धर्म का मतलब क्या है
पिछले चार छह दिनों से शहर के बाहर थी , बाहर होने पर ही मुझे कभी कभार टी वी देखने का मौका मिल जाया करता है। आज सुबह आते वक्त भी जी न्यूज चैनल पर एक कार्यक्रम चलता पाया , जो अति उत्साह में एक वैज्ञानिक स्टीफेंस हॉकिंस द्वारा विज्ञान को ईश्वर मानने के वक्तब्य पर आधारित थी। हालांकि इनसे पहले बहुत सारे वैज्ञानिकों ने एक सर्वशक्तिमान की अवधारणा की पुष्टि भी की है , पर इनका मत भिन्न है। चैनल पर ही दिखाया गया कि इस बात पर धार्मिक लोग भी उलझे हैं , जिनका मानना है कि कर्म कभी भी कर्ता के बिना नहीं होते और इस दुनिया में ऐसा बहुत कुछ होता है , जिसके कर्ता को नहीं देखा जा सकता , वो ही ईश्वर है। प्राचीन काल से अबतक आस्तिकों , नास्तिकों के मध्य बहस की सीमा नहीं है , पर अंतिम निष्कर्ष पर नहीं आया जा सका है और आनेवाले समय में भी इसका अंत नहीं हो , जबतक विज्ञान हर एक रहस्य पर से पर्दा न हटा दे।
आज के वैज्ञानिक युग में ईश्वर का जो भी नाम दे दिया जाए , हमलोग इसे प्रकृति भी मान सकते हैं , पर प्राचीनकाल से ही लोगों में ईश्वर , अल्लाह या गॉड के नाम पर एक सर्वशक्तिमान को मानने और उसके क्रियाकलापों के बारे में चिंतन करने प्रवृत्ति रही है। इस सर्वशक्तिमान के रूप में सत्य को समझने के क्रम में हम भावावेश में आकर भले ही अंधविश्वासी हो जाते हों , पर तलाश तो अवश्य सत्य की हुआ करती है। पर विज्ञान भावना में नहीं बहता , कार्य और कारण के मध्य एक स्पष्ट संबंध को देखते हुए सत्य की ओर बढता है , इसलिए इस रास्ते में अंधविश्वास का विरोध है। पर ईश्वर या सर्वशक्तिमान साध्य है , तो धर्म की तरह ही विज्ञान उसे प्राप्त करने का एक साधन। प्रकृति के सारे नियमों को ढूंढकर ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है , पर प्रकृति के सारे रहस्यों से पर्दा उठाने में विज्ञान को युगों लग जाएंगे। विज्ञान तो धर्म की तरह ही उसके क्रियाकलापों को समझने का एक साधन मात्र है , इसे ईश्वर कैसे कहा जा सकता है ??