वैसे तो मनुष्य के पूरे शरीर की बनावट प्रकृति की एक उत्कृष्ट रचना है ही , खासकर इसके मन और मस्तिष्क की बनावट इसे दुनियाभर के जीवों से अलग करती है। जन्म लेने के पश्चात ही मनुष्य सूक्ष्मता से वातावरण का निरीक्षण करता रहता है। वातावरण में होनेवाले किसी भी परिवर्तन को ज्ञानेन्द्रियां तुरंत उसके मस्तिष्क तक पहुंचाती है। जानकारी से मनुष्य का मन प्रभावित होता है , निरंतर विचारों और भावनाओं का प्रवाह चलता रहता है। अपने ज्ञान, विचारों और भावनाओं को अभिव्यक्ति देने के लिए प्राचीन काल से ही मनुष्य ने अनेक तरीके ईजाद किए।
प्रारंभ में हाथ, पैर के इशारे और मुख के हाव भाव से तो कुछ समय बाद तरह तरह के चित्रों द्वारा परस्पर संवाद किया गया। इसी कारण दुनिया के हर क्षेत्र में तरह तरह के पेण्टिंग , नृत्य , चित्र , मूर्ति जैसी कलाओं का विकास हुआ। कालांतर में मुख की ध्वनियों को नियंत्रित कर बोली विकसित हुई, जिसे सुव्यवस्थित कर भाषा का रूप दिया गया। सशक्त माध्यम के रूप में लेखन कला को ही सबसे अधिक पहचान मिली । हर भाषा में साहित्य लिखे गए, हालांकि बहुतों का लेखन नष्ट हो गया, फिर भी जो हैं, उन्हें पढकर हर देश, काल की परिस्थिति का, उसके इतिहास का अनुमान लगाया जा सकता है।
समय बदला, युग परिवर्तन के साथ साथ चिंतन का दायरा भी बढता गया, जिससे मानव मस्तिष्क में चलने वाली हलचल और बढने लगी, लोग अपने विचारो, भावनाओं को अभिव्यक्ति देने लगें। पर कुछ लोग ही इतने भाग्यशाली रहें , जिनका लिखा सुरक्षित रहा। अधिकांश का लिखा तो समकालीन भी नहीं पढ सकें। उनके अनुभव की पांडुलिपियां किसी न किसी बहाने कचरे तक पहुंच गयीं। कभी अपने परिवार , समाज और गांव के लोगों की, तो कभी किसी पत्र पत्रिकाओं के संपादकीय विभाग की उपेक्षा से।
खासकर आज के व्यावसायिक युग ने तो जहां नए लेखकों को पनपने नहीं दिया , वहीं दूसरी ओर सरल व्यक्तित्व वाले अच्छे लेखकों को भी समाज से दूर कर डाला। ऐसे ही भुक्तभोगी लोगों में मेरे पिता श्रीविद्या सागर महथा जी का नाम लिया जा सकता है , जिनके लेखों ने दस वर्षों तक ज्योतिषीय पत्र पत्रिकाओं में धूम मचायी , ज्योतिष के क्षेत्र में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कितने सम्मान दिलाए, पर ज्योतिष की एक नई शाखा ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ को स्थापित करने के बाद परंपरागत ज्योतिषियों से उनकी नहीं बनी । इस कारण दिल्ली में आठ वर्षों तक अपनी पांडुलिपियों को लेकर प्रकाशकों के चक्कर काटते, फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिली। उनके चिंतन से प्रभावित होकर विभिन्न चैनलों के पत्रकारों ने उनकी इंटरव्यू लेते हुए वीडीयो भी बनायी, पर उसका प्रसारण भी रोक दिया गया।
‘गत्यात्मक ज्योतिष’ से जुड जाने के बाद इसके विकास के लिए प्रयत्नशील मैं उनकी इस असफलता से निराश थी कि मेरे सामने चिट्ठाकारिता एक वरदान बनकर आया। मैने झटपट ब्लॉगस्पॉट में अपना चिट्ठा बनाया और अपने कुछ लेख इसमें प्रकाशित किए , पर वहां हिंदी फॉण्टों को स्वीकार नहीं किया गया। हिंदी की दशा देखकर मैं असंतुष्ट थी , मुझे मजबूरी में अपने अंग्रेजी आलेख डालने पडे। लेकिन कुछ ही दिनों में मुझे यूनिकोड के बारे में जानकारी मिली, फिर मैने वर्डप्रेस में अपना ब्लॉग बनाया और ज्योतिष की एक शाखा के रूप में विकसित किए गए ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के बारे मे जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू कर दी।
