ज्योतिष के अचूक उपाय
गत्यात्मक ज्योतिष मानता है कि मनुष्य के समक्ष उपस्थित होनेवाली शारीरिक, मानसिक या अन्य प्रकार की कमजोरी का एक कारण उसके जन्मकाल के कमजोर ग्रह हैं और उस ग्रह के प्रभाव को मानव पर पड़ने से रोककर ही उस समस्या को कम किया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र में नए ढंग से कुंडली देखने का तरीका ईजाद करने के बाद गत्यात्मक ज्योतिष ने बुरे ग्रहों के अचूक उपाय के लिए निम्न रास्ते सुझाये हैं -
समस्या का समाधान कैसे करें ? -1
समस्या का समाधान कैसे करें ? -2
जीव-जंतुओं के अतिरिक्त हमारे पूर्वजों ने पेड-पौधों का बारीकी से निरिक्षण किया। पेड़-पौधे की बनावट , उनके जीवनकाल और उसके विभिन्न अंगों की विशेषताओं का जैसे ही उसे अहसास हुआ, उन्होने जंगलो का उपयोग आरंभ किया। हर युग में वनस्पति-शास्त्र वनस्पति से जुड़े तथ्यो का खुलासा करता रहा ,जिसके अनुसार ही हमारे पूर्वजों ने उनका उपयोग करना सीखा। फल देनेवाले बड़े वृक्षों के लिए बगीचे लगाए जाने लगे। सब्जी देनेवाले पौधों को मौसम के अनुसार बारी-बारी से खाली जमीन पर लगाया जाने लगा। इमली जैसे खट्टे फलों का स्वाद बढ़ानेवाले व्यंजनों में इस्तेमाल होने लगा। मजबूत तने वाली लकड़ी फर्नीचर बनाने में उपयोगी रही। पुष्पों का प्रयोग इत्र बनाने में किया जाने लगा। कॉटेदार पौधें का उपयोग बाड़ लगाने में होने लगा। ईख के मीठे तनों से मीठास पायी जाने लगी। कडवे फलों का उपयोग बीमारी के इलाज में किया जाने लगा।पूरा पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें !
समस्या का समाधान कैसे करें ? -3
फिर हमारे पूर्वजों की नजरें आसमान तक भी पहुंच ही गयी। अगणित तारें, चंद्रमा, सूर्य , राशि ,नक्षत्र ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,भला इनके शोध क्षेत्र में कैसे शामिल न होते। ब्रह्मांड के रहस्यों का खुलासा करने में मानव को असाधारण सफलता भी मिली और इन प्राकृतिक नियमों के अनुसार उन्होने अपने कार्यक्रमों को निर्धारित भी किया। पृथ्वी अपनी घूर्णन 24 घंटे में पूरी करती है इस कारण 24 घंटे की घड़ी बनायी गयी। चंद्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने में 28 दिन लगते हैं इसलिए चंद्रमास 28 दिनों का निश्चित किया गया। 365 दिनों में पृथ्वी अपने परिभ्रमण-पथ पर पूरी घूम जाती है , इसलिए 365 दिनों के एक वर्ष का कैलेण्डर बनाया गया। 6 घंटे के अंतर को हर चौथे वर्ष लीप ईयर मनाकर समायोजित किया गया। दिन और रात , पूर्णिमा और अमावस्या , मौसम परिवर्तन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,सब प्रकृति के नियमों के अनुसार होते हैं इसकी जानकारी से न सिर्फ समय पर फसलों के उत्पादन में ही , वरन् हमें अपना बचाव करने में भी काफी सुविधा होती है। अधिक गर्मी पड़नेवाले स्थानों में ग्रीष्मऋतु में प्रात: विद्यालय चलाकर या गर्मियों की लम्बी छुटि्टयॉ देकर चिलचिलाती लू से बच्चों का बचाव किया जाता है। बरसात के दिनों में बाढ की वजह से रास्ता बंद हो जानेवाले स्थानों में बरसात में छुटि्टयॉ दे दी जाती हैं ।पूरा पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें !
