रंग हमारे मन और मस्तिष्क को काफी प्रभावित करते हैं। कोई खास रंग हमारी खुशी को बढा देता है तो कोई हमें कष्ट देने वाला भी होता है। जिस तरह यदि हम प्रकृति के निकट हों , तो खुद को फायदा पहुंचाने वाले वस्तुओं की ओर हमारा ध्यानाकर्षण होता है , उन वस्तुओं का प्रयोग हम आरंभ कर देते हैं , उसी तरह 'गत्यात्मक ज्योतिष' की मान्यता है कि कमजोर ग्रहों के प्रभाव को दूर करने के लिए जिस रंग का हमें सर्वाधिक उपयोग करना चाहिए , उस रंग को हम खुद पसंद करने लगते हैं और उस रंग का अधिकाधिक उपयोग करते हैं। इस कारण रंगों की पसंद के अनुसार भी किसी व्यक्ति की परिस्थितियों और स्वभाव के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
सफेद रंग पसंद करने वाले लोग बचपन में ही अपने माहौल में किसी न किसी प्रकार की कमजोरी को देखते हैं और कमजोरियों दूर करने के लिए मनोवैज्ञानिक रुप से परेशान रहते हैं , बचपन के व्यवहार में संकोच हावी होता है , हर समय इन्हें भय बना होता है कि कोई गलती न हो जाए। यही मनोवैज्ञानिक कमजोरी इनके जीवन के अन्य भागों में भी देखी जा सकती है। 'पूरी तैयारी और सावधानी करके ही काम करो’ की प्रवृत्ति के कारण काम की शुरुआत ही नहीं हो पाती , बहुत सारे काम विचाराधीन भी पड़े रहते हैं। जीवनभर निरंतर इन कमजोरियों को दूर करने के लिए ये सतर्क रहते हैं। अपने विचारों को कमजोर समझकर दूसरों के सामने रखने में संकोच करते हैं। इनके मन के आवेग में पर्याप्त ठहराव होता है और अपनी बातों को रखने के लिए उचित समय की तलाश करते हैं। ये मन से कभी आक्रामक नहीं होते , फलतः आपपर बाह्य आक्रमण होता है। ये रूठकर प्रतिरोधात्मक शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।
हरा रंग पसंद करने वाले लोग किशोरावस्था में अपने माहौल को बहुत कमजोर पाते हैं , अध्ययन काल में विपरीत परिस्थितियों से गुजरते हैं । इनकी कठिनाइयां 12 वर्ष की उम्र से 18 वर्ष की उम्र तक बढ़ते हुए क्रम में बनी रहती हैं। बौद्धिक विकास या शिक्षा-दीक्षा के महत्व को समझने के बावजूद परिस्थितियों के विपरित होने से इनका कोई काम सही ढंग से नहीं हो पाता है , इस समय बाधाओं की निरंतरता बनी रहती है। 17 से 19 वर्ष की उम्र में भी इनके मनोबल को तोड़नेवाली कोई घटना घटती है । उस समय इनका आत्मविश्वास काम नहीं कर रहा होता है , भीड में पींछे पीछे रहने की आदत रहती है और जीवनभर नेतृत्व क्षमता की कमी मौजूद होती है। इनके व्यक्तित्व में सेवा भावना होती है। कम उम्र में माहौल में आयी गडबडी इनके धैर्य और निर्णय लेने की शक्ति को बढाती है और इनके आगे के जीवन को संतुलित बनाने में भी मदद करती है।
