परसों शाम जैसे ही ब्लॉगर का डैशबोर्ड रिफ्रेश किया , अलबेला खत्री जी की एक पोस्ट के शीर्षक पर नजर गयी। भगवान करे यह सच न हो , झूठ हो , डॉ अमर कुमार जी जीवित ही हों , पढने के बाद इसे खोलने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। कांपते हाथो से इसपर क्लिक किया , एक दूसरी पोस्ट भी पढी। घटना सच्ची ही है , भला कोई ऐसा मजाक करता है ?? न कभी मिलना जुलना , न कभी फोन या पत्र , बस एक दूसरे की पोस्ट और टिप्पणियों को पढते हुए ब्लोगरों के विचारों से रूबरू होने के कारण ऐसा लगता है , मानो हम एक कितने दिनों से एक दूसरे के परिचित हों। इस दौरान हमारे मध्य गलतफहमियां भी जन्म लेती हैं , पर उसका असर कितने दिन रह पाता है ?? वैसे शायद डॉ अमर कुमार जी को ज्योतिष में रूचि न हो , और ज्योतिष के सिवा दूसरे मुद्दों पर मैं अधिक लिखती नहीं , इसलिए किसी मुद्दे पर मेरा प्रत्यक्ष वाद विवाद उनसे नहीं रहा। पर उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित रही , हालांकि उनसे मेरे परिचय की शुरूआत एक टिप्पणी को लेकर गलतफहमी से ही हुई।
तब ब्लॉग जगत में आए बहुत दिन नहीं हुए होंगे , समाज में फैले ज्योतिषीय और धार्मिक भ्रांतियों को दूर करने की दिशा में छोटे मोटे लेख लिखने लगी थी। 16 फरवरी को प्रकाशित मेरे एक लेख नजर कब लगती है ?? को पढकर मसीजीवी जी के द्वारा की गई टिपपणी क्या इस पोस्ट के आने का अर्थ माना जाया कि हिन्दी ब्लॉगजगत पर नकारात्मक ग्रहों का प्रभाव हो गया है :) से मैं आहत हुई , अपने मनोभाव को व्यक्त करने के लिए मैने मसीजीवी जी की टिप्पणी के जबाब में एक पोस्ट लिख डाली। शीर्षक में ही मसीजीवी जी का नाम देखकर डा अमर कुमार जी मेरे ब्लॉग पर आए , पर उनकी नजर मेरे ब्लॉग के नीचे कोने पर रखे तिरंगे पर गयी और उन्होने पोस्ट पर ऐसी टिप्पणी की ....
बड़े हौसले से आया हूँ कि,
कुछ सार्थक बहस की ग़ुंज़ाईश हो..
पर, एक खेद व्यक्त करके लौट जा रहा हूँ
[ क्योंकि इससे अधिक और कर ही क्या सकता हूँ :) ]
इतने बुरे दिन भी नहीं आयें है, बहना
कृपया अपने राष्ट्रीय तिरंगे को नीचे कोने से उठा कर कहीं ऊपर सम्मानजनक स्थान दें ।आप देशभक्त हैं, यह तो ज़ाहिर हो गया ।
उनके द्वारा दिया गया सुझाव तो मुझे पसंद आया , पर अंतिम पंक्तियों में छुपा व्यंग्य मुझे बहुत चुभा , पर मैने इसे सार्वजनिक नहीं किया और उन्हे ईमेल से ही जबाब भेजा ....
मुझे जो कोड मिला था.......वह मैने ज्यों का त्यों पेस्ट कर दिया....आप सही तरीके से भी हमें इस बात से आगाह कर सकते थे.........इसपर इतना व्यंग्य करने की आवश्यकता नहीं थी........झंडे को उपर डालने के बारे में मुझे जानकारी नहीं.......इसे हटा ही देती हूं.।
मैं तो इस बात को कुछ दिन बाद भूल गयी , पर वो इसे नहीं भूल सकें। कुश जी के टोस्ट विद टू होस्ट में इंटरव्यू देते वक्त उन्होने इस बात की चर्चा कर ही दी .....
एक बार संगीता पुरी और मसिजीवी जी के बीच के कुछ कुछ हो गया .. देखने मैं भी पहुँच गया, टिप्पणी कर दी कि ब्लाग के निचले दायें कोने में पड़े तिरंगे को उचित सम्मान तो दीजिये, बहन जी..फिर, क्या हुआ होगा ? झुमका तो गिरना ही था । ज़ायज़ है भई, मैं देश के सम्मान का ठेकेदार न सही, पर भी तो नहीं ?भला बताओ, मैं कोई अमेरीकन हूँ क्या ? जो अपने झंडे का कच्छा बना लें, या ट्रेंडी नाइट गाऊन, उन्हें कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता !
जब डॉ अमर कुमार जी सार्वजनिक कर ही चुके थे , तो मैं अपनी सफाई क्यूं न देती?? पर हमारे मध्य संवादहीनता नहीं रही , इस पोस्ट को पढकर उन्होने भी टिप्पणी की .....
व्यंग्य और तंज़ मेरे लेखन के स्तंभ हैं, इनको घुसने से कैसे रोका जा सकता है ?
जिस किसी ने भी यह कोड बनाया है, उसे position: no-repeat fixed right bottom; का विकल्प रखना ही नहीं था ।
position: no-repeat fixed top right ; करने में मुझे कोई बुराई नहीं दिखती !
