google.com, pub-9449484514438189, DIRECT, f08c47fec0942fa0 सिक्‍के का दूसरा पहलू

सिक्‍के का दूसरा पहलू

hamari kahani

एक झूठ के बाद पढें मेरी अगली कहानी ... सिक्‍के का दूसरा पहलू


आज इस व्‍हील चेयर पर बैठे हुए मुझे एक महीने हो गए थे। अपने पति से दूर बच्‍चों के सान्निध्‍य में कोई असहाय इतना सुखी हो सकता है , यह मेरी कल्‍पना से परे था। बच्‍चों ने सुबह से रात्रि तक मेरी हर जरूरत पूरी की थी। मैं चाहती थी कि थोडी देर और सो जाऊं , ताकि बच्‍चे कुछ देर आराम कर सके , पर नींद क्‍या दुखी लोगों का साथ दे सकती है ? वह तो सुबह के चार बजते ही मुझे छोडकर चल देती। नींद के बाद बिछोने में पडे रहना मेरी आदत न थी और आहट न होने देने की कोशिश में धीरे धीरे गुसलखाने की ओर बढती , पर व्‍हील चेयर की थोडी भी आहट बच्‍चों के कान में पड ही जाती और वे मां की सेवा की खातिर तेजी से दौडे आते , और मुझे स्‍वयं उठ जाने के लिए फिर मीठी सी झिडकी मिलती।


स्‍कूल जाने से पहले वे मेरे सारे काम समाप्‍त कर और मेरी सारी जरूरतों की चीजों को सहेजकर जाते , ताकि जरूरत पडने पर वह वस्‍तु उचित स्‍थान पर मिल जाए। स्‍कूल से आकर भी बच्‍चे मेरी सारी समस्‍याओं को सुनते और समाधान करते, रसोई के सारे कार्य और घर गृहस्‍थी के कार्य तो उनके हिस्‍से में थे ही। एक महीने से मैं अपनी लाचार हालतमें दोनो बच्‍चों के क्रियाकलापों को ही देख रही थी। क्‍यूंकि मेरे दोनो पैरों में प्‍लास्‍टर था और मैं उठने बैठने से भी लाचार हो गयी थी। ये तो व्‍हील चेयर की ही मेहरबानी थी कि घर के सभी हिस्‍सों में घूम घूमकर अपने शरीर के साथ ही साथ मन और दिमाग को भी चलायमान करने में मैं समर्थ हो पा रही थी , अन्‍यथा मेरी और भी बुरी हालत होती।

आज सिद्धांत के आने की प्रतीक्षा में बैठी बरामदे में बैठी जाडे के मीठी धूप का आनंद ले रही हूं। दोनो बच्‍चे ऋचा और ऋषभ पापा को लेने स्‍टेशन गए हुए हैं। दिल्‍ली से आनेवाली गाडी तो तीन बजे उसके शहर पहुंच जाती है , इस हिसाब से साढे तीन बजे उसे घर पहुंच जाना चाहिए था , पर अभी तो ढाई ही बजे हैं , इस तरह पूरे एक घंटे देर है , फिर गाडी का भी एकाध घंटे देर आना कोई नई बात नहीं , इस तरह पूरे दो घंटे का इंतजार करना पड सकता है मुझे। दो घंटे की देरी सोंचकर ही मेरे चेहरे पर उदासी छा गयी। इतना इंतजार करना व्‍हील चेयर पर बैठे किसी भी व्‍यक्ति के लिए बहुत मुश्किल है। यदि मैं अच्‍छी हालत में होती , तो रसोई में जाकर सिद्धांत का पसंदीदा व्‍यंजन ही बना लेती। वैसे वे खाने पीने के इतने शौकीन भी नहीं कि उनकी याद में थोडा समय रसोई में भी काटा जा सके।


