google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 ज्‍योतिष के विकास के लिए इसका विकसित विज्ञान के साथ सहसंबंध बनाना आवश्‍यक ...

ज्‍योतिष के विकास के लिए इसका विकसित विज्ञान के साथ सहसंबंध बनाना आवश्‍यक ...

पृथ्‍वी की निरंतर गतिशीलता के कारण प्रत्‍येक दो घंअे में विभिन्‍न लग्‍नों का उदय है। इसकी दैनिक गति के कारण दिन और रात का अस्तित्‍व है, वार्षिक गति के कारण इसके ऋतु परिवर्तन का चक्र। गति के कारण ही चंद्रमा का बढता घटता स्‍वरूप है , गति के कारण विशिष्‍ट ग्रहों की पहचान है। सूर्य और चंद्र की गति के कारण ही नक्षत्रों का वर्गीकरण है , सूर्य और चंद्र का ग्रहण है। ग्रहों की गति के कारण ही संसार का नित नूतन पिरवेश है और इसी परिवर्तनशीलता के कारण इसका नाम जगत है। न्‍यूटन ने गति के सिद्धांत को समझा, तो भौतिक विज्ञान में क्रांति आ गयी। आज उन्‍ही सिद्धांतों को अधिक विकसित कर वैज्ञानिक अंतरिक्ष में अरबों मील की यात्रा करके तरह तरह की खोज करके सकुशल पृथ्‍वी पर लौट आते हैं।

सृष्टि काल के आरंभ से ही सूर्य , चंद्र और सभी ग्रहों की गति हमारे लिए आकर्शण का केन्‍द्र बने रहें। वैदिककालीन विद्याओं में यह प्रमुख विद्या थी , इसलिए इसे वेद का नेत्र कहा जाता था। उस समय से आजतक आकाशीय पिंडों की गति और स्थिति के विषय में बहुत जानकारी प्राप्‍त कर ली गयी है , सभी पिंडों की गति और परिभ्रमण पथ की इतनी सूक्ष्‍म जानकारी आज है कि आज से सैकडों वर्ष बाद के सभी ग्रहों की स्थिति , सूर्य और चंद्र ग्रहण की जानकारी मिनट सेकण्‍ड की शुद्धता के साथ दी जा सकती है। सूर्य चंद्र परिभ्रमण पथ की सम्‍यक जानकारी के कारण यह भी बताया जा सकता है कि पृथ्‍वी के किस भाग में यह ग्रहण दिखाई पडेगा। यही कारण है कि गणित ज्‍योतिष की पढाई संपूर्ण विश्‍व में हो रही है। गति की सम्‍यक जानकारी के कारण ही पंचांग में तिथि , नक्षत्र , योग , करण आदि का समुचित उल्‍लेख किया जाता है , पर फलित के मामलों में गहों की गति की उपेक्षा की गयी है। फलित ज्‍योतिष में ग्रहों की सिर्फ स्थिति पर ही विचार किया गया है , इसलिए आज तक इसके द्वारा कहा जाने वाला फल अधूरा और अनिश्चित रह गया है।

पृथ्‍वी स्‍वयं गतिशील है , दैनिक और वार्षिक गति के कारण अपने अक्ष और कक्षा में सदैव अपने को हजारो मील दूर ले जाती है। किंतु पृथ्‍वी वासी होने के कारण हमें इसकी गति का आभास भी नहीं हो पाता है , क्‍यूंकि पृथ्‍वी पर स्थित हर जड चेतन की गति पृथ्‍वी की गति के बराबर हो जाती है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार ट्रेन पर सवार सभी व्‍यक्ति विरामावस्‍था में होते हुए भी लंबी दूरी तय कर लेते हैं। फलित ज्‍योतिष के अध्‍येता अपने को ब्रह्मांड का केन्‍द्र विंदू मानकर इसे स्थिरावस्‍था में समझते हुए ही संपूर्ण ब्रह्मांड और आकाशीय पिंडों का अध्‍ययन करता है। ब्रह्मांड में दरअसल पृथ्‍वी के साथ शेष ग्रह भी सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। अत: पृथ्‍वी को विरामावस्‍था में मानने से इसके सापेक्ष सभी ग्रहों की सापेक्षिक गति की जानकारी होती है।

पृथ्‍वी सूर्य की प्रत्‍यक्ष परिक्रमा करता है , इस कारण उसके सापेक्ष सूर्य की समरूप गति को हम देख पाते हैं , चंद्रमा को भी पृथ्‍वी की प्रत्‍यक्ष परिक्रमा करते हुए देखा जा सकता है। भचक्र में ये दोनो ग्रह लगभग समरूप गति में होते हैं। सूर्य कभी उत्‍तरायण तो कभी दक्षिणायण होता है , उसके हिसाब से विभिन्‍न ऋतुएं होती हैं , विभिन्‍न नक्षत्रों से गुजरता है तो उसके अनुरूप उसका फल होता है। चंद्रमा के प्रकाशमान भाग के अनुरूप ही जातक की मनोवैज्ञानिक शक्ति होती है । किसी निश्चित तिथि को सूर्य आकाश के एक निश्चित भाग में ही होता है , पर उस दिन जन्‍म लेने वाले समस्‍त जातकों की कुंडली में विभिन्‍न भावों में दर्ज किया जाता है। उसका फल भी भिन्‍न भिन्‍न जातकों के लिए अलग अलग होता है।