शुरूआती दौर में मैं हिंदी फॉण्ट में लिखे अपने आलेख को यूनिकोड में बदलती थी , पर बाद में शैलेश भारतवासी जी , अविनाश वाचस्पति जी आदि के सहयोग से मैने अपने कम्प्यूटर को हिंदीमय ही कर दिया। मेरा मानना है कि जिस तरह अपनी मातृभाषा में बच्चे को शिक्षा मिलने का अपना महत्व है , बिल्कुल वैसा ही अपनी मातृभाषा में विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का है। इसके अतिरिक्त हिंदी में चिट्ठाकारिता से ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के भारतवर्ष में हुए रिसर्च की प्रामाणिकता तय होती , मैं आनेवाले युग में अन्य शोधों की तरह इसे विवाद का विषय भी नहीं बनने देना चाहती थी।
नियमित चिट्ठा लिखने से एक फायदा हुआ कि हमें एक मंच मिल गया, जहां हम ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के सिद्धांत की चर्चा कर सकते हैं , इससे जुडे अपने विचारों को अभिव्यक्ति दे सकते हैं। विभिन्न समयांतराल में आसमान में चल रहे भिन्न भिन्न ग्रहों की खास स्थिति का किनपर अच्छा और किनपर बुरा प्रभाव पड रहा है , इसकी चर्चा कर सकते हैं। मौसम , शेयर बाजार , राजनीति आदि के भविष्य के बारे में कुछ आकलन कर पाठकों के समक्ष रख सकते हैं। हालांकि ज्योतिष जैसा विषय लोगों के लिए सहज ग्राह्य नहीं , पर मेरी भविष्यवाणियों ने पाठकों पर खासा प्रभाव डाला है।
भूकम्प के बारे में एक खास तिथि को की गयी मेरी भविष्यवाणी के सत्य होने पर मेरे ब्लॉग में चार दिनों तक ज्योतिष के पक्ष और विपक्ष में चर्चा चलती रही थी। चार वर्षों के बाद अब भारत के हर शहर में ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के नाम से परिचित कुछ लोग जरूर मिल जाएंगे , इसके विकास के लिए , इसके भविष्य के लिए यह सुखद चिन्ह है। इसके अलावा सिर्फ आत्म संतुष्टि से आरंभ किया गया चिट्ठाकारी कल व्यावसायिक सफलता की शुरूआत भी कर सकता है। विज्ञापन से अन्य भाषा के चिट्ठाकारों की कमाई शुरू हो गयी है , वह दिन देर नहीं , जब हिंदी के चिट्ठाकार भी कमाई कर पाएंगे।
अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अधिकांश मनोरंजन की ही बातें होती हैं , कुछ मुद्दों पर तात्कालिक चर्चा परिचर्चा अवश्य होती हैं, पर वो उतना महत्व नहीं रखता। चिट्ठाकारिता की बात ही अलग है , हर विषय पर पूरा साहित्य बनता जा रहा है। हर तरह के कीवर्ड पर सर्च इंजिन से हिंदी के लेखों के लिंक ढूढे जा सकते हैं , इसपर आयी टिप्पणियां पढी जा सकती हैं। हमें संविधान द्वारा विचारों को अभिव्यक्ति देने का अधिकार बहुत पहले दे दिया गया था , पर उसका इस्तेमाल हम 15 अगस्त 1995 से कर पा रहे हैं , जब हमें इंटरनेट पर विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार मिला है।
पारदर्शिता बढ़ाने और जानकारी उपलब्ध कराने से लेकर लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में इसकी भागीदारी बढती जा रही है। मैं आरंभ से ही पत्र पत्रिकाएं पढने की शौकीन रही हूं , पर रेडियो, टेलीविजन या प्रकाशित सामग्री से अलग इंटरनेट के लेखों में एक ही विषय पर समान और असमान सोच वाले लोग मिलते हैं , जिससे निरपेक्ष चिंतन में मदद मिलती है। पर जैसा कि हर सुविधा का दुरूपयोग भी किया जाता है , यहां भी कुछ असामाजिक तत्व की सक्रियता हो सकती है। असमान विचार वालों को संतुलित ढंग से लेखों पर अपने विचार रखने की आवश्यकता है , ब्लॉगिंग की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमें पूरी सावधानी बनाए रखना चाहिए।