Virus coronavirus in India
देश-विदेश में फैले कोरोनावायरस के छह-आठ महीने के दौर को देखने के बाद अब लोगों को इतना समझ में आ गया है कि मास्क और सोशल डिस्टैन्सिंग के बाद इससे बचने के लिए सबसे बड़ी बात लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता है ! लॉक डाउन के समय ही सरकार के आयुष मंत्रालय ने यह घोषणा कर दी थी, काढ़ा बनाने का प्रोसेस शेयर किया था ! लगभग सभी भारतीय घरों में लोगों ने कोरोना को भयानक बीमारी मानते हुए उससे लड़ने के लिए काढ़े का उपयोग शुरू कर दिया था !
सिर्फ मंत्रालय द्वारा सुझाया काढ़ा ही नहीं, काढ़े के अलावा प्रायः घरों में सुबह शाम निम्बू पानी, योगा, कुछ विटामिन्स की गोलिया, ऐलोवेरा, गिलोय के साथ रात्रि में हल्दी-दूध पीने के साथ ही सोते वक्त गरम पानी और नमक का गार्गल भी शुरू किया गया ! डेढ़ महीने के लॉक डाउन में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले इतने उपचार ने वास्तव में लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया, इसलिए तो अनलॉक के बाद जितने कोरोना रोगी बढ़ते गए, मृत्यु-दर नहीं बढ़ी ! बहुत सारे लोगों को कब कोरोना हुआ और कब ख़त्म भी हुआ पता भी नहीं चला, क्योंकि हर घर में उपचार तो चल ही रहा था ! हालांकि मुझे लगता है कि मास्क और सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन किया जाता तो केसेज भी नहीं बढ़ते, नुकसान की संभावना और कम होती !
वैसे भी भारतवर्ष में अभी भी आधे से अधिक लोगों को रोजी-रोटी के लिए शारीरिक तौर पर मेहनत करने की आवश्यकता पड़ती है ! मेहनत करने वाले लोगो की खुराक भी अच्छी होती है और प्राकृतिक तौर पर रोग प्रतिरोधक क्षमता भी ! अधिकांश समय कुर्सी में बैठकर काम करने वाले लोगो में से अधिकांश पिछले एक दो दशक में थाइरोइड, बीपी, मधुमेह और ह्रदय-रोग जैसी बीमारियों से ग्रस्त हुए ! उनमे से स्वास्थ्य पर ध्यान देनेवाले लोगों ने योग करना और दौड़ना-भागना जारी रखा था ! पर कुछ आलस की वजह से सिर्फ एलोपैथी दवा लेकर निश्चिंत बने रहें ! उनके सामने सबसे बड़ा ख़तरा आया, कोरोना से हुई अधिकाँश मौत में ये ही शामिल हैं ! बहुत सारी मौतें अफरा तफरी भरे माहौल के चलते भी हुई हैं !
किसी भी विपत्ति को दो तरह से झेला जाता है ! जबतक विपत्ति की प्रकृति नहीं मालूम हो, तबतक सावधान रहते हुए उसे समझने की जरूरत होती है ! जैसे ही हम विपत्ति की प्रकृति को समझने लगते हैं, उससे लड़ने का प्रयास करते हैं ! यदि विपत्ति बड़ी हो तो उसका सर्वनाश उचित समझते हैं ! कोरोना नयी बीमारी है, उस हिसाब से इसे हम समझ जरूर चुके हैं ! ऐलोपैथी की तुलना में कम समय में राजस्थान में आयुर्वेद तथा मुम्बई के धारावी में होम्योपैथी से कोरोना को मात दी जा चुकी है ! इस तरह हम कोरोना का खात्मा भले नहीं कर सकें, पर कुछ सुरक्षात्मक उपायों के साथ आयुर्वेद और होमियोपैथी की सहायता से नुकसान को कम जरूर कर सकते हैं !
एलोपैथी के डॉक्टर भी अब लोगों को यही सलाह देने लगे हैं ! दरअसल एलोपैथी में लोगों को विभिन्न रोगों से लड़ने के लिए जो एंटीबायोटिक दिए जाते हैं, वे शारीरिक क्षमता को कम करते हैं, जबकि आयुर्वेद प्राकृतिक शास्त्र है ! कोरोना के बहाने पिछले दो दशकों से दिमाग में चल रहा लोगों का भ्रम कि मानसिक विकास ही दुनिया को आगे बढ़ाएगा, अब समाप्त हो जाना चाहिए और हमें शारीरिक मजबूती के प्रयास भी बनाये रखने चाहिए ! बच्चों को खेल-कूद का भरपूर मौका दिया जाना चाहिए, बैठकर जीविका चलानेवालों को योगा और व्यायाम करना चाहिए ! सामान्य तौर पर दादी-नानी के घरेलु नुस्खे, आयुर्वेद पर अधिक और एलोपैथी पर निर्भरता कम होनी चाहिए ! एलोपैथी को इमरजेंसी हेल्थ सर्विस के तौर पर ही लेने की जरूरत है ! एक स्वस्थ तन और मन ही स्वस्थ दिमाग दे सकता है, इस बात को हमें नहीं भूलना चाहिए !
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