कुछ सोंचकर मैं अंदर गयी और बुनाई का सामान लेकर बाहर आयी। इस एक महीने में बुनाई ही मेरी सच्‍ची सहेली बन गयी है। जब भी मन नहीं लग रहा होता है , बुनाई हाथ में आ जाती है। इस एक महीने में मैंने कितने ही स्‍वेटर बना डाले हैं। बेटे के लिए बन रहे स्‍वेटर में मेरे हाथ तेजी से चलने लगे। मुझे याद आया, सिद्धांत का ऐसा इंतजार मैंने कभी नहीं किया है। अबतक उनके घर में पहुंचने मात्र की खबर से ही मेरी स्‍वतंत्रता में खलल दिखाई पडती थी, चाहे मैं अपने मायके में होऊं , ससुराल में या फिर अपने घर पर।


ऐसी बात नहीं थी कि उनमें कोई अवगुण था या उनके चरित्र में कोई गडबडी थी , बात बस इतनी सी थी कि अभी तक उनके विचारों से मेरे विचारों का तालमेल नहीं हो सका था। सच तो यह है कि मैं ही अभी तक उन्‍हें कोसती आ रही थी, उन्‍हें जाहिल, गंवार या नीचले स्‍तर का समझती आ रही थी। पता नहीं , किस ढंग से माता पिता ने उनका पालन पोषण किया था , न खाने पीने का ढंग , न ही पहनने ओढने का सलीका , न घूमने फिरने या पिक्‍चर देखने की चाहत और न ही पत्‍नी या बच्‍चों को कोई उपहार देने का शौक। बात बात पर पैसे के महत्‍व को समझाता , आधुनिकता से संबंधित हर खर्च को फिजूलखर्ची समझता और हर प्रकार के खाते में पैसे जमा करने की चिंता में मेरे हर खर्च पर टोकाटोकी करनेकी आदत .. ऐसे पति से मुझे सामंजस्‍य बनाना होगा , मैंने सपने में भी नहीं सोंचा था।

हर कुंवारे दिल की तरह मेरे भी कुछ सपने थे। कोई राजकुमार मेरा पति होगा , जो मुझे जमीन पर पांव भी न धरने देगा, मेरे नाज नखरों को बर्दाश्‍त करेगा। मुझे नई नई जगहों पर घुमाएगा, फिराएगा, मैं नए स्‍टाइल के रंग बिरंगे कपडों और गहनों से सुसज्जित रहा करूंगी। मैने कुछ गलत भी तो नहीं सोंचा था , बचपन से ही पिताजी को मां की हर इच्‍छा पूरी करते पाया था। मां के मुंह से कुछ निकलने भर की देर होती , चाहे वो कपडे गहने हों, सौंदर्य प्रसाधन हों या घर गृहस्‍थी का समान, पापा को उसे खरीदने में थोडी भी देर नहीं होती। यहां तक कि मम्‍मी की हर इच्‍छा पापा इशारे सेसमझ जाते। बाजार में आयी नई से नई चीज भी हमारे घर में मौजूद रहती। पापा सिर्फ मम्‍मी की ही नहीं, हम दोनो भाई बहनों की भी इच्‍छा पूरी करते। शहर के स्‍तरीय स्‍कूल में हमारी शिक्षा पूरी हो रही थी और मम्‍मी पापा के सपने हमारे लिए बहुत ऊंचे थे। बेटा अफसर बनेगा और बेटी राज करेगी। पर्व, त्‍यौहार और छुट्टियों में हम सभी घूमते फिरते , बाजार करते , पिक्‍चर देखते और होटल से खाना खाकर ही घर लौटते थे। मम्‍मी के भाग्‍य से पडोसिनों को ईर्ष्‍या होती थी।

