How to improve luck astrology in hindi
हजारो वर्षों से विद्वानों द्वारा अध्ययन-मनन और चिंतन के फलस्वरुप मानव-मन-मस्तिष्क एवं अन्य जड़-चेतनों पर ग्रहों के पड़नेवाले प्रभाव के रहस्यों का खुलासा होता जा रहा है , किन्तु ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने हेतु किए गए लगभग हर आयामों के उपाय में पूरी सफलता न मिल पाने से अक्सरहा मन में एक प्रश्न उपस्थित होता है,क्या भविष्य को बदला नहीं जा सकता ?
किसी व्यक्ति का भाग्यफल या आनेवाला समय अच्छा हो तो ज्योतिषियों के समक्ष उनका संतुष्ट होना स्वाभाविक है, परंतु आनेवाले समय में कुछ बुरा होने का संकेत हो तो उसे सुनते ही वे उसके निदान के लिए इच्छुक हो जाते हैं। हम ज्योतिषी अक्सर इसके लिए कुछ न कुछ उपाय सुझा ही देते हैं लेकिन हर वक्त बुरे समय को सुधारने में हमें सफलता नहीं मिल पाती है। उस समय हमारी स्थिति कैंसर या एड्स से पीड़ित किसी रोगी का इलाज कर रहे डॉक्टर की तरह होती है ,जिसने बीमारी के लक्षणों एवं कारणों का पता लगाना तो जान गया है परंतु बीमारी को ठीक करने का कोई उपाय न होने से विवश होकर आखिर प्रकृति की इच्छा के आगे नतमस्तक हो जाता है ।
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ऐसी ही परिस्थितियों में हम यह मानने को मजबूर हो जाते हैं कि वास्तव में प्रकृति के नियम ही सर्वोपरि हैं। हमलोग पाषाण-युग, चक्र-युग, लौह-युग, कांस्य-युग, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, से बढ़ते हुए आज आई टी युग में प्रवेश कर चुकें हैं, पर अभी भी हम कई दृष्टि से लाचार हैं। नई-नई असाध्य बीमारियॉ ,जनसंख्या-वृद्धि का संकट, कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अनावृष्टि, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा ,कहीं भूकम्प तो कहीं ज्वालामुखी-विस्फोट--प्रकृति की कई गंभीर चुनौतियों से जूझ पाने में विश्व के अव्वल दर्जे के वैज्ञानिक भी असमर्थ होकर हार मान बैठे हैं।
यह सच है कि प्रकृति के इन रहस्यों को खुलासा कर हमारे सम्मुख लाने में इन वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिससे हमें अपना बचाव कर पाने में सुविधा होती है। प्रकृति के ही नियमो का सहारा लेकर कई उपयोगी औजारों को बनाकर भी हमने अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों का झंडा गाडा है , किन्तु वैज्ञानिकों ने किसी भी प्रकार प्रकृति के नियमों को बदलने में सफलता नहीं पायी है।
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पृथ्वी पर मानव-जाति का अवतरण भी अन्य जीव-जंतुओं की तरह ही हुआ। प्रकृति ने जहॉ अन्य जीव-जंतुओं को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए कुछ न कुछ शारिरिक विशेषताएं प्रदान की वहीं मनुष्य को मिली बौद्धिक विशेषताएं , जिसने इसे अन्य जीवों से बिल्कुल अलग कर दिया। बुद्धिमान मानव ने सभी जीव जंतुओं का निरिक्षण किया, उनकी कमजोरियों से फायदा उठाकर उन्हें वश में करना तथा खूबियों से लाभ लेना सीखा। जीव-जंतुओं के अध्ययन के क्रम में जीव-विज्ञान का विकास हुआ। प्राचीनकाल से अब तक के अनुभवों और प्रयोगों के आधार पर विभिन्न प्रकार के जीवों ,उनके कार्यकाल ,उनकी शरिरीक बनावट आदि का अध्ययन होता आ रहा है।
आज जब हमें सभी जीव-जंतुओं की विशेषताओं का ज्ञान हो चुका है , हम उनकी बनावट को बिल्कुल सहज ढंग से लेते हैं । कौए या चिड़ियां को उड़ते हुए देखकर हम बकरी या गाय को उड़ाने की भूल नहीं करतें। बकरी या गाय को दूध देते देखकर अन्य जीवों से यही आशा नहीं करते। बकरे से कुत्ते जैसी स्वामिभक्ति की उम्मीद नहीं करतें। घोड़े की तेज गति को देखकर बैल को तेज नहीं दौड़ाते। जलीय जीवों को तैरते देखकर अन्य जीवों को पानी में नहीं डालते। हाथी ,गधे और उंट की तरह अन्य जीवों का उपयोग बोझ ढोने के लिए नहीं करते।
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इस वैज्ञानिक युग में पदार्पण के बावजूद अभी तक हमने प्रकृति के नियमों को नहीं बदला । न तो बाघ-शेर-चीता-तेदुआ-हाथी-भालू जैसे जंगली जानवरों का बल कम कर सकें , न भयंकर सर्पों के विष को खत्म करने में सफलता मिली , और न ही बीमारी पैदा करनेवाले किटाणुओं को जड़ से समाप्त किया। पर अब जीन के अध्ययन में मिलती जा रही सफलता के बाद यह भी संभव हो सकता है कि किसी एक ही प्राणी को विकसित कर उससे हर प्रकार के काम लिया जा सके। पर इस प्रकार की सफलता के लिए हमें काफी समय तक विकास का नियमित क्रम तो रखना ही होगा। अगले लेख में इसके आगे का भाग पढें !!
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