“बेटा भाग्य से होता है पर बेटी सौभाग्य से होती हैं।
बेटा अंश हैं तो बेटी वंश हैं, बेटा आन हैं तो बेटी शान हैं.
बेटी ही असली जीवन की पूँजी है जो कभी धोखा नहीं देग
एक सभ्य समाज का निर्माण सिर्फ बेटियां ही कर सकती हैं।
बेटे तो एक घर चलाते हैं, बेटियां दो-दो घरों को स्वर्ग बनाती हैं।
बेटियां जिस घर भी जाती है, उस घर को हमेशा स्वर्ग बना देती हैं।
बेटे पिता की ज़मीन बांटते हैं और बेटियां पिता का दुख बांटती हैं।
हर परिवार की बेटी का सम्मान करना, हर नागरिक का दायित्व हैं।
हर बेटी की यही कहानी है, शादी के बाद कई नये रिश्तें निभानी है.
बेटी जन्म पर रोक न लगाओ, बेटी पैदा होने की खुशिया मनाओ!”
बेटियां तो बाबुल की रानियां होती हैं, मीठी-प्यारी कहानियां होती हैं।
पूरे घर की “जान” होती हैं बेटियाँ, दो कुलों की “मान” होती है बेटियाँ
मत समझो बेटी को भार, क्योंकि बेटी है भगवान का अनोखा उपहार’
बेटियों को किसी धन दौलत की नहीं बल्कि इज़्ज़त की जरूरत होती है।
जरूरी नहीं रौशनी चिरागों से ही हो, बेटियां भी घर में उजाला करती हैं।
यदि समाज को शिक्षित करना है तो सबसे पहले बेटियों को शिक्षित करो।
शाख़ है न फूल अगर तितलियां न हो, वो घर भी कोई घर है जहां बच्चियां न हो।
वह बेटी ही होती हैं जो नफरत की बजाय हमेशा, प्यार बाटने में ही जुटी रहती है।
माँ की जान, पिता की होती है ये लाड़ली, कोई नहीं कर सकता बेटियों की बराबरी
मानवता का खून जो कोख में बहाओगे, बेटियां नहीं होंगी तो बहू कहाँ से लाओगे।
लक्ष्मी का वरदान हैं बेटियां, सरस्वती का मान हैं बेटियां, धरती पर भगवान हैं बेटियां
किसी परिवार को ईश्वर की तरफ से दिया गया सबसे बहुमूल्य उपहार होता हैं “बेटी”।
जो व्यक्ति बेटियों को बोझ समझता हैं, वह असल में समाज के लिए खुद बोझ होता है
माँ-बाप का हमेशा ख्याल बेटियां रखती है, फिर क्यों परी-सी बेटी कोख में ही मरती है.
हर परिवार के कुल को बढ़ाती है बेटियां, फिर भी पैरों तले कुचल दी जाती है बेटियां।
बेटियों को जैसे संस्कार मिलते हैं , वैसे ही देश के नागरिक और समाज का निर्माण होता है ।
देवी का रूप, देवों का मान हैं बेटियां, परिवार के कुल को जो रोशन करें, वो चिराग हैं बेटियां।
जो समाज एक बेटी का सम्मान करना नहीं जनता, वह समाज हमेशा अनपढ़ ही कहलाता है।
खुद की बहन-बेटी को इज्जत से देखने वाले, दूसरों के बहन-बेटियों की इज्जत के बनों रखवाले।
”जागरूक बनिए, सोच बदलिये और यही है सही, जो पैसे मांगते है उन्हें भीख दीजिय, बेटी नहीं।
दहेज़ जैसे बुरे रस्मों-रिवाज और यह दुनियादारी, वरना किस माँ-बाप को अपनी बेटी नहीं होती है प्यारी।
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