परंपरागत ज्ञान-विज्ञान पुराने युग के जीवन पद्धति के अनुकूल था, इसलिए आज की जीवनपद्धति के अनुसार देखा जाए , तो इसमें कुछ कमियां अवश्य दिखाई पडती हैं, पर इसके बावजूद यह मुझे बहुत आकर्षित करता है और शायद यही कारण है कि न सिर्फ इसकी वैज्ञानिक व्याख्या सुननी ही मुझे अच्छी लगती है , मैं स्वयं छोटी मोटी हर परंपरा तक की वैज्ञानिक व्याख्या में दिलचस्पी रखती हूं।
2004 में राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला , दिल्ली में परंपरागत ज्ञान विज्ञान के एक सेमिनार में इस प्रकार के कई शोध प्रस्तुत किए गए थे , जिसमें से रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय , जबलपुर के पूर्व कुलपति डा सुरेश्वर शर्मा द्वारा प्रस्तुत किए गए एक शोघपत्र ने मुझे आश्चर्यित कर दिया था , जो आपलोगों के लिए प्रस्तुत कर रही हूं ....
महामहोपाध्याय पं गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी ने अपने ग्रंथ ‘वैदिक विज्ञान और भारतीय संस्कृति’ में एक प्राचीन श्लोक का उद्धरण दिया है , जिसमें जीव तत्व की उपस्थिति के आकार को बताया है ...
बालाग्र शतभागस्य शतधा कल्पितस्य च ।
तस्य भागस्य भागम् ऐषा जीवस्थ कल्पना ।।
एक जीवन से दूसरे जीवन की निरंतरता विज्ञान की भाषा में जीवन तत्व अथवा ‘जीन’ के नाम से और उसके द्वारा जानी जाती है। इसके आकार माप का जो वर्णन इस श्लोक में बताया गया है , वह अद्भुत और आश्चर्यजनक रूप से ठीक वही है , जो आधुनिक विज्ञान ने जीन अथवा आनुवंशिकी कारक अर्थात डी एन ए के अणु को मापा है। यह माप 10 नैनो मीटर है। मनुष्य के बाल की मोटाई 100 माइक्रोमीटर या एक मि मी के दसवें भाग के बराबर मापी गयी है।
एक नैनोमीटर एक मि मी का सौ करोडवां भाग है। माइक्रोमीटर एक मीटर का दस लाखवां भाग है और मि मी का हजारवां भाग। इस प्रकार दस नैनोमीटर बाल की मोटाई का दस करोडवां भाग हुआ। प्राचीन और आधुनिक विज्ञानियों के सूक्ष्म मापन में अद्भुत समानता आश्चर्यित करती है। यह अपने आपमें प्रमाण है कि सामान्य नेत्रों से देखकर इतनी सूक्ष्म माप संभव नहीं है। अत: उस समय उन्नत सूक्ष्मदर्शी यंत्र या उससे मिलती जुलती कुछ उपकरण व्यवस्था अवश्य होगी , जिसकी खोज की जानी चाहिए।
उसी प्रकार पं चतुर्वेदी ने मनुष्य के संतानोत्पादन करनेवाले गुणों को धारण करनेवाले तत्व को ‘सह:’ का नाम दिया है , जो इस बात को स्पष्ट करता है कि ये ‘सह:’ यानि साथ साथ चलते हैं। अर्थात् अनेक एक साथ रहते हैं , जिनकी संख्या 84 है। 'सह:' को आधुनिक भाषा में हम सेट भी कह सकते हैं। गुणसूत्र तो 23 जोडे होते हैं , परंतु उसमें जीन सेट अर्थात् लिंक्ड जीन सेट्स के समूह होते हैं। वे ही एक पीढी से दूसरी पीढी में अदल बदल कर स्थानांतरित होते हैं। जीन सेट ट्रांसमिशन की निश्चित संख्या का ज्ञान अभी ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट की शोध परियोजनाओं का विषय है।
इन 84 'सह:' के संयोग और पीढी स्थानांतरण में इनकी निश्चित संख्या भी हैरान करनेवाली है क्यूंकि अभी इस स्तर पर हमारा आधुनिक अनुवांशिकी विज्ञान भी नहीं पहुंच सका है। 84 में से 56 'सह:' यानि जीन सेट अनुवांशिक होते हैं , 84 में से 28 'सह:' या जीन सेट उपार्जित होते हैं , 56 में से 21 'सह:' माता + पिता के मिलते हैं , 15 'सह:' दादा + दादी के मिलते हैं , 10 'सह:' पडदादी + पढदादा के मिलते हैं , 6 'सह:' प्रपडदादी + प्रपडदादा के मिलते हैं , 3 'सह:' पूर्व प्रपडदादी + पूर्व प्रपडदादा के होते हैं और 1 'सह:' पूर्व छठी पीढी के। वंशावली तालिका बनाकर इन महत्वपूर्ण वैज्ञानिक ज्ञान का सत्यापन कर ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट के शोधकर्ता इस प्राचीन ज्ञान को वैज्ञानिक ढंग से लोगों के सामने रख सकते हैं।