भला बिना बच्‍चों के कैसी दीपावली ??

what is diwali for children  


वैसे तो पूरी दुनिया में हर देश और समाज में कोई न कोई त्‍यौहार मनाए जाते हैं , पर भारतीय संस्‍कृति की बात ही अलग है। हर महीने एक दो पर्व मनते ही रहते हैं , कुछ आंचलिक होते हैं तो कुछ पूरे देश में मनाए जानेवाले। दीपावली , ईद और क्रिसमस पूरे विश्‍व में मनाए जाने वाले तीन महत्‍वपूर्ण त्‍यौहार हैं , जो अलग अलग धर्मों के लोग मनाते हैं। भारतवर्ष में पूरे देश में मनाए जानेवाले त्‍यौहारों में होली , दशहरा , दीपावली जैसे कई त्‍यौहार हैं। त्‍यौहार मनाने के क्रम में लगभग सभी परिवारों में पति खर्च से परेशान होता है , पत्‍नी व्रत पूजन , साफ सफाई और पकवान बनाने के अपने बढे हुए काम से , पर बच्‍चों के लिए तो त्‍यौहार मनोरंजन का एक बडा साधन होता है। स्‍कूलों में छुट्टियां है , पापा के साथ घूमघूमकर खरीदारी करने का और मम्‍मी से मनपसंद पकवान बनवाकर खाने की छूट है , तो मस्‍ती ही मस्‍ती है। मम्‍मी और पापा की तो बच्‍चों की खुशी में ही खुशी है। सच कहं , तो बच्‍चों के बिना कैसा त्‍यौहार ??


पर आज सभी छोटे छोटे शहरों के मां पापा बिना बच्‍चों के त्‍यौहार मनाने को मजबूर हैं। चाहे होली हो , दशहरा हो या दीपावली , किसी के बच्‍चे उनके साथ नहीं। इस प्रतियोगिता वाले दौर में न तो पढाई छोटे शहरों में हो सकती है और न ही नौकरी। दसवीं पास करते ही अनुभवहीन बच्‍चों को दूर शहरों में भेजना अभिभावकों की मजबूरी होती है , वहीं से पढाई लिखाई कर आगे बढते हुए कैरियर के चक्‍कर में वो ऐसे फंसते हैं कि पर्व त्‍यौहारों में दो चार दिन की छुट्टियों की व्‍यवस्‍था भी नहीं कर पाते। मैं भी पिछले वर्ष से हर त्‍यौहार बच्‍चों के बिना ही मनाती आ रही हूं। दशहरे में गांव चली गयी , भांजे भांजियों को बुलवा लिया , नई जगह मन कुछ बहला। पर दीपावली में अपने घर में रहने की मजबूरी थी , लक्ष्‍मी जी का स्‍वागत तो करना ही पडेगा। पर बच्‍चों के न रहने से भला कोई त्‍यौहार त्‍यौहार जैसा लग सकता है ??

