कुणाल की आंखों पर उसकी सौतेली मां की नजर थी , कारण यह था कि उसकी आंखें बहुत ही खूबसूरत थी और उसकी तथाकथित मां उन आंखों पर मोहित थी। लाख कोशिश के बाद भी जब वह उन आंखों को हासिल न कर सकी तो अपने पति से उसकी शिकायत कर , उसपर छेड़खानी का इलजाम लगाकर उन आंखों को निकलवा लेने से भी बाज नहीं आयी। खड्गसिंह डाकू की नजर बाबा भारती के घोड़े पर थी , किसी भी तरह वह उस घोड़े को प्राप्त करना चाहता था। इसी क्रम में वह अपंग और असहाय बनने का ढोंग कर गन्तव्य तक जाने के लिए सहारा मांगकर बाबा भारती के घोड़े पर बैठा और उन्हें धक्का देकर गिराकर घोड़े को लेकर चंपत हो गया।
चोर उचक्के की नजर उस धन पर होती है , जिसे आसानी से झपटा जा सके। डाकू की नजर वैसे धन पर होती है , जिसे बंदूक के बल पर या शक्ति प्रदर्शन के साथ जबर्दस्ती हासिल किया जा सके। नेताओं की नजर हमेशा कुर्सी पर होती है , कुर्सी पर बैठे नेताओं को हराया जाए तथा खुद उसपर बैठा जाए , इसी तिकड़म में वे लगे होते हैं। पुलिस की नजर क्रिमिनल पर तथा इनकम टैक्सवालों की नजर टैक्स की चोरी करनेवालों पर होती है। मनचलों की नजर सुंदर युवतियो पर होती है। इन्द्र की नजर तप करनेवालों पर होती थी , किसी भी हालत में उनकी तपस्या पूरी न हो , ताकि उनकी गद्दी सुरक्षित रहे । इतना ही नहीं ग्रहों की भी दृष्टि की चर्चा शास्त्रों में की गयी है। मान्यता है कि शनि की दृष्टि बुरी होती है , जबकि बृहस्पति की दृष्टि को शुभ कहा गया है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह दृष्टि या नजर वास्तव में अच्छी होती है या बुरी ?
चोर , डकैत या अपराधी पुलिस की नजर से बचना चाहते हैं। रिश्वतखोर बड़े अफसर , नौकरशाह या नेता सी बी आई या मिडिया की नजरों से बचना चाहते हैं। कर्जदार साहूकार या महाजन की नजरों से बचना चाहते हैं। लेकिन अपने से बड़े , शक्तिशाली और सक्षम व्यक्ति से कोई काम निकालना हो , तो सभी अपने ऊपर कृपादृष्टि बनाए रखने के लिए गिड़गिड़ाकर अनुरोध करते हुए देखे जाते हैं। ‘ महाशय , आपके ऑफिस में मेरा लड़का काम करता है , कृपया उसपर नजर रखिएगा। ’ इस तरह लोग कभी किसी की नजर के मुहॅताज होते हैं , तो कभी किसी की नजर से बचना चाहते हैं। स्पष्ट है , उन नजरों से हम बचना चाहते हैं , जिनसे हमारे बुरे होने की आशंका बनी होती है। इसके विपरीत , जिन कृपादृष्टि में हमारा कल्याण छुपा होता है , उनके हम आकांक्षी होते हैं।
अशिक्षित लोगों के बीच , गांवों या देहातों में नजर का मतलब केवल बुरी नजरों से ही होता है , जिससे किसी के सिर्फ अहित होने की ही संभावना है , किन्तु अज्ञानतावश उन नजरों को ही कसूरवार समझा जाता है , जिनमें किसी प्रकार की शक्ति नहीं होती , उनकी नीयत भी बुरी नहीं होती। वास्तव में वे शक्तिहीन होते हैं तथा अनेक प्रकार की शक्तियों से निरंतर घिरे होने के कारण उनका आत्मविश्वास मरा होता है। वे दूसरों से नजर मिलाने की हिम्मत भी नहीं कर पाते , फिर भी उनके किसी काम को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है , इससे उनमें घबराहट पैदा होती है , उनसे संबंधित किसी प्रश्न को भी पूछे जाने पर वे उसका उत्तर अनाप-शनाप ढंग से ही देते हैं तथा अधिक छानबीन करने होने पर मैदान छोड़कर भाग भी जाते हैं। ऐसी हालत में समाज उनके किसी भी कार्यवाही को गलत मान लेता है तथा उन्हें कसूरवार समझ बैठता है।
समाज में इस मानसिकता की औरतें डायन कहलाती हैं , जिनके चेहरे पर असमय ही पहाड़ जैसी पीड़ा को झेलने की छाया टपकती रहती है। वे शक्तिहीन , असहाय और निरीह होती है। किसी शुभ अवसर पर लोग उसकी उपस्थिति को बुरा समझने लगते हैं। छोटे सुंदर बच्चों को भी उनकी नजर से बचाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन इन बातों में कोई दम नहीं है , असहाय शक्तिहीन की नजर घातक नहीं होती , वास्तव में लोगों को किसी शक्तिशाली की बुरी नजर से बचना चाहिए।
