजी बॉलीवुड की किसी फिल्‍म से ही प्रेरित हुए हों , बडे भाई 'अमर ज्‍योति' का नाम भी चाचाजी की इच्‍छा के अनुरूप रखा गया हो , पर इस पृथ्‍वी के कण कण में ईश्‍वर को देखने वाले मेरे मम्‍मी पापाजी का दृष्टिकोण डिक्‍सनरी के हर शब्‍द में ब्रह्म को देखता रहा और मेरे छोटे चार भाई बहनों के नाम का आधार सिर्फ तुकबंदी रहा और इसी कारण दोनो छोटी बहनों के नाम 'कविता' और 'पुनीता' रख दिए गए।

 पहले मेरे बडे भाई के नाम 'अमर ज्‍योति' की तुकबंदी करते हुए छोटे भाइयों का नाम 'सत्‍य मूर्ति' और 'अशेष मुक्ति' रखा गया , पर बाद में इतना लंबा नाम को भी उचित न समझते हुए उनके नामों को 'अमरेश' , 'विशेष' और 'अशेष' करने का सोंचा गया। छोटे भाइयों के नाम 'विशेष' और 'अशेष' तो अभी भी हैं , पर 'अमर ज्‍योति' 'अमरेश' न हो सका।

रखे गए नाम में से किसी का सिर तो किसी की पूंछ कट जाने से मेरे चाचाजी काफी दुखी थे और बाद में उन्‍‍होने अपने किसी भी भतीजे भतीजी का नाम नहीं रखा। हां अपनी चारो बच्चियों को अपने मनोनुकूल नाम देकर स्‍वयं तो संतुष्‍ट हुए , पर उनके द्वारा किया गया बच्चियों का नामकरण सर्टिफिकेट्स तक ही सीमित रहा , उन्‍हें सबलोग पुकारू नाम से ही जानते रहें। वैसे आपको बताना आवश्‍यक है कि उनकी बेटियों के नाम 'श्रीराज राजेश्‍वरी सेठ शैलजा' , ' श्रीभावना स्‍मृति' , 'श्रीवाणी अर्चना' और 'निशांत रश्मि' है , यहां सभी श्री का मतलब 'लक्ष्‍मी' से हैं। 

हां अपने बेटे का नाम उन्‍होने भी बहुत छोटा यानि 'अव्‍यय कुमार' ही रखा है , इसे व्‍याकरण का अव्‍यय न समझा जाए , दरअसल इसके नाम को रखते वक्‍त इनकी मानसिकता खर्च में कटौती यानि व्‍यय न करने की थी। उसके बाद के चौथे चाचाजी के बच्‍चों का नाम भी पहले बच्‍चे 'रतन' की तुकबंदी से ही 'नूतन' , 'भूषण' और 'सुमन' रखे गए। आधुनिकता के साथ आगे बढते हुए छोटे चाचा जी के बच्‍चों तक आते आते नाम प्रेट्टी , मोनी , चिक्‍की हो गए।

अब मेरे परिवार की नई पीढी के सारे बच्‍चें यानि नाती नातिन और पोते पोतियों के नाम देखे जाएं , तो हमारी संस्‍कृति पर ही प्रश्‍न चिन्‍ह लग जाए। वो तो भला हो कुछ बूढे बूढियों का  जिनकी मन्‍नते पूरी होने की वजह से कहीं कहीं मां बाप दबाब में आकर ही सही , बच्‍चों के नाम रखने के लिए पूरी डिक्‍शनरी छान मारी और भगवान के अच्‍छे अच्‍छे नाम चुनकर रख लिए। 

इसके अलावे कुछ साहित्‍यप्रेमी बुजुर्गों के द्वारा हिंदी के कुछ अच्‍छे शब्‍दों को चुनकर भी बच्‍चों के नाम रखे गए , नहीं तो टिंकू , टीनू , गोलू , पुचु , बब्‍बी , सिल्‍वी , गोल्‍डी , यूरी आदि नामों ( ये नाम हमारे परिवार के बच्‍चों के हैं ) को सुनकर सोंचने को ही बाध्‍य होना पडता है कि आखिर ये बच्‍चे किस देश के वासी हैं ?

संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

Please Select Embedded Mode For Blogger Comments

और नया पुराने