कितने दरिंदे हो जाते हैं लोग

बोकारो के सेक्‍टर 4 में आने तक स्‍थायित्‍व की कमी के कारण हम किसी कामवाली को भी नहीं रख पाए थे , सब कहते कि पूरी प्रोफेशनल हैं यहां कि कामवालियां , उन्‍हें महीने के पैसों और काम से मतलब होता है बस। पर नए जगह में किसपर विश्‍वास करें , यहां आने के बाद भी कुछ दिन सोंचते रहें। कामवाली के चुनाव में मैं सर्वाधिक प्रमुखता उसके साफ सफाई वाले रहन सहन को देती थी , जिसके कारण देर हो रही थी। एकाध को रखा भी , तो उसका रहन सहन और काम मुझे नहीं जंचा , कुछ ही दिनों में उसकी छुट्टी करनी पडी। बच्‍चों के साढे सात बजे स्‍कूल की बस पकडा देने के बाद के दिन भर अकेलेपन में घर के छोटे और सब सुविधायुक्‍त होने से मुझे काम में दिक्‍कत नहीं हो रही थी ,  इसलिए पडोसियों को एक अच्‍छी कामवाली की तलाश करने की जिम्‍मेदारी देकर मैं निश्चिंत थी।

कुछ ही दिनों बाद एक दोपहर बच्‍चों को लेकर मैं लेटी ही थी कि दरवाजे पर हल्‍की सी दस्‍तक हुई। दरवाजा खोलने पर एक महिला को खडा पाया , जिसे देखकर उसके आने के प्रयोजन को समझने में मैं असमर्थ थी । न तो उसके पास कोई सामान था , जिससे उसके सेल्‍सवूमैन होने का अदाजा होता और न ही वो पडोस में रहनेवाली किसी महिला जैसी दिखी। जब उसने अपने आने का प्रयोजन बताया तो मैं तो चौंक सी गयी ,  उसका व्‍यक्तित्‍व कामवाली का तो बिल्‍कुल ही नहीं था , सो अनुमान लगाने का प्रश्‍न ही नहीं था। गेहूएं रंग में तीखे नैन नक्‍श के साथ एक चमक सी चेहरे पर , अच्‍छी हिंदी में धीमी आवाज में बात करती हुई उस युवति को देखकर कोई भी कह सकता था कि वह किसी संभ्रांत परिवार की है। पर आज वह बरतन मांजने और झाडू पोछे के काम के लिए मेरे सामने खडी थी। जिस विश्‍वस्‍त व्‍यक्ति के माध्‍यम से वह मेरे पास पहुंची थी कि मेरे 'ना' कहने का कोई प्रश्‍न ही नहीं था। जब नाम पूछा तो उसने बताया 'संगीता'।

दूसरे ही दिन वह काम पर आ गयी , दो चार दिनों में मेरे यहां के काम की जानकारी हो गयी , मुस्‍कराती हुई बस काम करती रहती। सुबह सुबह नहाधोकर पूजा करके सबसे पहले मेरे यहां आती , उसके बाद दूसरी जगह जाती। पर्व त्‍यौहार में प्रसाद के पैसे न होते , तो दौडकर 50 रूपए लेने मेरे पास आती , उसके परिवार के एक एक सदस्‍य नहाधोकर पूजा के लिए खडे होते थे। भले ही उसका पति घर घर माली का काम किया करता , पर सुबह सुबह उसके घर पर अखबार आता , आकर कभी कभी कोई न्‍यूज भी बताती , पति मैट्रिक पास था आर वो मिडिल , फिर भी माली का काम करने को मजबूर। उसके  दो बेटे और दो बेटियां थी , सबको स्‍कूल में पढा रही थी। मैं समझती थी , बहुत दबाब में है वो , पर बिना किसी लालच के इतना शांत होकर पूरी जिम्‍मेदारी के साथ काम करते मैने आजतक किसी कामवाली को नहीं देखा । जैसी मां थी , वैसी ही बेटियां , मुश्किल से उनकी उम्र आठ और दस वर्ष की होगी , स्‍कूल से आकर खाना खाने के बाद मां को सोए देख चुपचाप सारे घरों के काम निबटा जाती। मां हडबडाकर उठती , अंधेरा देखकर घबडा जाती , ये कुछ न बताती , जब वह घर से निकलने लगतीं , तो दोनो हंसती , कहती कि आपका काम हो गया है।

मुझे उसके बारे में जानने की बहुत जिज्ञासा थी , तब खाली भी रहा करती थी , मैने उससे खुलकर बात करना शुरू किया। बातचीत के क्रम में उजागर हुआ कि इसके पिताजी और ससुरजी दोनो एच ई सी , रांची में एक ही साथ सर्विस करते थे , दोनो में काफी दोस्‍ती थी और दोनो ने अपने बच्‍चों का विवाह कर दिया था। इसका पति बहुत दिनों तक छोटी मोटी नौकरी के लिए दौडधूप करता रहा , पर कहीं काम न मिल सका। जितने दिन ससुर नौकरी में रहें , इन्‍हें तो कोई दिक्‍कत नहीं हुई , इसी मध्‍य दो बेटे और दो बेटियों ने जन्‍म भी ले लिया। रिटायर होने के बाद भी कुछ दिन ससुर ने चलाने की कोशिश की , पर पैसे लगातार कम हो रहे थे , हारकर अपने बचे पैसे दोनो पोतियों के विवाह के लिए रखकर बेटे बहू को घरखर्चे के लिए कमाने कहकर कुछ दिनों मे गांव चले गए। दोनो ही पक्षों के सब भाई बहन में से कुछ नौकरी में लग गए थे या फिर व्‍यवसाय में , ठीक ठाक कमा रहे थे , पर इनके लिए कुछ भी काम न था।

