Jhoot nahi bolna sach कहना
झूठ के पांव होते ही नहीं हैं ,
कभी कहीं भी पहुंच सकता है।
पर बिना पांव के ही भला वह ,
फासला क्या तय कर सकता है ?
पर बिना पांव के ही भला वह ,
फासला क्या तय कर सकता है ?
भटकते भटकते , भागते भागते ,
उसे अब तक क्या है मिला ?
मंजिल मिलनी तो दूर रही ,
दोनो पांव भी खोना ही पडा !!
सच अपने पैरों पर चलकर ,
बिना आहट के आती है।
निष्पक्षता की झोली लेकर ,
दरवाजा खटखटाती है।
न्याय, उदारता की इस मूरत को ,
इस कर्तब्य का क्या न मिला ?
हर युग में पूजी जाती है ,
हर वर्ग में इसे सम्मान मिला !!
सत्य पर कदम रखने वालों को,
कठिन पथ पे चलना ही पडेगा।
विघ्न बाधाओं पर चल चल कर,
मार्ग प्रशस्त करना ही पडेगा।
राम , कृष्ण , बुद्ध और गांधी को,
बता जीवन में क्या न मिला ?
आत्मिक सुख, शांति नहीं बस,
जीवन को अमरत्व भी मिला !!