पहले संयुक्‍त परिवार हुआ करते थे , तीन तीन पीढियों के पच्‍चीस पचास लोगों का परिवार , असली त्‍यौहार मनाए जाते थे। कई पीढियों की बातें तो छोड ही दी जाए , अब तो त्‍यौहारों में पति पत्‍नी और बच्‍चों तक का साथ रह पाना दूभर होता है। जबतक बच्‍चों की स्‍कूली पढाई चलती है , त्‍यौहारों में पति की अनुपस्थिति बनी रहती है , क्‍यूंकि बच्‍चों की पढाई में कोई बाधा न डालने के चक्‍कर में वे परिवार को एक स्‍थान पर शिफ्ट कर देते हैं और खुद तबादले की मार खाते हुए इधर उधर चक्‍कर लगाते रहते हैं। हमारे मुहल्‍ले के अधिकांश परिवारों में किराए में रहनेवाली सभी महिलाएं बच्‍चों की पढाई के कारण अपने अपने पतियों से अलग थी। पर्व त्‍यौहारों में भी उनका सम्मिलित होना कठिन होता था , किसी के पति कुछ घंटों के लिए , तो किसी के दिनभर के लिए समय निकालकर आ जाते। मैने खुद ये सब झेला है , भला त्‍यौहार अकेले मनाया जाता है ??
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बच्‍चों की शिक्षा जैसी मौलिक आवश्‍यकता के लिए भी सरकार के पास कोई व्‍यवस्‍था नहीं है। पहले समाज के सबसे विद्वान लोग शिंक्षक हुआ करते थे , सरकारी स्‍कूलों की मजबूत स्थिति ने कितने छात्रों को डॉक्‍टर और इंजीनियर बना दिया था। पर समय के साथ विद्वान दूसरे क्षेत्रों में जाते रहें और शिक्षकों का स्‍तर गिरता चला गया। शिक्षकों के हिस्‍से इतने सरकारी काम भी आ गए कि सरकारी स्‍कूलों में बच्‍चों की पढाई पीछे होती गयी।सरकार ने कर्मचारियों के बच्‍चों के पढने के लिए केन्‍द्रीय स्‍कूल भी खोलें , उनमें शिक्षकों का मानसिक स्‍तर का भी ध्‍यान रखा , पर अधिकांश क्षेत्रों में खासकर छोटी छोटी जगहों के स्‍कूल पढाई की कम राजनीति की जगह अधिक बनें।  इसका फायदा उठाते हुए प्राइवेट स्‍कूल खुलने लगे और मजबूरी में अभिभावकों ने बच्‍चों को इसमें पढाना उचित समझा। आज अच्‍छे स्‍कूल और अच्‍छे कॉलेजों की लालच में बच्‍चों को अपनी उम्र से अधिक जबाबदेही देते हुए हम दूर भेज देते हैं। अब नौकरी या व्‍यवसाय के कारण कहीं और जाने की जरूरत हुई तो पूरे परिवार को ले जाना मुनासिब नहीं था। इस कारण परिवार में सबके अलग अलग रहने की मजबूरी बनी रहती है।

वास्‍तव में अध्‍ययन के लिए कम उम्र के बच्‍चों का माता पिता से इतनी दूर रहना उनके सर्वांगीन विकास में बाधक है , क्‍यूंकि आज के गुरू भी व्‍यावसायिक गुरू हैं , जिनका छात्रों के भविष्‍य या चरित्र निर्माण से कोई लेना देना नहीं। इसलिए उन्‍हें अपने घर के आसपास ही अध्‍ययन मनन की सुविधा मिलनी चाहिए।  यह सब इतना आसान तो नहीं , बहुत समय लग सकता है , पर पारिवारिक सुद्ढ माहौल के लिए यह सब बहुत आवश्‍यक है। इसलिए आनेवाले दिनों में सरकार को इस विषय पर सोंचना चाहिए।  मैं उस दिन का इंतजार कर रही हूं , जब सरकार ऐसी व्‍यवस्‍था करे , जब प्राइमरी विद्यालय में पढने के लिए बच्‍चे को अपने मुहल्‍ले से अधिक दूर , उच्‍च विद्यालय में पढने के लिए अपने गांव से अधिक दूर , कॉलेज में पढने या कैरियर बनाने के लिए अपने जिले से अधिक दूर जाने की जरूरत नहीं पडेगी। तभी पूरा परिवार साथ साथ रह पाएगा और आनेवाले दिनों में पर्व त्‍यौहारों पर हम मांओं के चेहरे पर खुशी आ सकती है , भला बिना बच्‍चों के कैसी दीपावली ??

संगीता पुरी

Specialist in Gatyatmak Jyotish, latest research in Astrology by Mr Vidya Sagar Mahtha, I write blogs on Astrology. My book published on Gatyatmak Jyotish in a lucid style. I was selected among 100 women achievers in 2016 by the Union Minister of Women and Child Development, Mrs. Menaka Gandhi. In addition, I also had the privilege of being invited by the Hon. President Mr. Pranab Mukherjee for lunch on 22nd January, 2016. I got honoured by the Chief Minister of Uttarakhand Mr. Ramesh Pokhariyal with 'Parikalpana Award' The governor of Jharkhand Mrs. Draupadi Murmu also honoured me with ‘Aparajita Award’ श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा ज्योतिष मे नवीनतम शोध 'गत्यात्मक ज्योतिष' की विशेषज्ञा, इंटरनेट में 15 वर्षों से ब्लॉग लेखन में सक्रिय, सटीक भविष्यवाणियों के लिए पहचान, 'गत्यात्मक ज्योतिष' को परिभाषित करती कई पुस्तकों की लेखिका, 2016 में महिला-बाल-विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी और महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी द्वारा #100womenachievers में शामिल हो चुकी हैं। उत्तराखंड के मुख्य मंत्री श्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा 'परिकल्पना-सम्मान' तथा झारखण्ड की गवर्नर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा 'अपराजिता सम्मान' से मुझे सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। Ph. No. - 8292466723

