आज निम्न वर्गीय परिवारों के बच्चों को खाना , कपडा , मकान , सायकल और जरूरत की अन्य चीजें मुफ्त मिल रही है .. जो उनके माता पिता को दिनभर कडी मेहनत के बाद भी नहीं मिल पाती थी ... वे इस व्यवस्था में क्या खामी देखेंगे ??
मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों को प्रतियोगिता और मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी के दायित्वों तले उलझा दिया गया है .. भले ही महानगर में रहने की बाध्यता तले उनके पैसे न बच पाए .. पर बडी बडी सेलरी को देखने के बाद वे इस व्यवस्था में क्या खामी देखेंगे ??
उच्च वर्गीय परिवारों के बच्चे भी अपनी कंपनी को चुंबकीय बनाने के लिए ऐसी ऐसी ट्रेनिंग लेने में व्यस्त है .. जो पूरे बाजार में बिखरे पडे पैसो को अपनी ओर खींच सके .. इसकी पूरी सुविधा होने से वे इस व्यवस्था में क्या खामी देखेंगे ??
इसके अलावा सरकारी तंत्र के लोगों ने इसे सीमा से अधिक भ्रष्ट कर दिया है ... अपने अधिकारों का नाजायज फायदा उठाकर अपनी संतानों को कई पीढी तक नालायक बनाने की पूरी व्यवस्था कर चुके हैं .. उनकी संताने भी इस व्यवस्था में क्या खामी देखेंगी ??
इस व्यवस्था में खामी को दूर करने की हमारी सोंच तभी कामयाब हो सकती है ... जब हम दूसरे की तकलीफ को अपनी तकलीफ समझें .. पर किसी भी वर्ग के नवयुवकों के पास खुद के सिवा दूसरों की समस्या के लिए सोंचने का वक्त नहीं .... अब इस स्वार्थपूर्ण माहौल में भारतवर्ष में हाल फिलहाल में किसी क्रांति की कोई संभावना नहीं मुझे तो नहीं दिखती ..