अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस पर एक जरूरी मांग ... अपनी सरकार से

Mahila divas kab manaya jata hai


पिछले माह ट्रेन से आ रही थी , रिजर्वेशन नहीं होने और भीड के अधिक होने के कारण महिला बॉगी में चढ गयी , यहां हर वर्ग का प्रतिनिधित्‍व करने वाली महिलाएं मौजूद थी , बच्चियों , युवतियों से लेकर वृद्धा तक , मजदूर से लेकर सामान्‍य गृहस्‍थ तक और नौकरीपेशा से लेकर हम जैसी महिलाओं तक , जिसे किसी वर्ग में रखा ही नहीं जा सकता। पुलिस को ध्‍यान न रहे तो महिला बॉगी में महिलाओं के साथ वाले पुरूष भी अड्डा जमा ही लेते हैं , सफर में महिलाओं की संख्‍या कम नहीं रहती , इसलिए सबके बैठने की समुचित व्‍यवस्‍था नहीं हो पा रही थी। दस और बारह वर्ष की दो बच्चियां एक दो जगहों पर खुद को एडजस्‍ट करने की भी कोशिश की , पर कोई फायदा नहीं हुआ तो कुछ देर खडी इंतजार करती रही , जैसे ही उन्‍होने दो महिलाओं को उतरते देखा तो वे तेजी से सीट की ओर बढी , पर उन्‍होने पाया कि पहले जिस सीट पर सात महिलाएं बैठी थी , वहां इन पांच ने ही खुद को फैलाकर पूरी जगह घेर ली थी। 
बच्चियों ने पहले उनसे आग्रह किया , पर बात न बनी तो तर्कपूर्ण बातें कर हल्‍ला मचाकर सभी यात्रियों का ध्‍यान इस ओर आकृष्‍ट किया। सबको उनके पक्ष में देखकर महिलाओं ने खुद को समेटकर उन्‍हें बैठने की जगह दी। बच्चियों की माताजी को बच्चियों के उचित पालन पोषण के लिए शाबाशी मिली , शाबाशी देने वालों में दो कॉलेज की छात्राएं ही नहीं थी , जो छुट्टियों में महानगर से वापस आ रही थी, वरन् हर वर्ग की महिलाएं थी। बीस पच्‍चीस साल में बच्चियों के पालन पोषण में यह बडा अंतर आया है , हमारे जमाने में तो बडों के प्रति सम्‍मान और छोटों के प्रति स्‍नेह का प्रदर्शन करते हुए नाजायज को भी जायज कहने की शिक्षा दी जाती थी। यही कारण है कि सामने वालों के गलत वक्‍तब्‍य पर उस वक्‍त महिलाओं के मुंह से चूं भी नहीं निकलती थी। 

मैने जब कॉलेज की लडकियों से इस अंतर की चर्चा की तो उन्‍होने कहा कि उनकी मम्‍मी भी कुछ ऐसे ही बताती हैं। फिर बात आयी हमारे जमाने में परिवार के लिए किए जाने वाले महिलाओं के समझौते पर , एक लडकी ने बताया कि उसकी मम्‍मी बीएड कर चुकी थी , नौकरी करने को पापा ने मना कर दिया और मम्‍मी घर परिवार संभालने के चक्‍कर में मान भी गयी। मैने कहा कि उस जमाने में किसी एक महिला के साथ नहीं , बहुतों के साथ ऐसा हुआ कि उन्‍हें कैरियर को ताक पर रखना पडा। हमारे परिचय की एक गायनोको‍लोजिस्‍ट हैं , जिन्‍होने नौकरी के अधिकांश समय छुट्टियों में ही व्‍यतीत किए , फिर रिजाइन करना पडा , क्‍योंकि पतिदेव की पोस्टिंग जहां थी , वहां से वे ट्रासफर नहीं करा सकते थे और ये न तो वहां आ सकती थी और न अकेले बच्‍चों को लेकर रह सकती थी। 
सबसे बडी बात कि वे कैरियर को छोडकर भी राजी खुशी अपने पारिवारिक दायित्‍वों को निभाती रहीं। मैने खुद भी अपने परिवार और बच्‍चों को संभालने के लिए कैरियर के बारे में कभी नहीं सोंचा। पर आज की पीढी की लडकियां ऐसा समझौता नहीं कर सकती , दोनो लडकियां एक साथ बोल उठी , ‘हमारा सबकुछ बर्वाद हो जाए , हम कैरियर को नहीं बर्वाद होने देंगे’। वास्‍तव में ये आवाज इन दो लडकियों की नहीं , आज की पूरी पीढी की युवतियों की ये आवाज बन रही है और इसकी प्रेरणा उन्‍हें इनकी मांओं से ही मिल रही है , जो कल तक परिवार संभालने के कारण खुद के कैरियर पर ध्‍यान नहीं दे रही थी। समाज के लिए चिंतन का विषय है कि इन प्रौढ महिलाओं के चिंतन में बदलाव आने में कहीं उनका ही हाथ तो नहीं ?
सरकारी नौकरी कर रही महिलाओं को भले ही दुधमुंहे कभी कमजोर ,कभी बीमार बच्‍चे को छोडकर भले ही नौकरी को संभाल पाने में महिलाओं को दिक्‍कत होती हो , पर घर परिवार की जिम्‍मेदारी से मुक्‍त होते ही बच्‍चों के स्‍कूल में एडमिशन के पश्‍चात हल्‍के रूप में और बच्‍चों के बारहवीं पास करते ही अचानक महिलाओं को कुछ अधिक ही फुर्सत मिलने लगती है। कम पढी लिखी कम विचारशील महिलाएं अपनी अपनी मंडलियों में आ जाकर , फिल्‍में टीवी देखकर समय काट ही नहीं लेती , अपने दायित्‍व विहीन अवस्‍था का नाजायज फायदा उठाती हैं और समय का पूरा पूरा दुरूपयोग करती हैं। उनकी छोटी मोटी जरूरतें पतियों के द्वारा पूरी हो जाने से वे निश्चिंत रहती हैं। 
पर विचारशील महिलाएं कोई न कोई रचनात्‍मक कार्य करना चाहती है , पर बढती उम्र के साथ कुछ बाधाएं भी आती हैं , और उनको काम में परिवार , समाज का सहयोग भी नहीं मिल पाता , उन्‍हें ऐसा महसूस होने लगता है कि उनकी प्रतिभा का कोई महत्‍व नहीं। उनकी प्रतिभा को समाज में महत्‍व दिया जाता , तो उनका दृष्टिकोण ऐसा नहीं होता। जिस त्‍याग को अब वे भूल समझ रही हों , वह त्‍याग अपनी बच्चियों से नहीं करवा सकती। पर इससे भी आनेवाली पीढी को बहुत नुकसान है , यह बात समाज को समझनी चाहिए।

