जिस ब्रह्मांड में इतने बडे बडे पिंड एक खास पथ पर निरंतर चल रहे हों , वहां किसी व्यक्ति के द्वारा यह स्वीकार नहीं किया जाना कि हम सब अपने शरीर में स्थित उर्जा के अनुसार ही कार्य कर पाते हैं, मुझे अजूबा लगता है। हम सभी जानते हैं कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति दूसरे के समान नहीं होता है। जन्म लेने के बाद की बात कौन कहे , गर्भ में ही हर बच्चे का स्वरूप और विकास भिन्न प्रकार का होता है । हर महीने उनका स्वास्थ्य भिन्न होता है , उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भिन्न होती है , उसका क्रियाकलाप अलग तरह का होता है। जन्म लेने के बाद तो सबकी परिस्थितियां अलग होती ही हैं, उसी के अनुरूप सबके क्रियाकलाप होते हैं।
एक बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके संपूर्ण शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास के लिए सबसे पहले माता और फिर पिता की आवश्यकता पडती है , उनका साथ न मिले तो इस विकास के बाधित होने की पूरी संभावना रहती है। इसके अलावे किसी के छोटे भाई बहन उसे स्वच्छंद माहौल देते हैं , तो किसी को अपने भाई बहन से पिटाई खा खाकर आधे होने की नौबत आती है। कोई अभिभावक के साथ किसी बात की जिद करता है तो उसका सारा जिद पूरा हो जाता है और दूसरा उसी जिद के कारण घर पहुंचकर दो चार बार ऐसी पिटाई खाता है कि उसकी जिद करने की आदत ही समाप्त हो जाती है। इस तरह अपने आप सबके अंदर सारे गुण और अवगुण विकसित होते रहते हैं।
बडे होने पर एक किशोर का मानसिक विकास न सिर्फ उसकी आई क्यू और पढने की क्षमता पर निर्भर करता है , वरन् इसके लिए हमारे गुरू , शिक्षक और विद्यालय के साथ साथ माता और पिता दोनो की बडी भूमिका होती है। किसी का सारा माहौल मनोनुकूल होता है और खेल खेल में बौद्धिक विकास की पूरी संभावना बन जाती है , तो कोई परिस्थिति की गडबडी के कारण पूरे विद्यार्थी जीवन माथापच्ची करते ही व्यतीत कर देता है। न तो विद्यालय का माहौल या पढाई का कोर्स उसे रास आता है और न ही शिक्षक या माता पिता के पढाने का ढंग। ऐसी हालत में वह कर्म करे तो किस प्रकार ?
इसी प्रकार कैरियर के माहौल और वैवाहिक संबंधों पर भी वातावरण का प्रभाव तय है। आप सामने जैसा माहौल देखते हैं , जैसी आपकी रूचि होती है , आप वैसा ही तालमेल बना पाते हैं। इसका अर्थ यह है कि कर्म करने में आप कभी भी स्वतंत्र नहीं होते, कोई भी काम लाचारी में ही करते हैं। यह बात अलग है कि काम के सफल हो जाने पर इसका श्रेय आपको दिया जाए या असफल होने पर सारा दोष आप ही झेलने को विवश हों , पर सच तो यह है कि काम करने की प्रेरणा हमें अपने अंतर्मन से मिलती तो है , पर उसे पूरा करने में परिस्थितियों का हाथ होता है , जिसमे हमारा वश बिल्कुल भी नहीं । फिर हम कैसे कह सकते हें कि काम करना हमारे हाथ में है ??