जब मैं ढाई वर्ष का था , भयंकर रुप से चेचक के प्रकोप से ग्रस्त होने के कारण लगभग मरनासन्न स्थिति में पड़ा हुआ था । उन्हीं दिनों मेरी माताजी भी लम्बे समय तक टायफायड से ग्रस्त होने के कारण बुरी तरह कमजोर हो चुकी थी , अपने को सॅभालना ही मुश्किल था , मेरी देख-रेख कर पाने का कोई प्रश्न ही नहीं था । इस हालत में मेरे पिताजी ने मेरी देखभाल के लिए ऐसी औरत को नियुक्त किया , जो समाज की नजरों में उपेक्षिता एक डायन थी , उसी की सतत् सेवा से मुझे पुनर्जन्म मिला। बड़े होने के बाद भी तथाकथित कई डायनों से मिला , सबकी नजरों में मुझे शक्तिहीनता , बदनामी और विवशता से संश्लिष्ट गहरी पीड़ा के सिवा कुछ भी देखने को नहीं मिली ।
सुंदर ताजमहल पर करोड़ों की नजर पड़ चुकी है , किन्तु सैकड़ों वर्षों बाद भी वह वही सुंदरता बिखेर रहा है। फिल्मी हीरो-हीरोइनों की सुंदरता और नाज-नखरों पर करोड़ों की नजरें पड़ती हैं। क्रिकेट के मैदान में खिलाडि़यों के खेल पर करोड़ो की अच्छी और बुरी निगाहे पड़ती हैं। इन नजरों में जहां एक ओर अपने देश के खिलाडि़यो के लिए शुभकामनाएं व्यकत होती हें , तो दूसरी ओर प्रतिद्वंदी देश के खिलाडि़यों के लिए बुरी नजर का इस्तेमाल होता है , परंतु होता वही है , जो मंजूरे खुदा होता है। जिन हीरो-हीरोइनों , क्रिकेटखिलाड़ी या जड़-चेतन पर उनकी विशेषताओं की वजह से अधिक से अधिक नजरें पड़ती हैं , वह उतना ही लोकप्रिय हो जाता है। कश्मीर की वादियों पर देशी-विदेशी करोड़ो पर्यटकों की नजरें टिकी होती हैं , परंतु उसका कुछ नहीं बिगड़ता , उसकी सुंदरता तो अक्षुण्ण है। यदि नजरों से ही बिगड़ने की बात होती , तो देश-रक्षा के लिए सीमा में सैनिको की जगह डायनों की नियुक्ति न की जाती।
व्यक्ति की विशेषता के साथ उसकी विनम्रता करोड़ो लोगों की दुआ हासिल करने में समर्थ होती है। उसकी लोकप्रियता को दिन दूनी रात चैगुनी गति से बढ़ा पाने में समर्थ होती है , विपरीत स्थिति में यानि अहंकारयुक्त विशेषता उतना लोकप्रिय नहीं हो पाता , क्योंकि अहंकार से उसकी कार्यक्षमता बाधित होती है। सुंदरता या विशेषता पर नजर स्वाभाविक आकर्षण की वजह से होता है , उसे प्राप्त करने की इच्छा या लोलुपता , ईर्ष्या आदि उसके नुकसान का कारण बनती हैं। इस प्रकार जैसा कि मैं पहले भी लिख चुका हूं , शक्तिशाली व्यक्ति की नजर से बचने की चेष्टा करनी चाहिए , किन्तु कमजोर , सामर्थ्यहीन और निरीह व्यक्ति की नजरों से नुकसान नहीं होता। उन्हें मनहूस या डायन समझकर प्रताडि़त करना या उन्हें कसूरवार समझना गलत है। उनकी उपेक्षा करना बड़प्पन और मानवता के खिलाफ तथा अंधविश्वास है।
मेरे पिताजी श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा
चोर उचक्के की नजर उस धन पर होती है , जिसे आसानी से झपटा जा सके। डाकू की नजर वैसे धन पर होती है , जिसे बंदूक के बल पर या शक्ति प्रदर्शन के साथ जबर्दस्ती हासिल किया जा सके। नेताओं की नजर हमेशा कुर्सी पर होती है , कुर्सी पर बैठे नेताओं को हराया जाए तथा खुद उसपर बैठा जाए , इसी तिकड़म में वे लगे होते हैं। पुलिस की नजर क्रिमिनल पर तथा इनकम टैक्सवालों की नजर टैक्स की चोरी करनेवालों पर होती है। मनचलों की नजर सुंदर युवतियो पर होती है। इन्द्र की नजर तप करनेवालों पर होती थी , किसी भी हालत में उनकी तपस्या पूरी न हो , ताकि उनकी गद्दी सुरक्षित रहे । इतना ही नहीं ग्रहों की भी दृष्टि की चर्चा शास्त्रों में की गयी है। मान्यता है कि शनि की दृष्टि बुरी होती है , जबकि बृहस्पति की दृष्टि को शुभ कहा गया है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह दृष्टि या नजर वास्तव में अच्छी होती है या बुरी ?