पूरी एक पीढी की युवतियों का यह सोंचना कि परिवार के लिए कैरियर को छोडना उचित नहीं , आने वाले समय में बहुत बडी अव्‍यवस्‍था पैदा कर सकता है। हमारी पीढी की गैर कामकाजी महिलाओं ने बच्‍चों के प्रत्‍येक क्रियाकलापो पर ध्‍यान रखा , उसे शारीरिक , नैतिक , बौद्धिक और चारित्रिक तौर पर सक्षम बनाया । सारी कामकाजी महिलाओं के बच्‍चों का लालन पालन ढंग से न हो सका , ऐसी बात भी नहीं है , यदि परिवार में बच्‍चों पर ध्‍यान देने वाले कुछ अभिभावक हों या पति और पत्‍नी मिलकर ही बच्‍चों का ध्‍यान रख सकते हों , तो महिलाओं के नौकरी करने पर कोई दिक्‍कत नहीं आयी। पर आज की युवतियॉ कैरियर को अधिक महत्‍व देंगी , वो भी प्राइवेट जॉब को वरियता देती हैं , तो बच्‍चे आयाओं के भरोसे पलेंगे , उनके हिसाब से ही तो उनका मस्तिष्‍क विकसित होगा। 
एक भैया की शादी मेरे साथ ही हुई थी , पत्‍नी अपने जॉब में तरक्‍की कर रही हैं , इसलिए संतुष्‍ट हैं , पर बच्‍चों के विकास से संतुष्‍ट नहीं , अफसोस से कहती हैं , ‘जब सबका बच्‍चा बढ रहा था , मेरा बढा नहीं , जब सबका बच्‍चा पढ रहा है , मेरा पढा नहीं।‘ हां चारित्रिक तौर पर दोनो अच्‍छे हैं पर इस प्रकार की असंतुष्टि उस समय एक दो परिवार की कहानी थी , अब यही हर परिवार की कहानी होगी। बच्‍चों का विकास ढंग से नहीं होगा , उनके व्‍यक्तित्‍व का पतन होगा तो उसे भी देश को ही झेलना होगा। महिला दिवस पर न जाने कितने सेमिनार और कार्यक्रम हा, पर शायद ही किसी का ध्‍यान इस गंभीर समस्‍या पर जाएगा।

कैरियर को महत्‍व देते हुए विवाह न करने या विवाह के बाद बच्‍चे न पैदा करने का व्‍यक्तिगत फैसला समाज के लिए दुखदायी नहीं है , पर विवाह कर बच्‍चे को जन्‍म देने के बाद उसका उचित लालन पालन न हो , यह समाज के लिए सुखद संकेत नहीं। आने वाले समय में बच्‍चों का पालन पोषण , देख रेख भी सही हो , और महिलाएं भी संतुष्‍ट रहे , इसके लिए सरकार को बहुत गंभीरता से एक उपाय करने की आवश्‍यकता है। नौकरी को लेकर महिलाओं के सख्‍त होने का सबसे बडा कारण यह है कि उम्र बीतने के बाद उनके लिए कोई संभावनाएं नहीं बचती , जबकि बच्‍चों को पढाने के क्रम में उनकी पढाई लिखाई चलती रहती है और भले ही अपने विशिष्‍ट विषय को भूल भी गयी हूं , उनका सामान्‍य विषयों का सामान्‍य ज्ञान कम नहीं होता। 
इसलिए सरकार को 35 से 40 वर्ष की उम्र के विवाहित बाल बच्‍चेदार महिलाओं पर उचित ध्‍यान देना चाहिए। उनके लिए हर प्रकार के सरकारी ही नहीं प्राइवेट नौकरियों में भी आरक्षण देने की व्‍यवस्‍था करनी चाहिए। इसके अतिरिक्‍त उन्‍हें व्‍यवसाय के लिए बैंको से बिना ब्‍याज के ऋण और अन्‍य तरह की सुविधाएं मुहैय्या करायी जानी चाहिए, ताकि घर परिवार संभालते वक्‍त भविष्‍य में कुछ आशाएं दिखती रहें। महिला विकास के लिए काम कर रही सरकारी गैरसरकारी तमाम संस्‍थाओं से मेरा अनुरोध है कि सिर्फ गांव की महिलाओं के लिए ही नहीं , मध्‍यम वर्ग की महिलाओं के लिए तथा आने वाली पीढी की बेहतर सुरक्षा के लिए इस मांग को सरकार के समक्ष रखे। आने वाली बेहतर पीढी के लिए महिलाओं का भविष्‍य के लिए आश्‍वस्‍त रहना आवश्‍यक है।
संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

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