28 टिप्पणियाँ

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  1. दीपावली के पावन पर्व पर आप सभी को मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!

    way4host
    RajputsParinay

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  2. आपकी अभिव्यक्ति सुन्दर जानकारीपूर्ण है.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    संगीता जी,आपके व आपके समस्त परिवार के स्वास्थ्य, सुख समृद्धि की मंगलकामना करता हूँ.दीपावली के पावन पर्व की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
    दुआ करता हूँ कि आपके सुन्दर सद लेखन से ब्लॉग जगत हमेशा हमेशा आलोकित रहे.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.

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  3. बिल्कुल सही। यह तो हेल-मेल का त्योहार है।

    प्यार हर दिल में पला करता है,
    स्नेह गीतों में ढ़ला करता है,
    रोशनी दुनिया को देने के लिए,
    दीप हर रंग में जला करता है।
    प्रकाशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!!

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  4. सच है बिना बच्चों के सारे त्यौहार फीके लगते हैं ... बहुत अच्छी पोस्ट

    दीवाली की शुभकामनायें

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  5. पढाई के बाद कैरियर के लिए भी बच्चे बाहर ही रह जाते हैं त्योहारों में. मैं खुद भी कई वर्षों से दीपावली घर पर नहीं मना पाया हूँ...
    आप सभी को प्रकाश पर्व की शुभकामनाएं.

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  6. दीपावली की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें संगीता जी ! यह वर्ष हर प्रकार से यश, सुख और समृद्धि में संवर्धन करे यही मंगलकामना है !

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  7. सही है जी!
    आपको और आपके पूरे परिवार को
    दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  8. संगीता बहन ! दीपावली के बहाने आपने एक गम्भीर सामाजिक समस्या की ओर ब्लॉग जगत का ध्यान आकर्षित किया है. यह बिलकुल सच है कि बच्चों के कैरियर बनाने की मृग-तृष्णा आज बच्चों से कहीं ज्यादा उनके माता-पिता को एक ऐसी दौड़ में झोंक रही है ,जिसका कोई अंत नहीं है. देखें ,आगे क्या होता है ? उम्मीद करना चाहिए कि जो भी होगा सबके अच्छे के लिए होगा. आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं

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  9. दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  10. आज के परिवेश को चित्रित करती यथार्थ को बंया करती सुंदर रचना। हमे भी इस बात का मलाल है…हम 2+2 के फ़ार्मूले पर चले। आज बेटा त्योहार मे भी हमसे दूर आई आई टी मंडी (हिमाचल प्रदेश मे) कल लगा सब सूना सूना। खैर बिटिया साथ है अभी।
    "दीपोत्सव के चौथे दिन "अन्न-कूट गोवर्धन पूजा" की बहुत बहुत बधाई…। सबसे पहले ब्लॉग का समर्थन करने के लिये व "दीपावली की शुभकामनायें" वार्ता मे रखने के लिये बहुत बहुत आभार…

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  11. Dear Sangita mam,
    आपकी लेख पढ कर मैं काफी भावुक हो गयी। नौकरी के चलते मैं भी अपने घर से काफी दूर हूँ। त्यौहार के दौरान बचपन की यादें,और जैसा कि आपने लिखा है "भला बिना बच्चों के कैसी दीपावली" मेरे लिए तो...... "भला बिना माता पिता के कैसी दीपावली" है। शायद हम परिपुरक हैं। This message is dedicated to all loving Parents. Without you we don't have any existence.

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  12. बड़ा ही महत्वपूर्ण हो चला है यह विषय आज के संदर्भ में। मर खप कर माता-पिता बच्चों को शिक्षित करते हैं और बच्चे रोजी-रोजगार के कारण उनसे छिन जाते हैं। एकाकी जीवन बूढ़े माता-पिता के लिए कितना कष्टकारी होता है यह मैं देख रहा हूँ। नियति बन चुकी आधुनिक सामाजिक व्यवस्था का दंश बुजुर्ग ही झेलते हैं।

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  13. सही कहा संगीता जी आप ने बिना बच्चों के सारे त्यौहार फीके लगते हैं ... बहुत अच्छी पोस्ट

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  14. डिग्रियाँ मिली - संस्कार खो गये,
    नौकरियाँ मिल गई-अधिकार खो गये
    गुजारा-भत्ता मिला -वो खुशनसीब बड़े
    सुविधायें मिली - त्यौहार खो गये.

    सच कहा आपने बिना बच्चों के कैसी दीवाली ?

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  15. बच्‍चों की शिक्षा जैसी मौलिक आवश्‍यकता के लिए भी सरकार के पास कोई व्‍यवस्‍था नहीं है। पहले समाज के सबसे विद्वान लोग शिंक्षक हुआ करते थे , सरकारी स्‍कूलों की मजबूत स्थिति ने कितने छात्रों को डॉक्‍टर और इंजीनियर बना दिया था। पर समय के साथ विद्वान दूसरे क्षेत्रों में जाते रहें और शिक्षकों का स्‍तर गिरता चला गया। शिक्षकों के हिस्‍से इतने सरकारी काम भी आ गए कि सरकारी स्‍कूलों में बच्‍चों की पढाई पीछे होती गयी।सरकार ने कर्मचारियों के बच्‍चों के पढने के लिए केन्‍द्रीय स्‍कूल भी खोलें , उनमें शिक्षकों का मानसिक स्‍तर का भी ध्‍यान रखा , पर अधिकांश क्षेत्रों में खासकर छोटी छोटी जगहों के स्‍कूल पढाई की कम राजनीति की जगह अधिक बनें। इसका फायदा उठाते हुए प्राइवेट स्‍कूल खुलने लगे और मजबूरी में अभिभावकों ने बच्‍चों को इसमें पढाना उचित समझा। आज अच्‍छे स्‍कूल और अच्‍छे कॉलेजों की लालच में बच्‍चों को अपनी उम्र से अधिक जबाबदेही देते हुए हम दूर भेज देते हैं। अब नौकरी या व्‍यवसाय के कारण कहीं और जाने की जरूरत हुई तो पूरे परिवार को ले जाना मुनासिब नहीं था। इस कारण परिवार में सबके अलग अलग रहने की मजबूरी बनी रहती है।
    सटीक विश्लेषण परक पोस्ट .

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  16. बहुत सटीक प्रस्तुति...बहुत सच कहा है कि बच्चों के बिना क्या त्यौहार...आभार

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  17. बच्चों के बिना हमारे त्योहार तो फीके रहते ही हैं,बच्चे भी इस दूरी को बहुत कठिनता से झेलते हैं...त्योहारों के दिन बार-बार बच्चों का फोन आना मन को विह्वल कर देता है|

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  18. सच कहा बिना बच्चों के सारे त्यौहार फीके लगते हैं ...बहुत सटीक प्रस्तुति..

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  19. त्यौहार की असली जान बच्चे ही होते हैं,बिना उनके कोई उल्लास नहीं !

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  20. बहुत गंभीर विषय पर सार्थक चिंतन--आभार।

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  21. सुंदर मन की सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  22. देर से ही सही, दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं

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  23. संगीता जी,
    आपने अपने बच्चों से दूर रहने वाले सारे माता-पिता का दर्द बयाँ कर दिया है....दिवाली के दौरान...फेसबुक पर अपने भतीजे-भांजों के ऐसे ही अपडेट्स देख रही थी...जिसमे वे नाराज़गी व्यक्त कर रहे थे कि....उनके शहर में अच्छे कॉलेज क्यूँ नहीं हैं..क्यूँ उन्हें घर से दूर रहना पड़ रहा है.

    मेरी एक सहेली जो कॉलेज की प्रिंसिपल है....दिवाली के दिन बिलकुल अकेली थी..बच्चे दूर दूसरे शहर में और डॉक्टर पति को भी छुट्टी नहीं मिली.

    त्योहार तो अपने परिवार के दस्यों के साथ ही मनाने का दिन है...पर मजबूरी जो ना कराये :(

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  24. बहुत सुन्दर प्रविष्टि.। मेरे नए पोस्ट 'आरसी प्रसाद. सिंह" पर आकर मुझे प्रोत्साहित करें ।.बधाई ।

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  25. बहुत खूब , अच्छा लिखा है ,

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