चोर , डकैत या अपराधी पुलिस की नजर से बचना चाहते हैं। रिश्वतखोर बड़े अफसर , नौकरशाह या नेता सी बी आई या मिडिया की नजरों से बचना चाहते हैं। कर्जदार साहूकार या महाजन की नजरों से बचना चाहते हैं। लेकिन अपने से बड़े , शक्तिशाली और सक्षम व्यक्ति से कोई काम निकालना हो , तो सभी अपने ऊपर कृपादृष्टि बनाए रखने के लिए गिड़गिड़ाकर अनुरोध करते हुए देखे जाते हैं। ‘ महाशय , आपके ऑफिस में मेरा लड़का काम करता है , कृपया उसपर नजर रखिएगा। ’ इस तरह लोग कभी किसी की नजर के मुहॅताज होते हैं , तो कभी किसी की नजर से बचना चाहते हैं। स्पष्ट है , उन नजरों से हम बचना चाहते हैं , जिनसे हमारे बुरे होने की आशंका बनी होती है। इसके विपरीत , जिन कृपादृष्टि में हमारा कल्याण छुपा होता है , उनके हम आकांक्षी होते हैं।
अशिक्षित लोगों के बीच , गांवों या देहातों में नजर का मतलब केवल बुरी नजरों से ही होता है , जिससे किसी के सिर्फ अहित होने की ही संभावना है , किन्तु अज्ञानतावश उन नजरों को ही कसूरवार समझा जाता है , जिनमें किसी प्रकार की शक्ति नहीं होती , उनकी नीयत भी बुरी नहीं होती। वास्तव में वे शक्तिहीन होते हैं तथा अनेक प्रकार की शक्तियों से निरंतर घिरे होने के कारण उनका आत्मविश्वास मरा होता है। वे दूसरों से नजर मिलाने की हिम्मत भी नहीं कर पाते , फिर भी उनके किसी काम को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है , इससे उनमें घबराहट पैदा होती है , उनसे संबंधित किसी प्रश्न को भी पूछे जाने पर वे उसका उत्तर अनाप-शनाप ढंग से ही देते हैं तथा अधिक छानबीन करने होने पर मैदान छोड़कर भाग भी जाते हैं। ऐसी हालत में समाज उनके किसी भी कार्यवाही को गलत मान लेता है तथा उन्हें कसूरवार समझ बैठता है।
समाज में इस मानसिकता की औरतें डायन कहलाती हैं , जिनके चेहरे पर असमय ही पहाड़ जैसी पीड़ा को झेलने की छाया टपकती रहती है। वे शक्तिहीन , असहाय और निरीह होती है। किसी शुभ अवसर पर लोग उसकी उपस्थिति को बुरा समझने लगते हैं। छोटे सुंदर बच्चों को भी उनकी नजर से बचाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन इन बातों में कोई दम नहीं है , असहाय शक्तिहीन की नजर घातक नहीं होती , वास्तव में लोगों को किसी शक्तिशाली की बुरी नजर से बचना चाहिए।
जब मैं ढाई वर्ष का था , भयंकर रुप से चेचक के प्रकोप से ग्रस्त होने के कारण लगभग मरनासन्न स्थिति में पड़ा हुआ था । उन्हीं दिनों मेरी माताजी भी लम्बे समय तक टायफायड से ग्रस्त होने के कारण बुरी तरह कमजोर हो चुकी थी , अपने को सॅभालना ही मुश्किल था , मेरी देख-रेख कर पाने का कोई प्रश्न ही नहीं था । इस हालत में मेरे पिताजी ने मेरी देखभाल के लिए ऐसी औरत को नियुक्त किया , जो समाज की नजरों में उपेक्षिता एक डायन थी , उसी की सतत् सेवा से मुझे पुनर्जन्म मिला। बड़े होने के बाद भी तथाकथित कई डायनों से मिला , सबकी नजरों में मुझे शक्तिहीनता , बदनामी और विवशता से संश्लिष्ट गहरी पीड़ा के सिवा कुछ भी देखने को नहीं मिली ।
