कल से ही मैं अपने देश में बेवजह फैले अंधविश्वास पर हमारे ब्लोगरों की निगाह की चर्चा कर रही हूं , इसी की दूसरी कडी आज प्रस्तुत है .......
ऋषिकेश खोङके "रुह" जी को सुनने में अजीब सा लग रहा है कि किसी के शरीर में देवी आ गयी है..सुनने मे अजीब लग सकता है की किसी के शरीर मे देवी आ गई
पर भारत मे ये आम बात है | आप भारत मे इस प्रकार की बातों को अंधविश्वास अथवा कुरितियाँ कह सकते है किन्तु मेरे लिये ये कहना जरा मुश्किल होगा | बात काफी पुरानी है और यादें भी धुंधली सी ही है पर आँखो के समक्ष एक चलचित्र है| अवसर है गौरी पूजन (महालक्ष्मी) का ,आरती चल रही है और धिरे-२ समापन की और है की अचानक काँपते हाथ-पैर , खुले हुवे बाल , झुमता शरीर और गले से निकलती अज्ञात आवाज़ के साथ मेरी माता | मै शायद देख कर डर गय होउन्गा | सहसा आवाज़ आती है "अरे अंगात देवी आली , पाया पडा" अर्थात शरीर मे देवी आयी है पैर पडो | एक - एक कर सभी लौग माँ के पैर पडने लगे | माँ सबको आशीर्वाद देती रही और कुछ आश्वासन भी जैसे "सगळ बर होईल, चिन्ता करु नको" अर्थात सब ठिक हो जायेगा चिन्ता मत करो इत्यादि |
शेफाली पांडे जी बालिका को माता के नाम पर पूजे जाते देखकर कहती हैं इन्हें इंसान ही बने रहने दिया जाए ग्रामीण इलाके में शिक्षण कार्य करने के कारण अक्सर मुझे वह देखने को मिलता है, जिसे देखकर यकीन करना मुश्किल होता है कि यह वही भारत देश है, जो दिन प्रतिदिन आधुनिक तकनीक से लेस होता जा रहा है,जिसकी प्रतिभा और मेधा का लोहा सारा विश्व मान रहा है, जहाँ की स्त्री शक्ति दिन पर सशक्त होती जा रही है , लेकिन इसी भारत के लाखों ग्रामीण इलाके अभी भी अंधविश्वास की गहरी चपेट में हैं, इन इलाकों से विद्यालय में आने वाली अधिसंख्य लडकियां कुपोषण, उपेक्षा, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार होती हैं, क्यूंकि ये एक अदद लड़के के इंतज़ार में जबरन पैदा हो जाती हैं, जिनके इस दुनिया में आने पर कोई खुश नहीं हुआ था, और यही अनचाही लडकियां जब बड़ी हो जाती हैं, तो अक्सर खाली पेट स्कूल आने के कारण शारीरिक रूप से कमजोरी के चलते मामूली सा चक्कर आने पर यह समझ लेती हैं कि उनके शरीर में देवी आ गयी है, हाथ पैरों के काँपने को वे अवतार आना समझ लेती हैं, मैं बहुत प्रयास करती हूँ कि बच्चों की इस गलतफहमी को दूर करुँ, मैं उन्हें समझाती हूँ कि ये देवदेवता शहर के कॉन्वेंट या पब्लिक स्कूलों के बच्चों के शरीर में क्यूँ नहीं आते ?