इनलोगों ने बहुत काम ढूंढा , पर कुछ भी न मिला तो एक ठेकेदार के साथ मजदूरी करने रांची से बोकारो पहुंचे, पर कॉलोनी में रहनेवाला कोमल शरीर भला मजदूरी कर पाता ? दोनो बीच बीच में थककर बैठ जाते । ठेकेदार को उनपर दया आ गयी , उन्‍हें एक स्‍कूल में काम पर लगवाने का वादा किया। इनके पास किसी काम का अनुभव तो था नहीं , एक रिश्‍तेदार बी एस एल में माली का काम करता था। इसका पति उससे कुछ जानकारी लेने लगा , ठेकेदार ने कहा कि किसी स्‍कूल में पति को माली और पत्‍नी को झाडू पोछे का काम दिलवा देगा। कुछ महीने ये इंतजार करते रहें , पर अपना भाग्‍य साथ दे तभी किसी का साथ भी मिल पाता है। तबतक बची खुची क्षमता भी समाप्‍त हो चुकी थी, सो मात्र 300 रूपए प्रति माह में पति ने घर घर माली और पत्‍नी ने झाडू पोछे और बरतन धोने का काम करना शुरू किया। कॉलोनी में ही एक व्‍यक्ति ने इन्‍हें अपने तार के घेरे के अंदर कोने पर घर बनाने की छूट दे दी थी , उसमें एक कच्‍चा अस्‍थायी कमरा बना लिया था , जिसमें जैसे तैसे परिवार के छहो व्‍यक्ति दिन काट रहे थे।

हमारे क्‍वार्टर के एक ओर वह रहती थी , दूसरी ओर एक बडे से मैदान को भी लोग झोपडपट्टी बनाए हुए थे , किसी काम के लिए आए एक ठेकेदार ने उसी स्‍थान पर पक्‍के का एक कमरा और साथ में बाथरूम बनाया था। जब इसके रहने के स्‍थान को असुरक्षित पाकर इसके भाई ने ठेकेदार का वो कमरा खरीदकर इन्‍हें देना चाहा , तो इसने इस भय से इंकार कर दिया कि इधर रहने वाले बच्‍चे संस्‍कारी नहीं हैं , कहीं मेरे बच्‍चे भी बिगड न जाए और वह अकेले वहां कष्‍ट काटते रहें। कम पैसे में ही सही , इंतजाम से चलने से उनका जीवन सही चलने लगा था , अपने बच्‍चों के भविष्‍य को लेकर बहुत चिंतित रहती , कहती लडकियों के विवाह के पैसे ननद के पास हैं , इन्‍हें मैट्रिक करवा दें तो इनके लिए अच्‍छे लडके मिल जाएंगे। बेटे बेटियों से छोटे थे , बेटों को भी वह मैट्रिक के बाद किसी प्रकार के काम सिखाने की चिंता में रहा करती , ताकि उनका जीवन इसकी तरह बर्वाद न हो।

लगभग पांच वर्ष मेरे यहां काम करने के बाद मुझे उसे छोडकर फिर से कॉपरेटिव कॉलोनी में आना पडा था। आते वक्‍त उसने चारो बच्‍चों के जन्‍मविवरण लिखे कागज तक मुझे थमाएं , पर मैं जन्‍मकुडली तक भी बनाकर न दे सकी। यहां आने के दो महीने बाद मैं उसके बाकी सौ रूपए लौटाने ढूंढती हुई उसके घर गयी , तो उसने बहुत कृतज्ञता प्रकट की। वास्‍तव में उसे उम्‍मीद भी नहीं थी कि मैं उसे पूरे महीने के पैसे दूंगी , उसने उस महीने दो चार दिन ही तो काम किया था और एडवांस में पैसे ले चुकी थी। उस दिन वह मुझे अपने घर के अंदर बुलाती रही , पर अंदर था भी क्‍या , बांसों खपच्चियों के दीवाल से तैयार किया एक छोटा सा कमरा , जिसके छत को प्‍लास्टिक डालकर छाया गया था। मैं बाहर से ही बातें करती लौट गयी , वैसे मुझे उनकी मदद करने की इच्‍छा थी और उनके संपर्क में बने रहना चाहती थी। पर काफी दिनों तक मेरा उस कॉलोनी में आना जाना न हो सका , बाद में एक पडोसी से मालूम हुआ कि किसी दरिंदे की नजर उनकी बेटियों को लग चुकी थी और उसने छोटी के साथ जबरदस्‍ती कर उसकी जान तक ले ली थी , इस घटना के बाद उनलोगों ने भय से बोकारो छोड दिया था। मैने उनका पता करना चाहा , पर कुछ भी पता न चल सका । कितने दरिंदे हो जाते हैं लोग , मेहनत मजदूरी करने वालों को भी चैन से जीने नहीं देते , जिस देश में ऐसी ऐसी घटनाएं होती हों , वहां स्‍वतंत्रता दिवस का क्‍या अर्थ ??
संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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