सुंदर ताजमहल पर करोड़ों की नजर पड़ चुकी है , किन्तु सैकड़ों वर्षों बाद भी वह वही सुंदरता बिखेर रहा है। फिल्मी हीरो-हीरोइनों की सुंदरता और नाज-नखरों पर करोड़ों की नजरें पड़ती हैं। क्रिकेट के मैदान में खिलाडि़यों के खेल पर करोड़ो की अच्छी और बुरी निगाहे पड़ती हैं। इन नजरों में जहां एक ओर अपने देश के खिलाडि़यो के लिए शुभकामनाएं व्यकत होती हें , तो दूसरी ओर प्रतिद्वंदी देश के खिलाडि़यों के लिए बुरी नजर का इस्तेमाल होता है , परंतु होता वही है , जो मंजूरे खुदा होता है। जिन हीरो-हीरोइनों , क्रिकेटखिलाड़ी या जड़-चेतन पर उनकी विशेषताओं की वजह से अधिक से अधिक नजरें पड़ती हैं , वह उतना ही लोकप्रिय हो जाता है। कश्मीर की वादियों पर देशी-विदेशी करोड़ो पर्यटकों की नजरें टिकी होती हैं , परंतु उसका कुछ नहीं बिगड़ता , उसकी सुंदरता तो अक्षुण्ण है। यदि नजरों से ही बिगड़ने की बात होती , तो देश-रक्षा के लिए सीमा में सैनिको की जगह डायनों की नियुक्ति न की जाती।
व्यक्ति की विशेषता के साथ उसकी विनम्रता करोड़ो लोगों की दुआ हासिल करने में समर्थ होती है। उसकी लोकप्रियता को दिन दूनी रात चैगुनी गति से बढ़ा पाने में समर्थ होती है , विपरीत स्थिति में यानि अहंकारयुक्त विशेषता उतना लोकप्रिय नहीं हो पाता , क्योंकि अहंकार से उसकी कार्यक्षमता बाधित होती है। सुंदरता या विशेषता पर नजर स्वाभाविक आकर्षण की वजह से होता है , उसे प्राप्त करने की इच्छा या लोलुपता , ईर्ष्या आदि उसके नुकसान का कारण बनती हैं। इस प्रकार जैसा कि मैं पहले भी लिख चुका हूं , शक्तिशाली व्यक्ति की नजर से बचने की चेष्टा करनी चाहिए , किन्तु कमजोर , सामर्थ्यहीन और निरीह व्यक्ति की नजरों से नुकसान नहीं होता। उन्हें मनहूस या डायन समझकर प्रताडि़त करना या उन्हें कसूरवार समझना गलत है। उनकी उपेक्षा करना बड़प्पन और मानवता के खिलाफ तथा अंधविश्वास है।
मेरे पिताजी श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा
तर्कयुक्त सार्थक आलेख... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...तर्कसंगत लेखन.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
अनु
वाह आपके लेख पर मेरी नज़र पड़ी ये मेरा सौभाग्य है, बहुत सारी वस्तुओं,व्यक्तियों,संस्थाओ,स्थानों पर आपने नजर डासी वाकई आपकी नज़र कमाल की है...लेख बहुत ही उत्तम है...।
जवाब देंहटाएंरोचक आलेख! लोग अपने क्रूर स्वार्थ के लिये ही दूसरों पर डायन आदि का ठप्पा लगाते रहे हैं। ज्ञान-विज्ञान और स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी और प्रभावी कानून-व्यवस्था से वंचित समुदायों में अपराधियों और पापियों का काम आसान हो जाता है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय तर्कसंगत आलेख
जवाब देंहटाएंअंध विश्वास पर लगाम लगाती उत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंसादर
नज़र पर विस्तृत विश्लेषण .... सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंकृपया इस लिंक को देखें और अपना फलादेश देने का कष्ट करें-
जवाब देंहटाएंhttp://navbharattimes.indiatimes.com/prediction-by-anand-johari/articleshow/15986587.cms
नजर पर इतना बढिया और सुलझा आलेख कहीं नजर ना लग जाये ।
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