आप सबों को नए विक्रमी संवत् की ढेर सारी शुभकामनाएं !!

पिछले कई दिनो से मैं इस ब्‍लॉग को अपडेट नहीं कर पायी , गत्‍यात्‍मक चिंतन पर मेरा चिंतन जरूर चल रहा था। उसमें लिखे पहली पोस्‍ट पर , हमारे विवाह की वर्षगांठ पर लिखी गयी दूसरी पोस्‍ट पर  और पाबला जी की पोस्‍ट पर आप सबों की ढेर सारी शुभकामनाएं मिली , जिसके लिए मैं आप सबों का आभार व्‍यक्‍त करती हूं। उम्‍मीद करती हूं , आगे भी आप सबों का ऐसा ही स्‍नेह बना रहेगा। 

आज अंग्रेजी कैलेण्‍डर के अनुसार काम करने की हमारी आदत हो गयी है। हिंदी तिथियों और महीनों का नाम भी हममे से बहुत लोग जानते नहीं होंगे। हमारे हिंदी कैलेण्‍डर का वर्ष संवत्‍सर कहलाता है। संवत्सर का अर्थ होता है ..  12 महीनों का समूह। इस संवत्‍सर के अनुसार ही हमारी काल गणना होती है। विक्रमी संवत के अनुसार, नव वर्ष की शुरुआत चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पहली तारीख से होती है । धार्मिक अनुष्ठानों, मांगलिक कार्यो आदि में तिथियों का निर्धारण विक्रम संवत के अनुसार होता है। जहां अंग्रेजी कैलेण्‍डर में किसी तारीख से सिर्फ सूर्य की स्थिति का पता चलता है , हमारा अपना कैलेण्‍डर इसके साथ चंद्रमा की भी जानकारी देता है। इस तरह विक्रमी संवत अधिक वैज्ञानिक है। कहा जाता है कि विदेशियों के शासनकाल में इसे समाप्‍त कर दिया गया था , फिर से  विक्रम संवत की शुरुआत महाराजा विक्रमादित्य ने की थी। 

ब्रह्म पुराण के अनुसार, चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तारीख से ही सृष्टि का आरंभ हुआ है। शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही चंद्र की कला का प्रथम दिवस है। अतः इसे छोड़कर किसी अन्य दिवस को वर्षारंभ मानना उचित नहीं है।संवत्सर शुक्ल से ही आरंभ माना जाता है क्योंकि कृष्ण के आरंभ में मलमास आने की संभावना रहती है जबकि शुक्ल में नहीं। विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से न केवल नवरात्रि में दुर्गा व्रत-पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगद देव का जन्म, आर्य समाज की स्थापना, महान नेता डॉ. केशव बलिरामका जन्म भी इसी दिन हुआ था। साथ ही, आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन हुई थी।

16 मार्च 2010 को चैत्र मास के शुक्‍ल पक्ष के आरंभ के साथ ही विक्रम संवत् 2067 का आरंभ होगा। कई प्रदेशों में इस दिन का स्वागत कड़वे घूँट से किया जाता है। सबसे पहले नीम का रस पिया जाता है। इस मौसम में नीम में फूल भी आते है और कोमल पत्ते भी आते है। कुछ लोग इसके कोमल पत्ते चबाते भी है। यह तो सभी जानते है कि नीम एक अच्छी औषधि है। नीम की पत्तियों और फूलों का रस पीने से रक्त शुद्ध होता है और त्वचा के रोग नहीं होते। पहले ही दिन कड़वा घूँट पीने का अर्थ है कि जीवन सिर्फ़ मीठा ही नहीं है अनेक कड़वे अनुभव भी होते है जिन्हें झेलने के लिए हमें तैयार रहना है। इस तरह हम मानसिक रूप से दुःखों का सामना करने के लिए तैयार रहेंगें और नीम का रस पीकर हम निरोग भी रहेंगें।

 भारत के कई राज्‍यों में नए वर्ष का स्‍वागत करते हुए उत्‍सव मनाया जाता है। यह दिन जम्मू-कश्मीर में नवरेह,पंजाब में वैशाखी, महाराष्ट्र में गुडीपडवा, सिंधी में चेतीचंड,केरल में विशु,असम में रोंगलीबिहूआदि के रूप में मनाया जाता है। आंध्र में यह पर्व उगादिनाम से मनाया जाता है। सिंधु प्रांत में नवसंवतको चेटीचंडो[चैत्र का चांद] नाम से पुकारा जाता है। सिंधी समाज इस दिन को बडे हर्ष और उल्लास के साथ उत्सव के रूप में मनाता है। इस दिन हम ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैं कि नव वर्ष हर प्रकार से हमारे लिए कल्याणकारी हो। नया वर्ष आपके लिए बहुत खुशियां , बहुत सफलता से संयुक्‍त करे , आप सबों को नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं !!

संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

21 टिप्पणियाँ

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  1. आपको भी शुभकामनाएँ
    साधुवाद इस जानकारी भरे आलेख के लिये

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  2. आप को भी इस पावन अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएँ। कृपया कुछ जानकारी दीजिए:
    (1) वर्ष का प्रारम्भ शुक्ल पक्ष से होता है जब कि चैत्र का प्रारम्भ कृष्ण पक्ष से। मतलब कि साल चैत्र शुक्ल 1 से प्रारम्भ होकर चैत्र कृष्ण 14 या अमावस्या तक होता है। ऐसा क्यों है? सामान्य ढंग से सोचें तो इसे चैत्र से प्रारम्भ हो कर फाल्गुन में समाप्त हो जाना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि कृष्ण पक्ष को अच्छा नहीं माना जाता ?
    (2) मलमास की गणना और उसके लगने के समय की प्रक्रिया क्या है ?
    (3)चन्द्र गणना के हिसाब से साल में 28x12 = 336 या लेकर 29x12=348 दिन हुए । मतलब सौर वर्ष से न्यूनतम अंतर 17 दिन हुआ। हर तीसरे वर्ष लगने वाले मलमास में यह अंतर किस तरह समायोजित किया जाता है? उसकी मोटी गणना क्या है और उसे किसी महीने विशेष के आगे पीछे ही लगाया जाता है क्या?

    इससे जुड़ी और बातें भी बता सकें तो सबके लिए लाभकारी हो।
    धन्यवाद।

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  3. नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

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  4. विक्रमी संवत २०६७ की आपको हार्दिक शुभकामनायें। अच्छी लगी यह जानकारी।
    बचपन में हम भी नीम की कोपलें खाते थे । कभी कभी तो नीम के पत्तों का सूप भी पीते थे । इससे ज्यादा कड़वा और क्या हो सकता है।

    देर से ही सही , आप को वैवाहिक वर्षगाँठ की हार्दिक शुभकामनायें।

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  5. आपके इस सुन्दर कार्य के लिए शुभकामनायें , इस तरह के लेख एक दस्तावेज की तरह जरूरत मंदों के लिए राह दिखाएँगे !

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  6. आपको भी शुभकामनाएँ

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  7. आप का यह तर्क कि 'संवत्सर शुक्ल से ही आरंभ माना जाता है क्योंकि कृष्ण के आरंभ में मलमास आने की संभावना रहती है जबकि शुक्ल में नहीं।' बिलकुल समझ में नहीं आया।
    जिसे आप मलमास कह रही हैं वह वही अधिक मास है जिस में सूर्य की संक्रांति नहीं होती। अधिकमास का निर्धारण शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक के माह में सूर्य की संक्रांति नहीं होने से होती है। यही कारण है कि प्रत्येक मलमास या अधिकमास या जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं हमेशा शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है और अमावस्या की समाप्ति के साथ ही समाप्त होता है।
    वास्तविकता तो यह है कि भारतीय परंपरा में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही मासारंभ माना जाता है। पूर्णिमा को पंद्रहवीं तिथि और अमावस्या को तीसवीं तिथि अंकित किया जाता है। चैत्र का आरंभ भी नववर्ष के प्रथम दिन से ही होता है। दक्षिण भारतीय परंपरा में ऐसा ही है। उत्तर भारत में कब से मासारंभ कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से मानना आरंभ किया गया इस की जानकारी मुझे नहीं है। अमावस पितरों के श्राद्ध का दिन होता है। इस दिन से मासांत पसंद न आया हो और पूर्णिमा और कृष्ण प्रतिपदा के दिन चंद्रमा प्रबल होने के कारण उसे मासांत और मासारंभ मानना आरंभ किया हो। क्यों कि इन दोनों दिनों को शुभ कार्य करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। जब कि अमावस और शुक्ल प्रतिपदा के दिन चंद्रमा निर्बलतम होने के कारण उन दिनों में शुभ कार्य वर्जित हैं।
    वैसे एक भारतीय परंपरा यह भी है कि सौर चैत्र का आरंभ 13 अप्रेल से माना जाता है। क्यों कि उस दिन सूर्य राशि चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। वर्ष और मास गणना के लिए सौर कलेंडर ही अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है। ग्रेगेरियन कलेंडर की वैश्विक मान्यता ने इसे सिद्ध भी किया है।
    आप को और सभी को संवत्सर पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ। अभी 13 अप्रेल को बैसाखी पर फिर से मौका है एक बार और शुभकामनाएँ देने का।

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  8. नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

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  9. आपको भी शुभकामनाएँ नए विक्रमी संवत् की

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  10. .
    .
    .
    आदरणीय संगीता जी,
    आपको व सभी पाठकों को भी शुभकामनाएँ,
    आभार!

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  11. अब यह भारतीयता ऐसे आलेखों और सन्‍दर्भों तक सिमटती जा रही है। दिन में भारतीयता का नगाडा पीटने वाले भी 31 दिसम्‍बर की रात को जाग कर नव वर्ष का स्‍वागत करते हैं।

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  12. नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

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  13. नवसम्वतसर की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

    लेख बहुत बढ़िया रहा!

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  14. आपको भी हार्दिक शुभकामनायें जी

    प्रणाम

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  15. आप को नववर्ष की शुभकामनाएं !!

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  16. आपको भी नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.

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  17. अच्छा लगा,आपका यह ज्ञान भरा लेख,आपको भी बहुत,बहुत शुभकामनायें ।

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