समस्या का समाधान कैसे करें ? - 4
युगों-युगों से मनुष्य अपने समक्ष उपस्थित होनेवाली समस्याओं के कारणों की जानकारी और उसके समाधान के लिए चिंतन-मनन करता रहा है। मानव-मन के चिंतन मनन के फलस्वरुप ही नाना प्रकार के उपचारों के विवरण हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि प्राकृतिक वनस्पतियों से ही सब प्रकार के रोगों का उपचार संभव है , उनकी पद्धति नेचरोपैथी कहलाती है। कुछ विद्वानों का मानना है कि जल ही जीवन है और इसके द्वारा ही सब प्रकार के रोगों का निदान संभव है। एक अलग वर्ग का मानना है कि विभिन्न प्रकार के योग और व्यायाम का भी मानव स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। कुछ ऋषि-मुनियों का मानना है कि वातावरण को स्वास्थ्यवर्द्धक बनाने में समय-समय पर होनेवाले यज्ञ हवन की भी बड़ी भूमिका होती है। सतत् विकास के क्रम में इसी प्रकार आयुर्वेद , होम्योपैथी , एक्यूपंक्चर , एक्यूप्रेशर , एलोपैथी की भी खोज हुई। फलित ज्योतिष मानता है कि मनुष्य के समक्ष उपस्थित होनेवाली शरीरिक , मानसिक या अन्य प्रकार की कमजोरी का मुख्य कारण उसके जन्मकाल के किसी कमजोर ग्रह का प्रभाव है और उस ग्रह के प्रभाव को मानव पर पड़ने से रोककर ही उस समस्या को दूर किया जा सकता है। इसी क्रम में विभिन्न धातुओं और रत्नों द्वारा या तरह तरह के पूजा पाठ के द्वारा ग्रहों के प्रभाव को कम कर रोगों का इलाज करने की परंपरा की शुरुआत हुई।पूरा पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें !
समस्या का समाधान कैसे करें ? - 5
हम संगति के महत्व के बारे में हमेशा ही कुछ न कुछ पढ़ते आ रहें हैं। यहॉ तक कहा गया है -----` संगत से गुण होत हैं , संगत से गुण जात ´। गत्यात्मक ज्योतिष्ा भी संगति के महत्व को स्वीकार करता है। एक कमजोर ग्रह या कमजोर भाववाले व्यक्ति को मित्रता , संगति , व्यापार या विवाह वैसे लोगों से करनी चाहिए , जिनका वह ग्रह या वह भाव मजबूत हो। इस बात को एक उदाहरण की सहायता से अच्छी तरह समझाया जा सकता है। यदि एक बालक का जन्म अमावस्या के दिन हुआ हो , तो उन कमजोरियों के कारण , जिनका चंद्रमा स्वामी है ,बचपन में बालक का मनोवैज्ञानिक विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है और बच्चे का स्वभाव कुछ दब्बू किस्म का हो जाता है , उसकी इस स्थिति को ठीक करने के लिए बालक की संगति पर ध्यान देना होगा। उसे उन बच्चों के साथ अधिकांश समय व्यतीत करना चाहिए , जिन बच्चों का जन्म पूर्णिमा के आसपास हुआ हो। उन बच्चों की उच्छृंखलता को देखकर उनके बाल मन का मनोवैज्ञानिक विकास भी कुछ अच्छा हो जाएगा। इसके विपरीत यदि उन्हें अमावस्या के निकट जन्म लेनेवाले बच्चों के साथ ही रखा जाए तो बालक अधिक दब्बू किस्म का हो जाएगा। इसी प्रकार अधिक उच्छृंखल बच्चों को अष्टमी के आसपास जन्म लेनेवाले बच्चों के साथ रखकर उनके स्वभाव को संतुलित बनाया जा सकता है। इसी प्रकार व्यवसाय , विवाह या अन्य मामलों में अपने कमजोर ग्रहों के प्रभाव को कम करने या अपने कमजोर भावों की समस्याओं को कम करने के लिए सामनेवाले के यानि मित्रों या जीवनसाथी की जन्मकुंडली में उन ग्रहों या मुद्दों का मजबूत रहना अच्छा होता है।पूरा पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें !
समस्या का समाधान कैसे करें ? - 6
यह तथ्य सर्वविदित ही है कि विभिन्न पदार्थों में रंगों की विभिन्नता का कारण किरणों को अवशोषित और उत्सर्जित करने की शक्ति है। जिन रंगों को वे अवशोषित करती हैं , वे हमें दिखाई नहीं देती , परंतु जिन रंगों को वे परावर्तित करती हैं , वे हमें दिखाई देती हैं। यदि ये नियम सही हैं तो चंद्र के द्वारा दूधिया सफेद , बुध के द्वारा हरे , मंगल के द्वारा लाल , शुक्र के द्वारा चमकीले सफेद , सूर्य के द्वारा तप्त लाल , बृहस्पति के द्वारा पीले और शनि के द्वारा काले रंग का परावर्तन भी एक सच्चाई होनी चाहिए।पूरा पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें !
समस्या का समाधान कैसे करें ? - 7
ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के उपायों की जो श्रृंखला चल रही है , उसे अंधविश्वास न समझा जाए , क्यूंकि हमलोग ग्रंथों को सिर्फ पढते ही नहीं , उसके सिद्धांतों की पूर्ण तौर पर परख करके गलत को गलत और सही को सही साबित करने के बाद लिखा करते हैं। अब यह हमारी विवशता ही है कि बंदूक की गोली की तरह न तो ग्रहों के प्रभाव को देखा और दिखाया जा सकता है , फिर उसके प्रभाव को रोकने के लिए किए गए उपायों को प्रमाणित करने के लिए हमारे पास कोई साधन कैसे हो सकता हैं ? पहले के छह भागों को पढने के लिए यहां क्लिक करें , अब उसका आगे का यानि सातवां भाग पढे ...
समस्या का समाधान कैसे करें ? - 9
एक सप्ताह बाद अपने रिश्तेदारी के एक विवाह से लौटी मेरी बहन ने कल एक प्रसंग सुनाया। उस विवाह में दो बहनें अपनी एक एक बच्ची को लेकर आयी थी। हमउम्र लग रही उन बच्चियों में से एक बहुत चंचल और एक बिल्कुल शांत थी। उन्हें देखकर मेरी बहन ने कहा कि इन दोनो बच्चियों में से एक का जन्म छोटे चांद और एक का बडे चांद के आसपास हुआ लगता है। वैसे तो उनकी मांओं को हिन्दी पत्रक की जानकारी नहीं थी , इसलिए बताना मुश्किल ही था। पर हिन्दी त्यौहारों की परंपरा ने इन तिथियों को याद रखने में अच्छी भूमिका निभायी है , शांत दिखने वाली बच्ची की मां ने बताया कि उसकी बच्ची दीपावली के दिन हुई है यानि ठीक अमावस्या यानि बिल्कुल क्षीण चंद्रमा के दिन ही और इस आधार पर उसने बताया कि दूसरी यानि चंचल बच्ची उससे डेढ महीने बडी है। इसका अर्थ यह है कि उस चंचल बच्ची के जन्म के दौरान चंद्रमा की स्थिति मजबूत रही होगी। ज्योतिष की जानकारी न रखने वालों ने तो इतनी छोटी सी बात पर भी आजतक ध्यान न दिया होगा। क्या यह स्पष्ट अंतर पुराने जमाने के बच्चों में देखा जा सकता था ? कभी नहीं , आंगन के सारे बच्चे एक साथ उधम मचाते देखे जाते थे , कमजोर चंद्रमा के कारण बच्चे के मन में रहा भय भी दूसरों को खेलते कूदते देखकर समाप्त हो जाता था। मन में चल रही किसी बात को उसके क्रियाकलापों से नहीं समझा जा सकता था।पूरा पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें !