मेरे पुराने पाठकों में से सबों को 11 जनवरी का एक आलेख याद ही होगा , जिसमें मैने 16 जनवरी को एक बडे भूकम्प के आने की आशंका जतायी थी , इसपर बहुत पाठकों ने सोंचा था कि मैं प्रतिदिन आनेवाली भूकम्प की घटना को ग्रहों का प्रभाव सिद्ध करने की बेमतलब कोशिश कर रही हूं,पर इसी दिन हैती में आए भूकम्प ने मेरा साथ देकर ग्रहों के पृथ्वी पर पडनेवाले प्रभाव को साबित कर दिया था। 200 साल के सबसे भयंकर भूकंप में कैरेबियाई देश हैती में हजारों लोग मलबे के नीचे दब गए थे। भूकंप में हैती का राष्ट्रपति भवन भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। संयुक्त राष्ट्र के पीसकीपर का हेड क्वार्टर, नेशनल पैलेस(राष्ट्रपति भवन ), एक अस्पताल और कुछ महत्वपूर्ण बिल्डिंग इस भूकंप में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई थी।
दो तीन वर्षों के ब्लॉग लेखन में मौसम को लेकर मैं तो अक्सर भविष्यवाणियां करती रहती हूं , पर भूकम्प को लेकर मेरे द्वारा यह पहली भविष्यवाणी की गयी थी , जिसके तिथि और समय के निर्धारण में तो मुझे पूरी कामयाबी मिली थी , पर स्थान के बारे में मेरी गणना में चूक रह गयी थी। इस घटना पर ब्लॉग जगत का पूरा ध्यान गया था और चार दिनों तक हमारी बहस भी चली थी। जहां कुछ ने मेरी भविष्यवाणी को सही मानते हुए मुझे और सटीकता के साथ भविष्यवाणी करने के लिए शुभकामनाएं दी थी , वहीं कुछ पाठकों ने भूकम्प के बारे में मेरे स्थान की कमजोरी को दिखाते हुए और इस भविष्यवाणी की सार्थकता के बारे में प्रश्न भी किया था।
वास्तव मे इतने बडे ब्रह्मांड में आकाशीय पिंडों की खास खास स्थिति , उनके मध्य खास कोणिक दूरी से पृथ्वी पर कुछ विशेष प्रकार की घटनाओं का अंदाजा लगता है। पृथ्वी पर होनेवाली हलचल का पूरा संबंध ब्रह्मांड में ग्रहों की खास स्थिति से है, इसलिए इसके आकलन में दिक्कत नहीं आती , साथ ही सटीकता बनी रहती है। पर जहां तक पृथ्वी के खास भाग के प्रभावित होने का प्रश्न है , हमें कामयाबी नहीं मिल पाती। 'गत्यात्मक ज्योतिष' के नियमों की माने तो 2010 में ही आनेवाले समय में एक और बडे भूकम्प की आशंका नजर आ रही है , नवंबर के मध्य में आसमान में मौजूद ग्रहीय स्थिति पृथ्वी पर एक बडे भूकम्प की जबाबदेह हो सकती है। इस भूकम्प में बडे पैमाने पर नुकसान की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
नवंबर के मध्य में भूकम्प की संभावना की खास तिथि , समय और स्थान की चर्चा करते हुए इसपर और विस्तार से जानकारी देते हुए एक पोस्ट नवम्बर के प्रथम सप्ताह में लिखने की कोशिश करूंगी। हालांकि मैने पहले भी स्पष्ट किया है कि जितनी सटीकता से किसी घटना की तिथि और समय की जानकारी दी जा सकती है , उतनी सटीकता घटना के स्थान में नहीं हो सकती है। इसकी वजह पृथ्वी की इतनी तेज गति मानी जा सकती है , दैनिक गति के कारण पृथ्वी 1669 किमी प्रतिघंटे के रफ्तार से चलती है। इसके अलावे वार्षिक गति के कारण प्रतिघंटे 108,000 किमी की दूरी पार करती है , जिसके कारण इसका कौन सा भाग कब कहां और कैसे गुजर जाता है , इसका अंदाजा लगाना हम जैसे संसाधन विहीनों लिए काफी मुश्किल होता है। लेकिन फिर भी मैं अपनी पूरी जानकारी से स्थान का पता लगाने की कोशिश कर रही हूं।
वैसे मोटा मोटी तौर पर मेरे द्वारा अबतक जो गणना हुई है , उसमें भारतवर्ष के आक्षांस और देशांतर का स्थान किसी भी कोण से नहीं आ रहा है। फिर भी भूगर्भशास्त्रियों से उम्मीद रखूंगी कि वो इसका ध्यान रखे। प्रकृति अचानक किसी भी घटना को अंजाम नहीं देती , किसी प्रकार की दुर्घटना से पहले वह बारंबार किसी न किसी प्रकार का संकेत दिया करती है। पर हम मनुष्य उसके संकेत को नहीं समझते और अंत में अनिष्ट हो ही जाया करता है। यदि पृथ्वी के किसी भाग में नवंबर के मध्य में एक बडा भूकम्प आना है , तो उस भाग में आनेवाले डेढ महीने के अंदर भूगर्भ शास्त्रियों को हलचल तो अवश्य दिखाई पडेगा , आवश्यकता है इस बात पर ध्यान देने की , ताकि उस क्षेत्र के कम से कम लोगों को नुकसान पहुंच सके। वैसे मैं अभी भी इस बात के लिए अध्ययनरत हूं कि इस बारे में मुझे अधिक से अधिक जानकारी मिल सके।