अपने ’ देश ’ का मैंने ऎसा अपमान देखा है, कि अपने झंडॆ के प्रति सदिव ही संवेदी रहूँगा !
मुझे कोई खेद नहीं है !
क्योंकि वाकई यह बतंगड़ बनाने वाली बात ही नहीं है !
और मेरी मंशा ऎसी थी भी नहीं..
सचमुच उनकी मंशा ऐसी न थी , दो चार महीने बाद ही जब टिप्पणी करने वाली आदत को लेकर प्रवीण जाखड जी ने मुझपर व्यंग्य करता हुआ लेख लिखा , उन्होने आकर मेरे पक्ष में टिप्पणी की ....
आप क्यों आपना समय और मानसिक ऊर्ज़ा ज़ाखड़ पर बरबाद कर रही हैं ।
उनकी टैगलाइन ही उनके व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित करती है ।
अपने फैसलों पर पुनर्विचार करना उनकी आदत में है, या नहीं..
यह वह बेहतर बता सकते हैं । पर, जहाँ कोई न पहुँच रहा हो, वहाँ नवाँगतुकों का ऎसा रस्मी स्वागत कोई बुरी बात तो नहीं ?
उसके बाद नए वर्ष की पूर्व संध्या पर मैने उन्हें नववर्ष की शुभकामनाएं दी , 50 मिनट तक तो मैं यही समझती रही कि वे मुझे जबाब नहीं देंगे , पर न सिर्फ उनका जबाब आया , उन्होने बीते वर्ष हुई गलतफहमी के लिए क्षमा भी मांगी ....
१०:३७ अपराह्न मुझे: आपके और आपके पूरे परिवार के लिए नया वर्ष मंगलमय हो !!
50 मिनट |
११:२८ अपराह्न
अमर: धन्यवाद.. मेरी यही शुभेच्छायें आपके लिये भी है ।
बीते वर्ष में जो कुछ भूल चूक हुई हो क्षमा करेंगी !
११:२९ अपराह्न
मुझे: जी
धन्यवाद
... और मैं इतना भी नहीं समझ पायी थी कि मैं उन्हे क्षमा करने लायक हूं भी नहीं !!!
अभी कुछ दिन पूर्व ही तो फेसबुक में उनका प्रोफाइल देखा था , जो उनकी खुशमिजाजी को बयान करता है।
नियोक्ता | |
---|---|
महाविद्यालय | |
उच्च माध्यमिक |
दर्शनशास्त्र
धार्मिक विचार | मतलब परस्ती |
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राजनैतिक विचार | यह क्यों पिट रहा है, भाई ? |
पसन्दीदा वाक्य | मुझे पढ़ लो, हज़ार कोटेशन पर भारी पडूँगा ! |
उन्होने ऑरकुट में मित्रता का अनुरोध भेजा , मैने उसे स्वीकार कर लिया । पर अभी कुछ दिन पूर्व फेसबुक में भेजा गया मेरा मित्र अनुरोध उनके पास लंबित ही रह गया। इस कारण उनके वॉल में मैं श्रद्धांजलि के दो शब्द भी नहीं लिख सकती।
'गत्यात्मक ज्योतिष' में तो नहीं , यदा कदा 'गत्यात्मक चिंतन' में टिपपणी करते रहें। टिप्पणी में मॉडरेशन के विरूद्ध थे वे , मेरी एक पोस्ट एक लोकोक्ति का अर्थ स्पष्ट करें !!! पर लिखा था ......
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फिर भी..
इसका भावार्थ यह होगा ।
माघ की आर्द्रा और इस समय की हथिया ( हस्तिका ) सबके लिये बराबर है, चाहे मेहमान हों या गृहस्थ सभी अपनी जगह ठप्प पड़ जाते हैं ।
उनके कडे शब्दों की वजह से अक्सर उन्हें लोग गलत समझ लेते थे , पर उनके कहने का वो मकसद नहीं होता था। ब्लॉग जगत के नए पन्ने पर तो अब हम उनकी टिप्पणियों का इंतजार ही करते रह जाएंगे। उन्हें याद रखने के लिए अब सिर्फ पुराने पन्ने ही तो उल्टे जा सकते हैं , क्यूंकि किसी के जाने के बाद बस यादें ही तो शेष रह जाती हैं हमारे पास !!!!
उन्हें हार्दिक नमन !!!!!
मेरे पुराने ब्लाग पर पहली टिप्पणी देने वालों में डा०साहब भी एक थे. सदैव खरा लिखने वाले. और सही के साथ खड़े होने वाले. आपकी कमी अखर रही है डा०साब...
जवाब देंहटाएंगलतफहमियों यूं ही पैदा हो जाती हैं , आपके लेख को पढ़कर गलतफहमियों से बचने का प्रयास सभी को करना चाहिए
जवाब देंहटाएंअन्य लिंक जो लेख के साथ हैं उनको पढना बहुत जरूरी हो गया है
आपने स्व.डॉ.अमर कुमार जी को उनकी टिप्पणियाँ प्रकाशित करके सच्ची श्रद्धांजलि दी है।
जवाब देंहटाएंमैं भी स्व.डॉ.अमर कुमार जी को भाव-भीनी श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ।
डॉ अमर कुमार एक बहुत ही अलग किस्म की शख्शियत थे । उनके जैसा दूसरा होना मुश्किल है । उनकी बेमिसाल टिप्पणियां उन्हें हमारे बीच हमेशा जीवित रखेंगी ।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने - यादें ही शेष रह जाती हैं।
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