आज सभी पत्र पत्रिकाओं में .. चर्चा परिचर्चाओं में ग्लोबल वार्मिंग का ही शोर है .. बताते हैं पृथ्वी गर्म होती जा रही है .. हानि ही हानि है इससे .. चिंता का विषय बना हुआ है ये मुद्दा आजकल .. वैज्ञानिकों के द्वारा वातावरण की वार्मिंग को कम किए जाने के लिए .. धरती को बचाने के लिए निरंतर बैठकें की जा रही हैं .. चिंतन किया जा रहा है .. मुझे बडा अजीब सा लग रहा है .. आखिर क्या हानि है .. इधर के वर्षों में सुबह से दिनभर के रूटीन को देखूं तो .. ग्लोबल वार्मिंग से मुझे तो सिर्फ बचत ही बचत .. लाभ ही लाभ नजर आ रहा है।
ग्लोबल वार्मिंग के फलस्वरूप ठंड सिकुडकर मात्र 20 या 25 दिनों का रह गया है .. किसी तरह काटा जा सकता है .. नहाने के लिए पानी गरम करने मेंहोनेवाली ईंधन की बचत .. रूम हीटर या ब्लॉवर की कोई आवश्यकता नहीं .. और न ही शरीर को गर्म बनाए रखने के लिए गर्म खानों पर माथापच्ची करने की आवश्यकता .. मेहनत भी कम .. जाडे के महीने में भी हर जगह बचत ही बचत .. इस समय कहीं आने जाने का झंझट छोड दो .. घर में पुराने कपडों में दुबककर पडे रहो .. ऊनी कपडे बनवाने , खरीदने की बचत .. रजाई , कंबल आदि बनवाने , खरीदने का झंझट कम .. इसमें लगनेवाले समय और पैसों की बचत ।
इसके विपरीत गर्मी के दिन फैलकर छह महीने के हो गए हैं .. इन छह महीनों में तो बचत तो तिगुनी , चौगुनी तक हो जाती है .. तापमान बढते हुए आज 48 डिग्री तक पहुंच चुका है .. ईंधन की कितनी कम जरूरत पडती है .. सबकुछ गरमागरम .. 45 डिग्री तक स्वयं गरम हुए पानी को .. दुध को गैस पर चढाया .. तुरंत उबल गए .. गरम पानी के कारण धोए गए चावल , दाल , सब्जियों तक का तापमान स्वयं ही 45 डिग्री तक .. इससे गैस की सबसे अधिक बचत होती है.. सुबह के बजाय दोपहर में खाना बनाया जाए .. तो थोडी मुश्किल तो अवश्य हो .. पर कम से कम एक सिलिंडर पंद्रह दिन और चल जाए।
जब ग्लोबल वार्मिंग न था तो पहले की गृहिणियों की परेशानी कितनी थी .. कपडे धोए तो सुखाने के लिए छत या आंगन में जाओं .. आज धोकर घर पे ही कहीं टांग दिए जाएं .. दो चार घंटों में कपडों को सुखना ही है .. फर्श पर पानी गिर जाए पोछने की कोई आवश्यकता नहीं.. यहां तक कि बिस्तर पर भी पानी गिर गया .. बाहर सूखने देने की कोई आवश्यकता नहीं .. तेज धूप की आंच वहां भी आ रही है .. बिस्तर को कुछ ही देर में सूख ही जाना है .. डब्बे में पडे सामानों के भी खराब होने का कोई झंझट नहीं .. किसी भी डब्बे का सामान इस भीषण गर्मी से नहीं बच सकता .. पुरानी गृहिणियों की तुलना में हमारे सुखी होने का राज का कारण तो ग्लोबल वार्मिग ही है।
गर्मी बढ गयी है तो बिजली की उपभोग तो बढेगा ही .. अब बारंबार बिजली की कटौती .. भले ही झेलना कठिन हो .. पर बिल की बचत तो हो ही जाती है.. अत्यधिक गर्मी के कारण पानी की भी कमी हो गयी है .. भला मनमानी सप्लाई हो भी तो कैसे .. सुबह सुबह आ जाने वाला पानी अब कम से कम दो घंटे देर से
ही आएगा.. सबलोग ब्रश करने के इंतजार में बैठे रह जाते हैं .. अब ब्रश ही नहीं हुई .. तो चाय , नाश्ते सबमें कटौती होनी ही है .. सुबह सुबह कई कप चाय की ही बचत हो जाती है .. और अधिक देर से पानी आए .. तो नाश्ते की भी .. इस पानी के कारण स्नान में ही 12 बज जाए .. तो लोग एक ही बार खाना ही तो खाएंगे .. गर्मी अधिक रहे तो एक बार खा भी लिया .. तो इतनी गर्मी में पाचन संस्थान भी सही काम कहां कर पाएगा.. न खाना पचेगा और न भूख लगेगी .. रात्रि में भी नाम मात्र का खाना ..खाद्यान्न की बचत तो होनी ही है .. इससे कितने भूखों को खाना मिल जाए ।
ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है .. कि बाजार में सब्जियों की कमी हो जाती है .. भले ही बाजार जानेवाले मुंह लटाकाकर खाली झोला लिए वापस आते हों .. पर पॉकेट के पैसे अवश्य सुरक्षित बने रहते हैं .. घर में मौजूद दूध , दही , बेसन , दलहन और चने मटर आदि का उपयोग कर भी तो घर चलाया जा सकता है .. गृहिणी को भी आराम ही आराम .. हरी साग सब्जियां बीनने , छीलने, काटने में लगने वाले समय की पूरी बचत .. ऐसे में गृहिणियों के समय की जो बचत होगी .. उसमें वह अपनी रूचि का कोई काम कर सकती हैं .. इसी कारण तो महिला ब्लॉगर प्रतिदिन अपना ब्लॉग भी अपडेट कर लेती हैं .. पर इतने तरह की बचत और लाभ के बावजूद भी वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग पर चिंतित होकर सेमिनार किए जा रहे हैं .. कहीं ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी को छुटकारा मिल जाए .. तो महिलाओं की समस्याएं कितनी बढ जाएंगी ..।
(यह आलेख ताऊ डॉट कॉम पर प्रकाशित किया जा चुका है )