फलित ज्योतिष सूत्र
‘गत्यात्मक ज्योतिष’ सिर्फ नाम से ही गत्यात्मक नहीं है , इसका नामकरण ऐसा किया गया है क्योंकि इसके द्वारा भविष्यवाणी करने का मुख्य आधार ग्रहों की गति ही है। सौरमंडल में भले ही सूर्य स्थिर हो और पृथ्वी उसकी परिक्रमा करती हो , पर फलित ज्योतिष पृथ्वी को स्थिर मानकर उसके सापेक्ष ग्रहों की स्थिति का अध्ययन करता है। पृथ्वी को स्थिर मान लेने से उसके सापेक्ष ग्रहों की गति में प्रतिदिन भिन्नता देखी जाती है, यहीं से हमें फलित ज्योतिष सूत्र मिले। यूं तो गणित ज्योतिष के सूर्य सिद्धांत में ग्रहों की इन गतियों की विभिन्नता की चर्चा हुई है , पर इसके अनुसार फलित पर प्रभाव पडने की चर्चा कहीं नहीं हुई। फलित पर ग्रहों की विभिन्न ग्रहों की गतियों का भिन्न भिन्न तरह के प्रभाव को देखते हुए ‘गत्यात्मक ज्योतिष द्वारा’ ग्रह गति का निम्न प्रकार से वर्गीकरण और फलित ज्योतिष सूत्र दिया गया है ....
1. अतिशीघ्री गति ... गत्यात्मक ज्योतिष के फलित ज्योतिष सूत्र के अनुसार ग्रह वास्तविक तौर पर पृथ्वी से अधिक दूरी पर तथा सूर्य से कम की कोणात्मक दूरी पर हो तो ग्रह अतिशीघ्री स्थिति में होते हैं। बुध सूर्य से 0 डिग्री से 9 डिग्री की कोणिक दूरी पर तथा 2 डिग्री प्रतिदिन की गति में हो , शुक्र सूर्य से 0 डिग्री से 15 डिग्री की कोणिक दूरी पर तथा प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक प्रतिदिन की गति में हो तो अतिशीघ्री अवस्था में होते हें। मंगल , बृहस्पति और शनि की कोणात्मक दूरी सूर्य से 0 डिग्री से 30 डिग्री के मध्य हो तो अतिशीघ्री होते हैं।
2. शीघ्री गति ... अतिशीघ्री की तुलना में जब ग्रहों की कोणात्मक दूरी सूर्य से और इनकी गति सामान्य से कुछ अधिक हो , तो ग्रह शीघ्री कहे जाते हैं। बुध सूर्य से 9 डिग्री से 24 डिग्री की दूरी पर तथा 1 डिग्री से अधिक प्रतिदिन की गति में हो , शुक्र 15 डिग्री से 40 डिग्री की कोणात्मक दूरी पर और 1 डिग्री से अधिक प्रतिदिन की गति में हो तो शीघ्री अवस्था का होता है। मंगल , बृहस्पति और शनि की दूरी सूर्य से 30 डिग्री से 75 डिग्री के मध्य हो तो ये शीघ्री अवस्था के होते हें।
3. सामान्य गति ... इस समय ग्रह पृथ्वी से औसत दूरी पर होते हैं । सूर्य से बुध की कोणात्मक दूरी लगभग 27 डिग्री और शुक्र की सूर्य से कोणात्मक दूरी 45 डिग्री होती है , जबकि मंगल , बृहस्पति और शनि सूर्य से 90 डिग्री की दूरी पर सामान्य गति में होते हैं।
4. मंदगति ... विभिन्न ग्रह वक्री होने के पूर्व और मार्गी होने से पश्चात् इस दशा से गुजरते हैं। बुध 10.12 दिन पूर्व से वक्री होने तक तथा मार्गी होने से 10;12 दिन पश्चात तक मंद गति में होता है। शुक्र वक्री होने से डेढ महीना पूर्व से वक्री होने तक तथा मार्गी होने के दिन से डेढ महाने बाद तक मंद गति में होता है। बृहस्पति वक्री होने से एक महीना पूर्व से वक्री होने तक तथा मार्गी होने के दिन से एक महीने बाद तक मंद गति में होता है। मंगल वक्री होने से दो महीने पूर्व से वक्री होने तक तथा मार्गी होने के दिन से दो महीने बाद तक मंद गति में होता है। शनि वक्री होने से एक महीना पूर्व से वक्री होने तक तथा मार्गी होने के दिन से एक महीने बाद तक मंद गति में होता है।
5. वक्री गति .... पृथ्वी से सापेक्षिक गति कम होने से ग्रह वक्री गति में देखे जाते हैं। इस समय पृथ्वी से ग्रहों की वास्तविक दूरी बहुत कम होने लगती है। बुध सूर्य से 18 कोणात्मक डिग्री की दूरी पर और शुक्र सूर्य से लगभग 30 डिग्री की कोणात्मक दूरी पर स्थित हो तो वे वक्री होते हें। मंगल , बृहस्पति और शनि सूर्य से 120 डिग्री की कोणात्मक दूरी पर वक्री स्थिति में आते हैं।
6. अतिवक्री गति ... इस समय ग्रहों की वास्तविक दूरी पृथ्वी से निकटतम होती है। वक्री स्थिति में सूर्य से 0 से 9 डिग्री के मध्य बुध और वक्री स्थिति में सूर्य से 0 डिग्री से 15 डिग्री के मध्य शुक्र हो तो ऐसी स्थिति बनती है। मंगल , बृहस्पति और शनि सूर्य से 150 डिग्री से 180 डिग्री की दूरी पर अतिवक्री अवस्था में होते हैं।
इस तरह फलित ज्योतिष सूत्र के अनुसार ग्रहों की इन भिन्न भिन्न गति के कारण उनकी गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति का आकलन और उसके जनसामान्य पर पडनेवाले प्रभाव की चर्चा अगले पोस्ट में की जाएगी।