लगभग 24 वर्ष की उम्र के बाद अक्सरहा लोग पूरे उत्साह के साथ जीविकोपार्जन के लिए संघर्ष शुरू कर देते हैं। वे शादी कर पति पत्नी भी बन जाते हैं। परंपरागत ज्योतिष में मंगल को शक्ति और साहस का प्रतीक ग्रह माना जाता है और यदि मानव जीवन पर ध्यान दिया जाए , तो 24 वर्ष की उम्र के बाद शक्ति और साहस की प्रचुरता बनती है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' ने अपने अध्ययन में पाया कि जन्मकुंडली में मंगल प्रतिकूल हो , तो जातक का प्रारंभिक दाम्पत्य जीवन या तो कलहपूर्ण होता है या वे 24 वर्ष की उम्र से 36 वर्ष की उम्र तक बेरोजगार की स्थिति में भटकते रहते हैं। इस अंतराल इनके जीवन में किसी तरह भी स्थायित्व नहीं आ पाता। जबकि मंगल मजबूत हो तो लोगों को कैरियर में अच्छी सफलता मिलती है। इनका दाम्पत्य जीवन भी सुखद होता है। परंपरागत ज्योतिष शास्त्र में भी इस ग्रह को वयस में युवा सेनापति कहा गया है , अत: इस वय में मंगल के काल की पुष्टि हो जाती है।
36 वर्ष की उम्र तक शरीर की सारी ग्रंथियां बनकर तैयार हो जाती है , मनुष्य का नैतिक दृष्टिकोण निश्चित हो जाता है। इसलिए भारत के राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक शर्त की उम्र 35 वर्ष है। इस उम्र में आते आते व्यक्ति को परिवार के प्रति लगाव बढने लगता है , इस वक्त जिम्मेदारियां भी भरपूर होती हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' ने अपने अध्ययन में पाया कि यदि जन्मकालीन शुक्र मजबूत हो , तो जातक 36 वर्ष से 48 वर्ष तक का समय बहुत अच्छे एंग से गुजारते हैं , बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह आसानी से करने में सफलीभूत होते हैं/ रोजगार में रहनेवालों को अधिक मुनाफा होता है और नौकरी करनेवालों को प्रोन्नति मिलती है। यदि शुक्र कमजोर होता है तो जातक इस अवधि में पगतिकूल परिस्थितियों से गुजरना पडता है।
जिन कुंडलियों मे सूर्य बलवान होता है , उनके उत्कर्ष का समय 48 से 60 वर्ष तक की अवस्था होती है। सूर्य बलवान होने के कारण ही इंदिरा गांधी 48 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनी और 1977 तक यानि 60 वर्ष की उम्र तक बिना परिवर्तन के डटी रही। इसके विपरीत सूर्य कमजारे हो , तो 48 वर्ष से 60 वर्ष की उम्र तक जातकों को कई प्रकार की मुसीबत से जूझना पडता है। फलित ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथो में मंगल को राजकुमार और सूर्य को राजा कहा गया है। मंगल के दशाकाल 24 वर्ष से 36 वर्ष की उम्र में पिता बनने की उम्र 24 वर्ष जोड दी जाए , तो वह 48 वर्ष से 60 वर्ष हो जाता है। अत: इसे सूर्य का दशाकाल माना जा सकता है।
प्राचीन ज्योतिष में बृहस्पति को सृजनशील वृद्ध ब्राह्मण माना जाता है। इसलिए हंस योग के फलीभूत होने की उम्र 60 वर्ष से 72 वर्ष की अवस्था मानी जाती है। सचमुच मानव जीवन में इस उम्र को अत्यंत ही बडप्पन युक्त और प्रभावपूर्ण देखा गया है। जिसकी जन्मकुंडली में बृहस्पति मजबूत होता है , सेवावनवृत्ति के बाद निश्चिंति से जीवन निर्वाह करते हैं। बृहस्पति कमजोर होने पर उनकी जबाबदेहियां सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी बनी रहती हैं। पं जवाहर लाल नेहरू जी की जन्मकुंडली में बृहस्पति बहुत मजबूत स्थिति में था नेहरू जी 60 वर्ष की उम्र से 72 वर्ष की उम्र तक लागातार भारत के प्रधानमंत्री बने रहें। इसलिए इस उम्र में बृहस्पति के दशाकाल की पुष्टि हो जाती है।
'गत्यात्मक ज्योतिष' ने 72 वर्ष की उम्र के बाद मानव जीवन पर शनि का प्रभाव महससू किया है , क्यूंकि यदि महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की कुंडली पर ध्यान दिया जाए , तो यही मिलेगा कि दोनो के ही मारक भाव द्वितीय भाव में शनि स्थित है। इन दोनो महापुरूषों की मृत्यु 72 वर्ष की उम्र के बाद हुई। परंपरागत ज्योतिष भी शनि को अतिवृद्ध के रूप में स्वीकार करता है। शनि बली सभी मनुष्य इस उम्र में सुखी होते हैं , जबकि जन्मकालीन शनि कमजोर हो तो इस उम्र में वे प्रतिकूल स्थिति में जीने को बाध्य होते हैं।
84 वर्ष के बाद 120 वर्ष तक की आयु , जो मनुष्य की परमायु बतायी गयी है , का समय तीन ग्रहों यूरेनस , नेप्च्यून और प्लूटों को दिया जा सकता है। इनमें से प्रत्येक ग्रह को बारी बारी से 12 - 12 वर्षों का समय दिया जा सकता है। इस प्रकार किसी जातक के उम्र विशेष पर विभिन्न ग्रहों का प्रभाव इस प्रकार देखा जा सकता है .........