पापा की कमाई भी बहुत अधिक थी , ऐसी बात नहीं थी। वे भी एक बडे व्‍यवसायी नहीं , ईमानदार सरकारी अफसर ही थे। पर नौकरी करनेवालों को तनख्‍वाह तो इतनी मिल ही जाती है कि नियोजित परिवार आराम से गुजर बसर कर सके। परिवार के किन्‍हीं अन्‍य लोगों का दायित्‍व पापा पर नहीं था। दादाजी का पेंशन दादा जी और दादी जी के गांव में गुजारे के लिए काफी था। हमारे लिए गांव से भी आवश्‍यकता के बहुत सामान आ जाया करते थे। पापा और मम्‍मी दोनो ही खाओ पीओ और मौज करो’ के सिद्धांत पर विश्‍वास रखते थे। उनके विचारों का पूरा प्रभाव हम दोनों भाई बहनों पर भी पडा थी। हम दोनो खाने पीने के शौकीन नित्‍य नए नए व्‍यंजनों की फरमाइश करते और जो घर पर नहीं बन पाता , उसे खाने होटल में चल दिया करते थे। इसी प्रकार हम पहनने ओढने के लिए नए डिजाइन और फैशन के कपडों का चुनाव करते और मम्‍मी पापा उन कपडों को खरीदते हुए उनके चुनाव की प्रशंसा करते। छुट्टियों में भी हम लोग बडे उत्‍साह से घुमने फिरने का कार्यक्रम बनाते और इसमें भी उनका पूरा सहयोग मिलता। ऐसी हालत में हमलोग पढाई में कब सामान्‍य से अतिसामान्‍य होते चले गए , इसका किसी को ध्‍यान भी नहीं रहा , विशेष की तो महत्‍वाकांक्षा भी नहीं थी। सिर्फ अच्‍छे स्‍कूल में एडमिशन करवाकर और समय पर फी देकर मम्‍मी पापा अपने कर्तब्‍यों की इतिश्री समझते रहे।

जैसे ही मैंने बी ए की परीक्षा दी , मेरे विवाह की चर्चा जोर शोर से शुरू हुई। शीघ्र ही एक घर वर पापा को पसंद आ गया और मेरी शादी पक्‍की हो गयी। पढाई लिखाई के क्षेत्र में आगे कुछ कर पाने की क्षमता तो मुझमें थी नहीं, शीघ्र ही विवाह के लिए तैयार हो गयी और एक माह के अंदर दुल्‍हन बनकर ससुराल आ गयी। सिद्धांत भी उसी की तरह अपने घर का इकलौता था , विवाह में दोनो परिवार का उत्‍साह देखने लायक था। विवाह के कुछ दिनों बाद जब रिश्‍तेदारों की भीड छंट गयी , तो मैं सिद्धांत के साथ शहर आ गयी थी। पिताजी ने घर गृहस्‍थी बसाने के लिए जो भी उपहार दिए थे , सब मेरे साथ ही आ गए थे। पापा ने मेरी शादी में पूरा पी एफ खाली कर दिया गया था। जिस बेटी का पालन पोषण इतने नखरों के साथ किया गया था , उसके कपडे, गहने और गृहस्‍थी का अन्‍य सामान भी तो आधुनिकतम होने ही चाहिए। अपनी बन्‍नों की शादी में उन्‍होने कोई कसर नहीं छोडी थी। आखिर लडका भी तो उन्‍हें सर्वगुणसंपन्‍न मिला था। मम्‍मी और पापाजी की नजरों में पढा लिखा , सुंदर, शिष्‍ट , शालीन , चरित्रवान ,, सरकारी नौकरी करता हुआ अपने परिवार का इकलौता लडका था सिद्धांत।

विवाह के बाद बाजार से नई नई चीजें लाकर अपनी घर गृहस्‍थी को संवारने में मुझे बडा आनंद आता , पर शाम को घर आते ही सिद्धांत उन चीजों की प्रशंसा न कर व्‍यर्थ पैसे न बर्वाद करने की सलाह देते नजर आते। इससे कई दिनों तक मेरा मन उखडा रहता , पर आदतन फिर उत्‍साहित होकर बाजार करती और फिर नसीहत शुरू। कितनी कठिनाई से मैंने अपनी इस आदत पर काबू पाया था। उसके बाद तो बाजार में दिखाई पडनेवाली हर खूबसूरत वस्‍तु को देखकर सिर्फ मन मसोसकर ही रह जाती हूं। किसी पडोसन के घर नई टी वी , नए डिजाइन का फ्रिज या वाशिंग मशीन आया है , फोन लग गया है ... इस तरह की किसी भी चर्चा से सिद्धांत को सख्‍त नफरत है। इसमें से कुछ दिखावे की चीज है और कुछ शरीर को आलसी बनाने वाली। कभी कभी तो मैं रो ही पडती थी , पता नहीं लाड प्‍यार से पालन पोषण का यह चिन्‍ह था या मेरी उथली मानसिकता का।