राजकुमार ग्वालानी जी भी पूछते हैं .... है कोई टोनही से मुक्ति दिलाने वाला
छत्तीसगढ़ का प्रचलित ज्यौहार हरेली कल है। इस त्यौहार को जहां किसान फसलों के त्यौहार के रूप में मानते हैं और अपने कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं, वहीं यह भी मान्यता है कि यही वह दिन होता है जब वह शैतानी शक्ति जिसे सब टोनही कहते हैं विचरण करने के लिए निकलती है। इसी के साथ इस दिन को तांत्रिकों के लिए अहम दिन माना जाता है। इस दिन तांत्रिक तंत्र साधना करने का काम करते हैं। भले इसे अंधविश्वास कहा जाता है, लेकिन यह एक कटु सत्य है कि टोनही जैसी चीज का अस्तित्व होता है। ऐसा साफ तौर पर ग्रामीणों का कहना है। इनका कहना है कि अगर किसी को इसे देखना है तो वह छत्तीसगढ़ आ सकता है। वैसे ये देश के हर कोने में हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में इसके बारे में ज्यादा किस्से हैं। एक तरफ ग्रामीण टोनही के होने का दावा करते हैं तो दूसरी तरफ इसको अंध विश्वास बताया जाता है। ग्रामीण इसको अंध विश्वास बताने वालों से कहते हैं कि क्यों नहीं वे उन स्थानों पर जाने की हिम्मत करते हैं जहां पर टोनही के बारे में कहा जाता है कि वह विचरण करती है। अगर है कोई ऐसा बंदा जो टोनही से मुक्ति दिला सकता है तो वहां जाए और बताए कि टोनही हकीकत नहीं बल्कि महज अंधविश्वास है।
अंकुर जी लिखते हैं कि झारखंड के देवधर जिले के पालाजोरी इलाके में पत्थरघट्टी गांव में पांच महिलाओं को डायन बताकर सरेआम बेआबरू किया गया और उनकी निर्मम पिटाई की गई। मुस्लिम समुदाय की इन पांचों महिलाओं को न सिर्फ पीटा गया बल्कि निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया गया और बाद उन्हें मैला खाने को मजबूर किया गया। संथाल परगना प्रमंडल के पुलिस उप महानिरीक्षक मुरारीलाल मीना ने बताया कि यह पूरी करतूत किसी बाबा की है जिसका प्रभाव पूरे इलाके में है। उनके मुताबिक पत्थरघट्टी गांव की ही पांच महिलाओं के बारे में यह अंधविश्वास है कि उन पर किसी मुवक्किल साहब का साया है और जब साया आता है तो ये महिलाएं उन लोगों की निशानदेही करती हैं जो डायन हों।
सुधा अरोडा जी का एक आलेख कविता वाचक्न्वी जी ने भी पोस्ट किया है, जिसमें ग्रामीण महिलाओं को डायन बताकर उनके अधिकारों से वंचित करने की बात की गयी है।.
वर्षा जी संतरे की एक फांक के सहारे हमारे जीवन में फैले अंधविश्वास पर लिखती हैं .....
"मम्मी देखो कितनी छोटी फांक है!" वो संतरा खा रही थी और एक छोटी सी फांक पर उसकी नज़र पड़ी.
"बेटा उसे फेंक दे."
"क्यों मम्मी?"
"क्योंकि ऐसी फांक खाने से.. तेरे पापा को भगवान् ले जाएगा."
"अरे ऐसा क्यों होगा? कहाँ लिखा है ऐसा? ये भी कोई बात हुई कि छोटी फांक खाने से पापा .."
"अब है तो है..मत खा उसे."
उसने फांक छोड़ दी. आठ साल की थी वो. अंधविश्वास से बहुत अधिक पाला नहीं पड़ा था, मन नहीं मान रहा था पर जहां पापा कि ज़िन्दगी का सवाल था वहाँ रिस्क लेने की भी हिम्मत नहीं थी.
धीरे धीरे बड़ी हुई. बहुत से ऐसे अंधविश्वासों की उसने धज्जियां उड़ा दीं. बिल्ली रास्ता काट जाती तो वो और खुश होकर आगे बढती. नाखून काटने की याद उसी दिन आती जिस दिन मंगलवार होता. शनिवार को दुनिया भर की शौपिंग करती (शनिवार को नयी चीज़ें खरीदने से मना किया जाता है खासकर धातु की पर उसकी समस्या ये थी की पूरे सप्ताह में वही दिन होता था जब थोडा वक
इतना ही नहीं , अंधविश्वास के कारण सुबह गांव का नाम ही बदल दिया जाता है .. सिसवन में हर सुबह बसता है एक बेगूसराय सिसवन (सिवान): विज्ञान की तेज गति ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित टोटकों के आगे कभी-कभी धीमी लगती है। सिवान के सिसवन प्रखंड के घुरघाट गांव में ऐसा हीं दिखता है। यहां के लोग सुबह में अपने गांव का नाम नहीं बताते। इसके पीछे यह मान्यता है कि नाम बताने से उस दिन के लिए उनका भाग्य बिगड़ जाएगा। जरूरत पड़ने पर अगर सुबह में गांव का नाम बताना पड़े, तो ग्रामीण 'घुरघाट' के बदले 'बेगूसराय' कह काम चलाते हैं।
गांव में मान्यता है कि अगर प्रात:काल में ग्रामीण इसका नाम लें तो उनका बना काम भी बिगड़ जाएगा। ग्रामीणों के अनुसार इससे व्यवसाय में घाटा, दुर्घटना, मृत्यु या किसी अन्य परेशानी आदि से सामना होता है या इसके समाचार मिलते हैं। गांव के चंद्रिका लाल शर्मा के अनुसार इस कारण वे व्यवसाय में घाटा भोग चुके हैं। ग्रामीण संतोष शर्मा की मानें तो एक सुबह इस गांव का नाम लेने के कारण वे एक झूठे मुकदमें में फंस गए थे।
जाकिर अली रजनीश जी तो अपने ब्लॉग में समाज में फैले अंधविश्वास पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं ......