आकाश में शेष ग्रहों का पृथ्‍वी से अप्रत्‍यक्ष गत्‍यात्‍मक संबंध है। यानि की सौरमंडल में अन्‍य सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हुए कभी पृथ्‍वी की ओर आ जाते हैं , तो कभी पृथ्‍वी के विपरीत दिशा में। इसके कारण पृथ्‍वी से विभिन्‍न ग्रहों की दूरी और सापेक्षिक गति बढती घटती है। पृथ्‍वी के सापेक्ष कभी कभी ग्रहों की गति ऋणात्‍मक भी हो जाती है। ‘गणित ज्‍योतिष’ में इसकी विशद चर्चा है , पर ‘फलित ज्‍योतिष’ का अध्‍ययन करते वक्‍त आज तक ग्रहों की इस गति को नजरअंदाज कर दिय गया , जो ग्रहों के बलाबल का सही आधार है। यह विडंबना ही है कि बंदूक की छोटी सी गोली में उसकी शक्ति का अनुमान उसकी गति के कारण हम सहज ही कर लेते हैं। हथेली पर एक छोटा सा पत्‍थर का टुकडा रखकर अपने को बलवान समझते हैं , क्‍यंकि उसे गति देकर शक्ति उत्‍सर्जित की जा सकती है , पर हजारो मील प्रतिघंटा की गति वाले भीमकाय ग्रहों की शक्ति को आज तक ज्‍योतिषी इसकी स्थिति में ढूंढते आ रहे हें। जाने अनजाने ग्रहों की गति के रहस्‍य को नहीं समझ पाने से फलित ज्‍योतिष की गति स्‍वत: अवरूद्ध हो गयी। यही करण है कि हजारो वर्षों से इसकी स्थिति यथावत बनी हुई है और लोग इसे अनुमान शास्‍त्र कहने लगे हैं।

प्रकृति के नियम बहुत ही सरल होते हैं , एक दो प्रतिशत ही अपवाद होते हैं,पर इसे समझने में हमें बहुत समय लग जाता है। फलित ज्‍योतिष की पुस्‍तकों में ग्रह शक्ति के निर्धारण के लिए बहुत सारे नियम हैं। स्‍थान बल , काल बल , दिक बल , नैसर्गिक बल , चेष्‍टा बल , अंश बल , योग कारक बल , पक्ष बल , अयन बल , स्‍थान बल के अलावे भी ष्‍डवर्ग अष्‍टकवर्ग आदि आदि। इसका अभिप्राय यह है कि हमारे .षि मुनि पूर्व ज्‍योतिषियों ने ग्रह शक्ति को समझने की चुनौती को स्‍वीकार किया था। इस परिप्रेक्ष्‍य में उनके द्वारा बहुआयामी प्रयास किया गया , इस लिए ग्रहशक्ति से संबंधित इतने नियम हैं , किंतु व्‍यवहारिक दृष्टि से एक ज्‍योतिषी इतने नियमों को आतमसात करते हुए तल्‍लीन रहकर भविष्‍य कथन नहीं कर सकता। इतने नियमों के मध्‍य विभिन्‍न ज्‍योतिषियों के फलकथन में एकरूपता की बात हो ही नहीं सकती। ज्‍योतिष के इन जटिल सूत्रों ने ग्रह फल कथन में ज्‍योतिषियों के निष्‍कर्ष में विरूपता पैदा कर इसके वैज्ञानिक स्‍वरूप को नष्‍ट करते हुए इसे अनुमान शास्‍त्र बना दिया है। इन उलझनों से बचने के लिए एकमात्र उपाय ग्रहों की गतिज और स्‍थैतिज ऊर्जा का सहरा लेना समीचीन सिद्ध हुआ है। फलित ज्‍योतिष में अन्‍य नियमों की तरह ये नियम भी ग्रह शक्ति निर्धारण के लिए एक नया प्रयोग नहीं है। सन् 1981 से अबतक पच्‍चीस तीस हजार कुंडलियों में किए गए प्रयोग का निचोड निष्‍कर्ष है।

फलित ज्‍योतिष सबसे पुरानी विधाओं में एक वैदिककालीन विद्या है। किंतु भौतिक विज्ञान में वर्णित न्‍यूटन के गति के सिद्धांत का आविष्‍कार सन् 1887 में हुआ , इससे पूर्व ज्‍योतिष में इसका उपयोग संभव नहीं था। पर उसके बाद इसका उपयोग फलित ज्‍योतिष के क्षेत्र में भी होना चाहिए था , क्‍यूंकि किसी भी विज्ञान का विकास विकसित विज्ञान के साथ सहसंबंध बनाकर ही होता है। अगर हम फलित ज्‍योतिष को विज्ञान बनाना चाहते हैं तो हमें भौतिक विज्ञान में वर्णित गतिज और स्‍थैतिज ऊर्जा का सहारा लेना , उसका उपयोग करना एक स्‍वस्‍थ दृष्टिकोण होगा। ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’ में ग्रहों की गति की विशद व्‍याख्‍या करते हुए इसकी विभिन्‍न प्रकार की गतियों का सपष्‍ट भिन्‍न भिन्‍न प्रभाव मानव जाति पर कैसे पडता है , का अध्‍ययन किया गया है।


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संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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