पर दो वर्षों के अंतराल में मेरे दोनो बच्‍चों ने जन्‍म लेकर मेरी गोद खुशियों से भर दी थी। मेरे तो हर्ष का ठिकाना ही न था , सिद्धांत भी बडे उत्‍साहित थे। गर्भवती हालत में तो उन्‍होने मेरी देखभाल अच्‍छे से की ही , छोटे बच्‍चों की देख रेख में भी उन्‍होने मेरा पूरा हाथ बंटाया। इस कारण बच्‍चे तो खूबसूरत और तंदुरूस्‍त हुए ही , मेरा अपना स्‍वास्‍थ्‍य भी काफी अच्‍छा रहा। पर फिर भी वे मेरे दिल से अपने लिए कडुवाहट न निकाल सके। बच्‍चें की पढाई लिखाई पर भी पूरा ध्‍यान सिद्धांत ने ही दिया। शहर के सबसे अच्‍छे स्‍कूल में बच्‍चों का दाखिला और हर वर्ष कक्षा में अच्‍छे स्‍थान लाने का श्रेय सिद्धांत को ही जाता है। ऑफिस से आने के बाद दो घंटे बच्‍चों के साथ बैठकर उनकी समस्‍या सुलझाना वे नहीं भूलते। इसी कारण शाम को कहीं घूमने फिरने का भी कोई कार्यक्रम नहीं बन पाता। प्रारंभ में कभी कोई दंपत्ति घूमने आ भी जाते थे , पर धीरे धीरे उन्‍होने ये सिलसिला बंद ही कर दिया है। मनोरंजन , फिल्‍म , पर्यटन ... ये सब इनके लिए महत्‍वहीन है। बच्‍चों पर भी पिता के विचारों का पूरा प्रभाव है , यह सोंचकर मेरा क्षुब्‍ध और आशंकित रहा करना जायज भी था।

मुझे याद आया , एक शाम बच्‍चों ने जब नाश्‍ता मांगा था , मैंने फटाफट एक व्‍यंजन बनाया था। बच्‍चे खा ही रहे थे कि ये भी पहुंच गए थे। इनका हिस्‍सा भी निकालकर रख दिया था। बच्‍चों ने इतने चाव से नाश्‍ता किया कि मैं खुश ही हो गयी थी , मैने उनकी ओर भी प्‍लेट बढा दिया था और खुद भी खाने बैठ गयी थी। खाते हुए भी सिद्धांत की मुखमुद्रा गंभीर बनी रही , तो प्रशंसा सुनने की इच्‍छा से मैं पूछ बैठी .. ‘नाश्‍ता कैसा है ?’उन्‍होने उदासीनता पूर्वक जबाब दिया, ‘अच्‍छा है , पर बच्‍चों को ऐसी तली भूनी चीजें मत खिलाओ। उन्‍हें दूध में बनी या उबली चीजें ही खिलाया करो। इनका स्‍वास्‍थ्‍य अच्‍छा रहेगा।‘ यह सुनकर मुझपर तो मानो वज्रपात ही हो गया था। जरूर इनकी कंजूसी की भावना ने ही ऐसा जबाब दिया है , मुझे याद आया , जब यह व्‍यंजन बनाना मैंने अपनी सहेली के यहां सीखा था , दूसरे ही दिन घर में इसे बनाने की इच्‍छा प्रकट की थी , मां ने अनुमति भी दे दी थी , पहली ही बार यह इतना स्‍वादिष्‍ट बना था , परिवार में सबने एक साथ बैठकर इस व्‍यंजन का मजा लिया था और यहां इसी व्‍यंजन को बनाने पर उन्‍होने प्रशंसा में एक शब्‍द भी नहीं कहा। उसके बाद मैंने कोई विशेष व्‍यंजन बनाना तक छोड दिया था।