जन्म से 12 वर्षों तक का समय .... बाल्यावस्था ..... चंद्रमा,
12 से 24 वर्षों तक का समय .... किशोरावस्था ...... बुध ,
24 से 36 वर्षों तक का समय ..... युवावस्था ...... मंगल,
36 से 48 वर्षों तक का समय .... पूर्व प्रौढावस्था ... शुक्र,
48 से 60 वर्षों तक का समय ..... उत्तर प्रौढावस्था .... सूर्य,
60 से 72 वर्ष तक का समय ..... पूर्व वृद्धावस्था .... बृहस्पति,
72 से 84 वर्ष तक का समय ..... उत्तर वृद्धावस्था ..... शनि,
इस प्रकार सभी ग्रह कुंडली में प्राप्त बल और स्थिति के अनुसार मानव जीवन में अपनी अवस्था विशेष में प्रभाव डालते रहते हैं। लेकिन इन 12 वर्षों में भी प्रथम छह वर्ष और बाद के छह वर्ष में अलग अलग प्रभाव दिखाई देता है। इसके अलावे इन 12 वर्षों में भी बीच बीच में उतार चढाव का आना या छोटे छोटे अंतरालों में खास परिस्थितियों का उपस्थित होने का ज्ञान इस पद्धति से संभव नहीं है। 12 वर्ष के अंतर्गत होनेवाले उलटफेर का निर्णय हम 'लग्न सापेक्ष गत्यात्मक गोचर प्रणाली' से करें , तो दशाकाल से संबंधित सारी कठिनाइयां समाप्त हो जाएंगी।
36 वर्ष की उम्र तक शरीर की सारी ग्रंथियां बनकर तैयार हो जाती है , मनुष्य का नैतिक दृष्टिकोण निश्चित हो जाता है। इसलिए भारत के राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक शर्त की उम्र 35 वर्ष है। इस उम्र में आते आते व्यक्ति को परिवार के प्रति लगाव बढने लगता है , इस वक्त जिम्मेदारियां भी भरपूर होती हैं। 'गत्यात्मक ज्योतिष' ने अपने अध्ययन में पाया कि यदि जन्मकालीन शुक्र मजबूत हो , तो जातक 36 वर्ष से 48 वर्ष तक का समय बहुत अच्छे एंग से गुजारते हैं , बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह आसानी से करने में सफलीभूत होते हैं/ रोजगार में रहनेवालों को अधिक मुनाफा होता है और नौकरी करनेवालों को प्रोन्नति मिलती है। यदि शुक्र कमजोर होता है तो जातक इस अवधि में पगतिकूल परिस्थितियों से गुजरना पडता है।
जिन कुंडलियों मे सूर्य बलवान होता है , उनके उत्कर्ष का समय 48 से 60 वर्ष तक की अवस्था होती है। सूर्य बलवान होने के कारण ही इंदिरा गांधी 48 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनी और 1977 तक यानि 60 वर्ष की उम्र तक बिना परिवर्तन के डटी रही। इसके विपरीत सूर्य कमजारे हो , तो 48 वर्ष से 60 वर्ष की उम्र तक जातकों को कई प्रकार की मुसीबत से जूझना पडता है। फलित ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथो में मंगल को राजकुमार और सूर्य को राजा कहा गया है। मंगल के दशाकाल 24 वर्ष से 36 वर्ष की उम्र में पिता बनने की उम्र 24 वर्ष जोड दी जाए , तो वह 48 वर्ष से 60 वर्ष हो जाता है। अत: इसे सूर्य का दशाकाल माना जा सकता है।