लाल रंग पसंद करने वाले लोगों के जीवन में युवावस्था के दौरान परेशानी उपस्थित रहती हैं , यूं तो इनकी समस्याएं 18 वर्ष के उम्र के बाद से ही आरंभ हो जाती हैं , पर 24 वर्ष की उम्र के बाद विपरीत परिणामों की निरंतरता से इनमें शक्ति साहस की कमी और संघर्ष करने की क्षमता कमजोर पड़ती है। 30 वर्ष की उम्र से पहले ये भीतर से कुछ दब्बू होते हैं , चुस्त जीवनशैली से कोसों दूर इन्हें ग्रामीण या एकांतिक जीवन पसंद आता है , वृद्ध जैसा स्वभाव बना रहता है। जीवनभर व्यक्तित्व में हिम्मत की कुछ कमी बनी रहती है , पर ये लोगों के विश्वसनीय बने रहतें हैं । इन्हें परंपरागत नियमों पर विश्वास होता है , सरल जीवन पसंद होता है।
नीला रंग पसंद करने वाले लोगों पर घरेलू उत्तरदायित्वों का भारी बोझ रहता है , बढती जिम्मेदारियों के साथ समय पर नौकरी या व्यवसाय में आगे बढने में दिक्कत आने से जीवन का मध्य खासकर 36 वर्ष से 42 वर्ष की उम्र तक का समय कष्टकर व्यतीत होता है , इस वक्त लोगों का कम सहयोग मिलता है। पारिवारिक सांसारिक मामलों का कष्ट बना होता है , इसलिए सांसारिक मामलों में रूचि कम होती है , इन्हें अपना जीवन नीरस महसूस होता है।
नारंगी रंग पसंद करने वाले लोगों को किसी खास संदर्भ में निश्चिंत या लापरवाह रहने का बुरा फल कभी कभी जीवन में सामने आ जाया करता है। 48 वर्ष से 54 वर्ष की उम्र तक हर तरह की जवाबदेही बहुत बढ़ी हुई होती है। उम्र के ऐसे पड़ाव पर इतनी सारी जबाबदेहियों को सॅभाल पाने में तकलीफ होती है , प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण इनको अपना जीवन निरर्थक लगने लगता है, स्तर में बढोत्तरी के बावजूद 48 से 54 वर्ष की उम्र में ये खुद को सफल नहीं महसूस करते। परिस्थितियों की कुछ गडबडी 60 वर्ष की उम्र तक बनी होती है।
पीला रंग पसंद करने वाले लोग धार्मिक स्वभाव रखने वाले होते हैं , जीवनभर बहुतों को काम आते हैं । इन्हें परंपरागत नियमों पर पूरा विश्वास रहता है , पर सेवानिवत्ति के पहले अपनी जबाबदेहियों का निर्वाह कर पाने में असमर्थ रहते हैं , इस कारण उसके बाद इनके जीवन में कष्टकर परिस्थितियों की शुरूआत होती है। वृद्धावस्था में यानि 60 वर्ष की उम्र के बाद असफलताएं दिखाई देती हैं , इस समय इनका जीवन निराशाजनक बना रहता है , उम्र अधिक होने के कारण मानसिक कष्ट बहुत होता है , कमजोर शारीरिक मानसिक हालत के कारण किसी प्रकार के निर्णय लेने में दिक्कत आती है।
काले या स्लेटी रंग को पसंद करने वाले लोग जीवन में बहुत छोटी छोटी बातों में उलझे रहते हैं , इनकी सोंच व्यापक नहीं बन पाती, इस कारण तरक्की में रूकावट आती है। मेहनत के हिसाब से कम सामाजिक महत्व प्राप्त करते हैं , जीवन में कभी कभी रहस्यमय ढंग से विपत्ति से घिर जाते हैं, इसका सामना करने की इनमें शक्ति नहीं होती , बहुत निरीह हो जाते हैं , पर जिस ढंग से अचानक समस्या आती है , उसी ढंग से तीन वर्ष के बाद उसका निराकरण भी हो जाता है। इनका अति वृद्धावस्था का समय यानि 72 वर्ष की उम्र के बाद का समय कष्टकर होता है।
(बहुत दिनों से सबका पसंदीदा रंग नोट करने , ग्रहों के साथ उसका तालमेल बिठाने तथा उनकी परिस्थितियों पर ध्यान देने के बाद यह लेख लिखा गया है , आप भी अपने अनुभव साझा करें , तो हमें सुविधा होगी , पक्ष और विपक्ष दोनो में टिप्पणियां आमंत्रित हैं )