मैंने फिर से घडी पर नजर डाला , साढे तीन बज गए थे। अभी तक उन लोगों के नहीं पहुंचने का अर्थ यह था कि गाडी थोडी लेट ही होगी। उस दिन मैं कितनी खुश थी , जब सिद्धांत ने उसे बताया था कि वह एक महीने के लिए ट्रेनिंग पर बाहर जा रहा है। मैंने सोंचा था , कुछ दिन तो अपने ढंग से जीने को मिलेंगे। सुबह 8 बजे उन्‍हें रवाना होना था , खुशी खुशी उनके जाने की तैयारी में लग गयी। कुछ सूखे नाश्‍ते साथ में पैक भी कर दिए थे और बढिया खाना खिलाकर उन्‍हें विदा किया था। कभी कभार तो ऐसा मौका मिलता है , वैसे तो घर के एक एक काम में इनकी निगाह रहती है ,हर बात में टोकाटोकी की आदत। आज रविवार था , बच्‍चे अपने कमरे में पढ रहे थे। उन्‍हें स्‍टेशन से छोडकर आयी तो घर में बिल्‍कुल शांति थी। एक महीने मैं अपने ढंग से घर चलाऊंगी , रसोई में जाकर सारे डब्‍बों को चेक किया , समाप्‍त हुए सामानों की लिस्‍ट तैयार की , पूरे महीने का मीनू तैयार किया , घूमने फिरने का कार्यक्रम बनाया , आज मेरा उत्‍साह देखते ही बनता था।

इस तरह के मौकों को मैं कभी भी बर्वाद नहीं करती थी। मेरे जीवन में पहली बार ऐसा मौका विवाह से पहले ही आया था। पंद्रह दिनों के लिए मममी और पापा हम दोनो भाई बहनों को छोडकर बाहर चले गए थे , हमारी परीक्षा का समय था , इसलिए छोडना उनकी मजबूरी थी। पढने की चिंता तो मम्‍मी और पापा को थी , हमने तो पुस्‍तकों को हाथ भी नहीं लगाया। कॉलेज की क्‍लासेज एटेंड करने के अलावे सारा दिन टी वी पर प्रोग्राम या फिल्‍में देखतें , शहर के मशहूर जगहों पर घुमते फिरते और कभी होटल तो कभी घर पर ही बनाकर नए नए व्‍यंजनों का आनंद लेते। हम दोनों ने सारे राशन और पैसे पंद्रह दिनों में ही खत्‍म कर दिए थे। फिर कभी कभी ऐसा मौका जीवन में आता रहा। सुखद कल्‍पना में खोयी, काम में व्‍यस्‍त कपडे लेकर गुसलखाने में जाने के लिए आंगन की सीढियां उतर ही रही थी कि मेरा पांव फिसल गया और मैं विचित्र ढंग से गिर पडी।



चीख सुनकर दोनो बच्‍चे दौडे हुए आए , गाडी मंगवाई और मुझे लेकर अस्‍पताल पहुंचे। दोनो पैरों में फैक्‍चर होने के कारण प्‍लास्‍टर के अलावे कोई उपाय न था। कई दिनों तक अस्‍पताल में रहने के बाद ही मैं वापस घर आयी। मैं तो भावना शून्‍य हो गयी थी। इस दौरान बच्‍चों से कई बार पापा को बुलाने को कहा , पर बच्‍चे पापा की ट्रेनिंग में कोई खलल नहीं डालना चाहते थे। उन्‍होने अपनी पढाई के साथ साथ घर की अन्‍य व्‍यवस्‍था किस प्रकार की , कम से कम मेरी समझ के तो परे था। 17 वर्ष की बेटी और 15 वर्ष के बेटे के क्रियाकलापों से तो मैं दंग ही रह गयी थी। मम्‍मी पापा जब हमें छोडकर गए थे तो मेरी उम्र 21 वर्ष और भैया की 19 वर्ष की थी , पर हममें कितना बचपना था और इन दोनो बच्‍चों का बडप्‍पन , दायित्‍व का बोध .. निश्‍चय ही सिद्धांत के लालन पालन के ढंग का परिणाम था। पहले की बात होती , तो मैं इस बात से कुढ ही जाती , पर इन एक महीने में मुझे पति की हर सीख का अर्थ समझ में आ गया था।