प्राचीन ज्योतिष में बृहस्पति को सृजनशील वृद्ध ब्राह्मण माना जाता है। इसलिए हंस योग के फलीभूत होने की उम्र 60 वर्ष से 72 वर्ष की अवस्था मानी जाती है। सचमुच मानव जीवन में इस उम्र को अत्यंत ही बडप्पन युक्त और प्रभावपूर्ण देखा गया है। जिसकी जन्मकुंडली में बृहस्पति मजबूत होता है , सेवावनवृत्ति के बाद निश्चिंति से जीवन निर्वाह करते हैं। बृहस्पति कमजोर होने पर उनकी जबाबदेहियां सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी बनी रहती हैं। पं जवाहर लाल नेहरू जी की जन्मकुंडली में बृहस्पति बहुत मजबूत स्थिति में था नेहरू जी 60 वर्ष की उम्र से 72 वर्ष की उम्र तक लागातार भारत के प्रधानमंत्री बने रहें। इसलिए इस उम्र में बृहस्पति के दशाकाल की पुष्टि हो जाती है।
'गत्यात्मक ज्योतिष' ने 72 वर्ष की उम्र के बाद मानव जीवन पर शनि का प्रभाव महससू किया है , क्यूंकि यदि महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की कुंडली पर ध्यान दिया जाए , तो यही मिलेगा कि दोनो के ही मारक भाव द्वितीय भाव में शनि स्थित है। इन दोनो महापुरूषों की मृत्यु 72 वर्ष की उम्र के बाद हुई। परंपरागत ज्योतिष भी शनि को अतिवृद्ध के रूप में स्वीकार करता है। शनि बली सभी मनुष्य इस उम्र में सुखी होते हैं , जबकि जन्मकालीन शनि कमजोर हो तो इस उम्र में वे प्रतिकूल स्थिति में जीने को बाध्य होते हैं।
84 वर्ष के बाद 120 वर्ष तक की आयु , जो मनुष्य की परमायु बतायी गयी है , का समय तीन ग्रहों यूरेनस , नेप्च्यून और प्लूटों को दिया जा सकता है। इनमें से प्रत्येक ग्रह को बारी बारी से 12 - 12 वर्षों का समय दिया जा सकता है। इस प्रकार किसी जातक के उम्र विशेष पर विभिन्न ग्रहों का प्रभाव इस प्रकार देखा जा सकता है .........
जन्म से 12 वर्षों तक का समय .... बाल्यावस्था ..... चंद्रमा,
12 से 24 वर्षों तक का समय .... किशोरावस्था ...... बुध ,
24 से 36 वर्षों तक का समय ..... युवावस्था ...... मंगल,
36 से 48 वर्षों तक का समय .... पूर्व प्रौढावस्था ... शुक्र,
48 से 60 वर्षों तक का समय ..... उत्तर प्रौढावस्था .... सूर्य,
60 से 72 वर्ष तक का समय ..... पूर्व वृद्धावस्था .... बृहस्पति,
72 से 84 वर्ष तक का समय ..... उत्तर वृद्धावस्था ..... शनि,
इस प्रकार सभी ग्रह कुंडली में प्राप्त बल और स्थिति के अनुसार मानव जीवन में अपनी अवस्था विशेष में प्रभाव डालते रहते हैं। लेकिन इन 12 वर्षों में भी प्रथम छह वर्ष और बाद के छह वर्ष में अलग अलग प्रभाव दिखाई देता है। इसके अलावे इन 12 वर्षों में भी बीच बीच में उतार चढाव का आना या छोटे छोटे अंतरालों में खास परिस्थितियों का उपस्थित होने का ज्ञान इस पद्धति से संभव नहीं है। 12 वर्ष के अंतर्गत होनेवाले उलटफेर का निर्णय हम 'लग्न सापेक्ष गत्यात्मक गोचर प्रणाली' से करें , तो दशाकाल से संबंधित सारी कठिनाइयां समाप्त हो जाएंगी।