महादशा क्या होती है ?
Mahadasha kya hoti hai ?,
गत्यात्मक ज्योतिष के इस पाठ में आप ज्योतिष में दशा, महादशा और दशाकाल के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। इन शब्दों के अर्थ क्या है ? आपको यह जानना आवश्यक है कि कुंडली में कोई ग्रह शुभ या अशुभ होकर बैठे हो, वे पूरे जीवन तो फल देते हैं, पर उस उम्र में उस ग्रह का खासअच्छा या बुरा फल प्राप्त होता है, जब किसी ग्रह का दशाकाल चल रहा हो। ज्योतिष में दशाकाल निर्धारण यानि किसी ग्रह का खास प्रभाव उस व्यक्ति पर कब पड़ेगा, के लिए कई तरह की दशा पद्धति विकसित की गयी, पर उसमे सबसे लोकप्रिय विंशोत्तरी दशा पद्धति ही रही, जिसमे किसी ग्रह की महादशा चलती रहती है, उसके अंतर्गत किसी अन्य ग्रह की अन्तर्दशा, उसके अंतर्गत किसी अन्य ग्रह की प्रत्यंतर दशा , इसके साथ एक ग्रह की सूक्ष्म महादशा भी। इसके बारे में आप सबों को जानकारी होगी ही , यहाँ दुहराना व्यर्थ है।
'गत्यात्मक ज्योतिष' के द्वारा गत्यात्मक दशा पद्धति विकसित की गयी है , जिसमे ग्रहों को उनकी परिपक्वता के हिसाब से मनुष्य के जीवन में जगह दी गयी है। मन का प्रतीक ग्रह चन्द्रमा सबसे मासूम होता है, परम्परागत ज्योतिष में अनेक बालारिष्ट रोगों के कारण और उपाय का चन्द्रमा की कमजोरी और उन्हें शक्ति देने से सम्बन्ध बताया गया है, इसलिए गत्यात्मक दशा पद्धति में 12 वर्ष तक के बचपन का दशाकाल चन्द्रमा से प्रभावित माना गया है। परंपरागत ज्योतिष बुध को विद्या बुद्धि ज्ञान का कारक ग्रह मानता है, हम सभी जानते हैं कि किसी प्रकार के ज्ञानार्जन का समय यानि विद्यार्थी जीवन 12 से 24 वर्ष की उम्र का होता है , इस कारण गत्यात्मक ज्योतिष में 12 वर्ष से 24 वर्ष तक की उम्र को बुध से प्रभावित माना गया है। परंपरागत ज्योतिष मंगल को शक्ति, साहस से प्रचुर ग्रह मानता है, शक्ति साहस की प्रचुरता किसी भी व्यक्ति के जीवन में युवावस्था में ही आती है, इसलिए गत्यात्मक ज्योतिष 24 से 36 वर्ष की उम्र को मंगल के द्वारा प्रभावित मानता है। कूटनीतिक मामलों में सक्षम ग्रह शुक्र , जहाँ शक्ति और साहस की कमी होती है, कूटनीति का आरम्भ होता है। इसलिए गत्यात्मक ज्योतिष के अनुसार जीवन में शुक्र से प्रभावित समय 36 से 48 की उम्र को माना गया है, यहाँ व्यक्ति का मन घरेलू मामलों पर अधिक होता है।
गत्यात्मक ज्योतिष के अनुसार 48 की उम्र के बाद प्रभावशाली और ऊर्जावान ग्रह सूर्य का काल आता है , इस समय मनुष्य का प्रभाव और जिम्मेदारियाँ चरमोत्कर्ष पर होता है। इसलिए गत्यात्मक ज्योतिष 48 से 60 वर्ष की आयु का समय सूर्य के प्रभाव का मानता है। परंपरागत ज्योतिष में बृहस्पति को न्याय धर्म आदि का ग्रह माना गया है, 60 की उम्र तक अपनी जवाबदेही को समाप्त करने के बाद मनुष्य धर्म की ओर प्रवृत्त होता है, गत्यात्मक ज्योतिष ने भी 60 से 72 वर्ष की उम्र को बृहस्पति का दशाकाल माना है। परंपरागत ज्योतिष में शनि को सर्वाधिक वृद्ध ग्रह माना गया है , गत्यात्मक ज्योतिष भी 72 वर्ष से 84 वर्ष की उम्र को शनि का दशाकाल माना है। सभी ग्रह अपने दशाकाल में अपनी अपनी गत्यात्मक शक्ति के अनुसार मनुष्य पर अपना अच्छा या बुरा प्रभाव डालते हैं।
इसे समझने के लिए हम चन्द्रमा का उदहारण लें। गत्यात्मक दशा पद्धति के अनुसार अमावस के दिन चंद्र कमजोर होता है, अष्टमी के दिन सामान्य तथा पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा मजबूत होता है। मेष लग्नवालों के लिए चन्द्रमा मातृ स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा। वृष लग्नवालों के लिए चन्द्रमा भ्रातृ स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा। मिथुन लग्नवालों के लिए चन्द्रमा धन स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा। कर्क लग्नवालों के लिए चन्द्रमा शरीर स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा। सिंह लग्नवालों के लिए चन्द्रमा खर्च स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा।
इसी प्रकार कन्या लग्नवालों के लिए चन्द्रमा लाभ स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा। तुला लग्नवालों के लिए चन्द्रमा पितृ स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा।वृश्चिक लग्नवालों के लिए चन्द्रमा भाग्य स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा। धनु लग्नवालों के लिए चन्द्रमा जीवन स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा। मकर लग्नवालों के लिए चन्द्रमा परिवार स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा। कुम्भ लग्नवालों के लिए चन्द्रमा झंझट स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा। मीन लग्नवालों के लिए चन्द्रमा बुद्धि स्थान का स्वामी है, कमजोर, मजबूत या सामान्य चन्द्र का बचपन में प्रभाव अधिक दिखेगा।
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