अखबार में नाम ..... बधाई तो बनती ही है !!!!!!

अखबार में अपना भी नाम आए , इसकी इच्‍छा भला किसे न होगी ?? जनसामान्‍य की इस मानसिकता को लेखक यशपाल जी ने अच्‍छे से समझा था और एक सफल कहानी 'अखबार में नाम' लिख डाला था। इस कहानी के नायक गुरदास को बचपन से ही अखबार में अपना नाम देखने का शौक था। वह समाज में अपने-आप को किसी अनाज की बोरी के करोड़ों एक ही से दानों में से एक साधारण दाने से अधिक अनुभव न कर पाता था। ऐसा दाना कि बोरी को उठाते समय वह गिर जाये तो कोई ध्यान नहीं देता। उम्र के साथ ही साथ अखबार में अपना नाम देखने की इच्‍छा बढती जा रही थी। अंत में उस बेचारे के साथ क्‍या हुआ , यह तो आप यशपाल जी की इस कहानी को पढकर जान ही लेंगे , पर यह तो निश्चित है कि lनाम कमाने की इच्‍छा मनुष्‍य के मन में हमेशा हावी रहती है।



विद्यार्थी जीवन में तो किसी पत्र पत्रिकाओं में अपना नाम आने की बहुत कम गुंजाइश थी ,क्‍यूंकि हमारी पढाई लिखाई सरकारी स्‍कूलो कॉलेजों में हुई थी और उन्‍हें आज के प्राइवेट स्‍कूलों कॉलेजों की तरह विद्यार्थ‍ियों की छोटी मोटी उपलब्धियों की चर्चा करके उसके सहारे अपना विज्ञापन करने की कोई आवश्‍यकता नहीं थी। हां , कभी कभी कुछ हमारे स्‍कूल के कुछ सांसकृतिक कार्यक्रमों की चर्चा समाचार पत्रों में अवश्‍य होती थी , पर मैं न तो खेल कूद में अच्‍छी थी और ही अपने नाम के अनुरूप संगीत और नृत्‍य मे। विद्यार्थी जीवन से भी मेरे भाषण वक्‍ताओं पर अच्‍छा छाप छोडते थे , पर अखबारों में इसकी चर्चा शायद ही कभी होती हो। हर शहर से तो तब अखबार निकलते नहीं थे कि छोटे मोटे कार्यक्रमों की इतने विस्‍तार से चर्चा हो। 

'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' की जानकारी के बाद 1990 से ही मै विभिन्‍न ज्‍योतिषीय पत्र पत्रिकाओं में लिखने लगी थी , पर इससे सिर्फ ज्‍योतिषियों के मध्‍य ही अपनी पहचान बन सकती थी। 'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' के सहारे समाज में फैली ज्‍योतिषीय भ्रांतियों और अंधविश्‍वास को दूर करने के उद्देश्‍य से आम जन के मध्‍य अपनी पहचान बनाना आवश्‍यक था। इसके लिए विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में अपने लेख प्रकाशित करवाना आवश्‍यक था। कई बार अखबारों को अपने लेख भेजें , पर शायद वो वहां की रद्दी की टोकरी में ही डाल दिए गए होंगे। फिर मुझे दिल्‍ली में चलनेवाले एक फीचर्स के बारे में पता चला। जब मैने अपने लेख वहां भेजने शुरू किए , तो उन्‍होने उसे देशभर के अखबारों में छपवाना शुरू किया , जो तीन चार वर्षों तक चला। बाद में मैं अपने सॉफ्टवेयर बनाने में व्‍यस्‍त हुई और लिखने का सिलसिला ही कम हो गया। 


जब से ब्‍लॉग लिखना आरंभ किया है , यत्र तत्र समाचार पत्रों में मेरे लेख प्रकाशित होते रहते हैं। हालांकि अभी तक शायद ही किसी ब्‍लॉगर को आर्थिक तौर पर फायदा हुआ हो, फिर भी अपनी पहचान बनते देख काफी खुशी होती है। कल जब इत्‍ते बडे समाचार पत्र पर अपना नाम प्रकाशित देखा , तो मेरी खुशी का अंदाजा आप लगा सकते हैं। सबसे पहले पाबला जी ने मुझे बताया कि न्‍यूयार्क टाइम्‍स में Indian Women Bloggers Find Their Voice, in Their Own Language नामक शीर्षक के अंतर्गत घुघूती बासूती, अर्चना चावजी, रश्मि स्वरूप, निर्मला कपिला जी के साथ मेरा नाम भी आया है। सबों को बधाई और शुभकामनाएं । उसके बाद मेरे पास भी कई बधाई संदेश आए , बधाई तो बनती ही है !!

संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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