जी हाँ, यह कोई कल्पना नहीं, शान्ति नगर, कायमगंज, फर्रूखाबाद, उ0प्र0 की सत्य घटना है, जिसमें शान्ति नगर मोहल्ले के निवासी तेजवीर राठौर ने अपने 12 वर्षीय पुत्र को ठीक करने के लिए एक तांत्रिक को सौंप दिया था। वह तांत्रिक बच्चे को ठीक करने के नाम पर बंधक बनाकर चिमटी के उसके शरीर का मांस नोचता था और देवताओं को चढ़ाता था। गत तीन माह से बच्चा इस अत्याचार को सह रहा था। लेकिन एक दिन जैसे ही उसे मौका मिला, वह तात्रिक के घर से भाग निकला। बच्चे ने बताया कि मकान नं0 6, गली नं0 8, मोहल्ला कलवला, फिरोजाबाद, उ0प्र0 का निवासी तांत्रिक नवमी के दिन उसकी बलि चढ़ाने वाला था।
इसके अतिरिक्त लखीमपुर खीरी में एक किसान द्वारा अपनी संतान की भलाई के लिए पड़ोस की लड़की की बलि चढ़ाने का मामला, गाँव पूरे कुर्मिन, मजरे सेमरी रनापुर, थाना ऊंचाहार, रायबरेली, उ0प्र0 में एक तांत्रिक के कहने पर जिन्न उतारने के नाम पर एक युवक द्वारा अपनी सगी भागी को पटक-पटक कर मार डालने की घटनाएं भी अभी हमारे दिमाग में गूँज रही हैं। इसके अलावा इसी सप्ताह में लखनऊ की मोहनलालगंज तहसील के गौरा गाँव में फैले दिमागी बुखार को ठीक कराने के लिए झाड़ फूँक का सहारा लिये जाने की घटना भी पढ़ने सुनने में आ ही रही हैं, जबकि वहाँ पर दिमागी बुखार के कारण पहले ही दो औरतों की मृत्यु हो चुकी है।
विवेक रस्तोगी जी (ये कल्पतरू वाले नहीं हैं) चिंतित हैं कि किसी तांत्रिक के सुझाव पर, अमीर बनने के लिए अपनी ही सिर्फ 11 साल की मासूम बेटी से बलात्कार करने, और फिर सालों तक करते रहने की यह खबर कुछ ज्यादा ही विचलित कर देती है अंतस को... सोचकर देखिए, कोई भी बच्चा कैसी भी परेशानी का सामना करते हुए स्वाभाविक रूप से सबसे पहले मां या बाप की गोद में सहारा तलाश करने के लिए भागता है, लेकिन ऐसे मां-बाप हों तो क्या करे वह मासूम...?
एक बेटी के साथ सालों तक यह घिनौना कृत्य होते रहने के बावजूद जब अमीरी ने घर में दस्तक नहीं दी, तो भी उनकी आंखें नहीं खुलीं और दूसरी बेटी के साथ भी वही सब किया गया... और यही नहीं, इस बार मां-बाप ने तांत्रिक को अपनी 15-वर्षीय बेटी की इज़्ज़त से खेलने दिया... इतना अंधविश्वास... तरक्की करते हुए कहां से कहां आ गया हिन्दुस्तान, लेकिन लगता है कि अंधविश्वास की जड़ें मजबूत होती चली जा रही हैं...
अयबज खान जी कहते हैं कि राजस्थान के प्रतापगढ़ में भेरूलाल नाम के एक शख्स को सपना आया, जिसमें उसने एक घोड़ा और उसके पैरों के निशान देखे। सपने में उसके देवता रामदेव ने उसे गांव में मंदिर बनाने का आदेश भी दिया। भेरूलाल ने सुबह उठते ही गांववालों को इस सपने के बारे में ख़बर दी, सपने के मुताबिक उसे गांव में ही एक छोटा सा घोड़ा और उसके पैरों के निशान भी मिल गये।
बस फिर क्या था, भेरूलाल और गांव वाले फटाफट मंदिर बनाने में जुट गये। लेकिन जैसे ही ये ख़बर जंगल में आग की तरह फैली, सरकारी अमला भी गांव में पहुंच गया। लेकिन गांव वाले जिद पर अड़े थे, कि मंदिर तो ज़रूर बनाएंगे, आखिर भगवान खुद उनके द्वार पर जो आये हैं। लेकिन उस भेरुलाल को ये कौन समझाए, कि जिस सपने की बात वो कर रहा है, वो है तो ठेठ देसी, लेकिन उसके तार चाईना से जुड़े हैं। अब इन नासमझो को कौन समझाए, कि भईया ये एक छोटा सा प्लास्टिक का घो़ड़ा है, जो बच्चों के खेलने के काम आता है। और तो और उस घोड़े के पेट पर लिखा भी है मेड इन चाईना.. आगे और भी संग्रह है , जिसे आप अगली कडी में पढ सकेंगे।