पति के व्‍यवहार से जब भी मैं क्षुब्‍ध होती , मन का बोझ हल्‍का करने के लिए अलका के पास पहुंच जाया करती थी। वह मेरी बचपन की एकमात्र सहेली थी , जो हमारे ही शहर में रहती थी , इस कारण उससे अभी तक मेरा संपर्क बना हुआ था। उम्र में एक होने के बावजूद वह विचारों से परिपक्‍व थी और हमेशा सही राय दिया करती थी। सिद्धांत की सारी शिकायतें सुनने के बाद भी वह स्थि‍रता से एक ही जबाब देती ... ‘शालू , तुम सिक्‍के के एक ही पहलू को देखा करती हो, जब तुम्‍हारे पति में कोई कमजोरी नहीं, तो व्‍यर्थ परेशान
रहती हो। अपने परिवार के लिए समर्पित पति पर व्‍यर्थ का दोषारोपण करती हो। अगर वो पैसे जमा करता है , तो तुम्‍ही लोगों के लिए न। जिस दिन तुम्‍हें सिक्‍के का दूसरा पहलू दिखाई पडेगा, तुम्‍हारे जीवन में सुख ही सुख होगा।‘ पर उस समय मेरी समझ में अलका की कोई बात नहीं आ सकी थी। भला तिल तिल कर मरने के बाद भी सुख नसीब होता है क्‍या ? तब मुझे क्‍या पता था कि सिक्‍के के दूसरे पहलू के दर्शन के लिए उनकी अनुपस्थिति में इतनी विषम परिस्थितियां उपस्थित हो जाएंगी।

अचानक ऑटो की आवाज सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई। तीनो ऑटो से उतरकर तेजी से मेरी ओर बढे। सिद्धांत को बच्‍चों से ही सारी बाते मालूम हो चुकी थी, सहानुभूति जताते हुए बोले .. ‘इतनी बडी बात हो गयी और तुमलोगों ने मुझे खबर भी नहीं की।‘ ’बच्‍चों ने मेरी बात नहीं मानी, मैने उन्‍हें आपको खबर करने को कहा था।‘ मैने शांत होकर कहा। ’बच्‍चे तुम्‍हारी बात कहां से मानेंगे, कभी मैने मानने ही नहीं दिया।‘ बरामदे में पडी कुर्सी पर बैठते हुए उन्‍होने बच्‍चों की ओर देखा। ’अच्‍छा किया , जो आपने उन्‍हें मेरी बात मानने नहीं दी , मेरी बात मानकर बच्‍चे बर्वाद ही हो जाते। मैने सोंचा भी नहीं था कि आपके पालन पोषण का ढंग इन्‍हें इतना परिपक्‍व बना देगा। इनके एक महीने के क्रियाकलाप से न सिर्फ मैं , वरन् मुझे देखने के लिए यहां आने जाने वाले हर व्‍यक्ति प्रभावित हुए है। इन्‍होने मुझे कोई दबाब न देते हुए मेरे इलाज से लेकर घर गृहस्‍थी तक का काम कुशलता पूर्वक संभाला है, इसका श्रेय सिर्फ आपको जाता है, पर मैने आपको हमेशा गलत समझा, इसका मुझे अफसोस है‘ मेरा स्‍वर भर्रा गया। ’अब बस भी करो मम्‍मी, सुबह का भूला शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।‘ मेरे द्वारा अपनी गल्‍ती स्‍वीकार किए जाने से बेटी ऋचा आज बहुत खुश थी। ‘उसे तो पाया कहते हैं’ दीदी की हर बात की टांग खींचने वाले ऋषभ ने शैतानी से कहा। और फिर तीनो हंस पडे। उन तीनों की हंसी में आज पहली बार मैं भी शामिल हो गयी।
संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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