बीज तो हर दिमाग में होते हैं , पर समय पर ही उनकी देखभाल हो पाती है , अंकुरण हो पाता है , विकास के क्रम में उन्हें हर प्रकार का वातावरण मिल पाता है और वह छोटा सा बीज एक विशाल वृक्ष बन पाता है। आज के सामाजिक राजनीतिक हालत में अनेको दिमाग के बीज दिमाग में ही सोए पडे रह जाते हैं और अनेको प्रकृति की मार से मौत के मुंह में भी चले जाते हैं। मैं आशा करती हूं कि हर दिमाग के बीज को एक विशाल वृक्ष बनाने में हर कोई मदद करे , ताकि हमारे चारो ओर विशाल ही विशाल वृक्ष नजर आए , सभी अपनी अपनी विशेषताओं की घनी पत्तियों से छांव , सुगंधित पुष्पों से वातावरण में सुगंध और मीठे फलों से लोगों को असीम तृप्ति प्रदान करे।
प्रकृति के सहयोग प्राप्त होने से बहुत लोग मेहनत और आवश्यकता से बहुत अधिक प्राप्त कर रहे होते हैं , इन्हें अपने सामर्थ्य का उपयोग दूसरों की असमर्थता को दूर करने में करना चाहिए , क्यूंकि प्रकृति पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता कि आज वो आपका साथ दे रही है और संयोग से आपके काम बनते जा रहे हैं , तो कल भी आपकी यही स्थिति होगी। कभी भी आपको किसी और की आवश्यकता पड सकती है। किसी की मदद करते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि उसे बार बार मदद करने की आवश्यकता न पडे , उसे इस प्रकार की मदद करें कि आनेवाले दिनों में वो इतना मजबूत हो सके कि वो पुन: दो चार लोगों की मद कर उन्हें भी इस लायक बना सके कि वो दूसरों की मदद कर सके।
मेरे ख्याल से हमारी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिए कि वह आनेवाली पीढी को शारीरिक , आर्थिक , मानसिक , नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक से अधिक मजबूत बनाती चली जाए। इनमें किसी का भी महत्व आनेवाले समय में कम नहीं होता है। इनकी मजबूती हमें हर परिस्थिति में खुशी से जीना सीखा देती है, जो मस्तिष्क में किसी प्रकार का तनाव कम करने में सहायक है।
19 टिप्पणियां:
हमारी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिए कि वह आनेवाली पीढी को शारीरिक , आर्थिक , मानसिक , नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक से अधिक मजबूत बनाती चली जाए। इनमें किसी का भी महत्व आनेवाले समय में कम नहीं होता है। इनकी मजबूती हमें हर परिस्थिति में खुशी से जीना सीखा देती है, जो मस्तिष्क में किसी प्रकार का तनाव कम करने में सहायक है।
इस अभियान में मैं आपके साथ हूँ!
नये ब्लॉग की बहुत-बहुत बधाई!
प्रकृति पर भरोसा नहीं करने वाली बात कुछ जमी नहीं . प्रकृति एक अभिन्न अंग है इस श्रिस्टी का
डा महेश सिन्हा जी ,
टिप्पणी के लिए आभार .. प्रकृति पर भरोसा न करें तो हम जाएंगे कहां .. मैने यह बात उनके लिए लिखी है, जिन्हे प्रकृति ने जरूरत से अधिक संसाधन दिया है और वे उसका उपयोग दूसरों के लिए नहीं कर रहे हैं !
प्रकृति पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता कि आज वो आपका साथ दे रही है और संयोग से आपके काम बनते जा रहे हैं , तो कल भी आपकी यही स्थिति होगी।
Anek shubhkamnayen...naye blog ke liye!
Aapke har shabd se sahmat hun!
Aameen..aapki ichha zaroor poori hogi! Harek shabd sahee hai...aur sakaratmak!
अच्छी रचना। बधाई। स्वागत।
सुन्दर रचना
Sangeeta ji,
Bahut hee achche shabdon men apane ek preranadayak bat likhee hai.hardik shubhakamnayen.
Poonam
अच्छी रचना। बधाई। स्वागत।
निश्चय ही ठोस विषय के अलावा अपने विचारों की बेलाग उड़ान के लिए एक अलहदा ब्लॉग की आवश्यकता हमेशा थी और रहेगी।
नए ब्लॉग के साथ आपका फिर से स्वागत है।
very good
हमारी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिए कि वह आनेवाली पीढी को शारीरिक , आर्थिक , मानसिक , नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक से अधिक मजबूत बनाती चली जाए। इनमें किसी का भी महत्व आनेवाले समय में कम नहीं होता है। इनकी मजबूती हमें हर परिस्थिति में खुशी से जीना सीखा देती है
हमारी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिए कि वह आनेवाली पीढी को शारीरिक , आर्थिक , मानसिक , नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक से अधिक मजबूत बनाती चली जाए। इनमें किसी का भी महत्व आनेवाले समय में कम नहीं होता है। इनकी मजबूती हमें हर परिस्थिति में खुशी से जीना सीखा देती है, जो मस्तिष्क में किसी प्रकार का तनाव कम करने में सहायक है।
bilkul sahi baat kahi.........hamare karm aise hone chahiye jo auron ke prernastotra ban jayein..........bahut hi sarthak lekh.
नमस्कार संगीता जी !
आपके लेख से आपकी सुंदर सोच का आभास होता है, आपके विचार प्रेरणा दायक हैं, कोशिश करुँगा पालन कर सकूं ।
सादर नमस्कार !
bahut-2 badhai!!!
Bahuupyogi soch ka yeh aagaz safal ho.
किसी की मदद करते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि उसे बार बार मदद करने की आवश्यकता न पडे , उसे इस प्रकार की मदद करें कि आनेवाले दिनों में वो इतना मजबूत हो सके कि वो पुन: दो चार लोगों की मद कर उन्हें भी इस लायक बना सके कि वो दूसरों की मदद कर सके।
बहुत सुंदर लेख ।
इस अभियान में मैं आपके साथ हूँ!
सन्गीता जी ,यदि किसी को प्रक्रिति ने बहुत दिया है तो बह उसके लायक ही होगा,आप्के ज्योतिष, दर्शन, अध्यात्म, धर्म के ही अनुसार प्रक्रिति कभी अन्याय नहीं करती।
वस्तुतः आप कहना चाहतीं हैं कि भाग्य व समय के भरोसे नहीं रहना चाहिये,अतः सभी को सभी की सहायता करते रहना चाहिये यानी परमार्थ; यही ठीक तथ्य है.
आपके विचार सुन्दर व सामयिक हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं। बधाई।
काम की बातें हैं... हर दिमाग को अमल में लानी चाहिये।
shandar,damdar,jandar.narayan narayan
टिप्पणी पोस्ट करें