दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द, सबसे प्यारा शब्द है मां। किसी एक महिला के मां बनते ही पूरा घर ही रिश्तों से सराबोर हो जाता है। कोई नानी तो कोई दादी , कोई मौसी तो कोई बुआ , कोई चाचा तो कोई मामा , कोई भैया तो कोई दीदी , नए नए रिश्ते को महसूस कराती हुई पूरे घर में उत्सवी माहौल तैयार करती है एक मां। लेकिन इसमें सबसे बडा और बिल्कुल पवित्र होता है अपने बच्चे के साथ मां का रिश्ता। यह गजब का अहसास है , इसे शब्दों में बांध पाना बहुत ही मुश्किल है।
प्रसवपीडा से कमजोर हो चुकी एक महिला सालभर बाद ही सामान्य हो पाती है। मां बनने के बाद बच्चे की अच्छी देखभाल के बाद अपने लिए बिल्कुल ही समय नहीं निकाल पाती है। बच्चा स्वस्थ और सानंद हो , तब तो गनीमत है ,पर यदि कुछ गडबड हुई , जो आमतौर पर होती ही है, बच्चे की तबियत के अनुसार उसे खाना मिलता है , बच्चे की नींद के साथ ही वह सो पाती है , बच्चे की तबियत खराब हो , तो रातरातभर जागकर काटना पडता है , परंतु इसका उसपर कोई प्रभाव नहीं पडता , मातृत्व का सुखद अहसास उसके सारे दुख हर लेता है।
परंपरागत ज्योतिष में मां का स्थान चतुर्थ भाव में है। यह भाव हर प्रकार की चल और अचल संपत्ति और स्थायित्व से संबंध रखता है। यह भाव सुख शांति देने से भी संबंधित है। हर प्रकार की चल और अचल संपत्ति का अर्जन अपनी सुख सुविधा और शांति के लिए ही लोग करते हैं । भले ही उम्र के विभिन्न पडावों में सुख शांति के लिए लोगों को हर प्रकार की संपत्ति को अर्जित करना आवश्यक हो जाए , पर एक बालक के लिए तो मां की गोद में ही सर्वाधिक सुख शांति मिल सकती है , किसी प्रकार की संपत्ति का उसके लिए कोई अर्थ नहीं।
यूं तो एक बच्चा सबसे पहले ओठों की सहायता से ही उच्चारण करना सीखता है , इस दृष्टि से प फ ब भ और म का उच्चारण सबसे पहले कर सकता है। पर बाकी सभी रिश्तों को उच्चारित करने में उसे इन शब्दों का दो दो बार उच्चारण करना पडता है , जो उसके लिए थोडा कठिन होता है , जैसे पापा , बाबा , लेकिन मां शब्द को उच्चारित करने में उसे थोडी भी मेहनत नहीं होती है , एक बार में ही झटके से बच्चे के मुंह से मां निकल जाता है यानि मां का उच्चारण भी सबसे आसान।
मां शब्द के उच्चारण की ही तरह मां के साथ रिश्ते को निभा पाना भी बहुत ही आसान होता है। शायद ही कोई रिश्ता हो , जिसे निभाने में आप सतर्क न रहते हों , हिसाब किताब न रखते हों , पर मां की बात ही कुछ और है। आप अपनी ओर से बडी बडी गलती करते चले जाएं , माफी मांगने की भी दरकार नहीं , अपनी ममता का आंचल फैलाए अपने बच्चे की बेहतरी की कामना मन में लिए बच्चे के प्रति अपने कर्तब्य पथ पर वह आगे बढती रहेगी।
पर कभी कभी मां का एक और रूप सामने आ जाता है , बच्चे को मारते पीटते या डांट फटकार लगाते वक्त प्रेम की प्रतिमूर्ति के क्रोध को देखकर बडा अजूबा सा लगता है। पर यह एक मां की मजबूरी होती है , उसे दिल पर पत्थर रखकर अपना वह रोल भी अदा करना पडता है। इस रोल को अदा करने के लिए उसे अंदर काफी दर्द झेलना पडता है , पर बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए वह यह दर्द भी पी जाती है।
पर हम उनकी इस सख्ती , इस कठोरता को याद रखकर अपने मन में उनके लिए गलत धारणा भी बना लेते हैं। साथ ही कर्तब्यों के मार्ग पर चलती आ रही मांओं को अधिकारों से वंचित कर देते हैं। जब उन्हें हमारी जरूरत होती है , तो हम वहां पर अनुपस्थित होते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि कोई हमारे साथ भी यही व्यवहार करे तो हमें कैसा लगेगा ?