Bhagya kya hai?
विचित्रता से भरी इस प्रकृति में नाना प्रकार की विशेषताओं के साथ मौजूद पशु पक्षी , पेड पौधे तो अपने विकास के क्रम में सुविधाएं और बाधाएं प्राप्त करते ही हैं , इन सबके साथ ही साथ हानिकारक किटाणुओं विषाणुओं के साथ जीवनयापन करता मनुष्ये भी अपनी राह में तरह तरह के मोड प्राप्त करता है , इसके बाद भी आमजन का भाग्य के प्रति अनजान दिखना आश्चर्यजनक प्रतीत होता है। भले ही उस भाग्य को पूर्ण तौर पर जान पाने में हम असमर्थ हों , पर उसके अनुकूल या प्रतिकूल होने में तो शक की कुछ भी गुंजाइश नहीं।
सबसे पहले तो प्रकृति के विभिन्न पशु पक्षियों के जीवन पर ही गौर किया जा सकता है , जहां बलवान शिकार करता है और उसके डर से बलहीन दुबके पडे होते हैं। भाग्य भरोसे ही इनका जीवन चलता है , अच्छा रहा तो शिकार नहीं होता है , बुरा रहा तो तुरंत मौत के मुंह में चले जाते हैं , कर्म कोई मायने ही नहीं रखता। बलवान पशुओं से बचने के लिए ये कोई कर्म भी करते हैं , तो वह भाग्य से मिलने वाली इनकी विशेषताएं होती हैं। जैसे कि उडकर , डंसकर या भागकर ये खुद को बचा लेते हैं।
Kya bhagya badal sakta hai
आदिम मानव का जीवन भी पशुओं की तरह ही अनिश्चितता भरा था , कर्म कोई मायने नहीं रखता था , कब किसके चंगुल में आ जाएं और प्राणों से हाथ धो बैठे कहना मुश्किल था। इन्हें बुद्धि की विशेषता भाग्य से ही मिली है , जिसके उपयोग से वह बलवान पशुओं तक को नियंत्रित कर सका। प्रकृति में मौजूद हर जड चेतन की विशेषताओं का खुद के लिए उपयोग करना सीखा , पर इसके बावजूद इसके नियंत्रण में भी सबकुछ नहीं है , भाग्य से लडने की विवशता आज भी बनी ही है।
क्रमश: मनुष्य का जीवन विकसित हुआ , पर यहां भी भाग्य की भूमिका बनी रही। एक बच्चे का भिखारी के घर तो एक अरबपति के घर में जन्म होता है , कोई हर सुख सुविधा में तो कोई फटेहाल जीवन जीने को विवश है। यदि आर्थिक स्तर को छोड भी दिया जाए , क्यूंकि अपने अपने स्तर पे ही जीने की सबकी आदत होती है , हर स्तर पर सुख या दुख से युक्त होने की संभावना बन सकती है। पर जन्म के बाद ही दो बच्चे में बहुत अंतर हो सकता है। एक मजबूत शरीर लेकर उत्साहित तो दूसरा शरीर के किसी अंग की कमी से मजबूर होता है। किसी का पालन पोषण माता पिता परिजनों के लाड प्यार में तो किसी को इनकी कमी भी झेलना होता है। पालन पोषण में ही वातावरण में अन्य विभिन्न्ता देखने को मिल सकती है।
Karm bada ya bhagya
आज प्रकृति से लडता हुआ मनुष्य बहुत ही विकसित अवस्था तक पहुंच चुका है , पर लोगों के जीवन स्तर के मध्य का फासला जितना बढता जा रहा है , भाग्य् की भूमिका उतनी अहम् होती जा रही है। किसी व्यक्ति की जन्मजात विशेषता उसे भीड से अलग महत्वपूर्ण बनाने में समर्थ है , इसी प्रकार जहां संयोग के कारण एक बडी सफलता या असफलता जीवन स्तर में बडा परिवर्तन ला देती है , वहीं किसी प्रकार का दुर्योग लोगों को असफल जीवन जीने को बाध्य कर देता है। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि हम प्रकृति की ओर से अपने वातावरण और जमाने के अनुकूल जो विशेषताएं प्राप्त करते हैं , वो हमारा भाग्यु है , इसके प्रतिकूल हमारे व्यक्तित्व और वातावरण की विशेषताएं हमारा दुर्भाग्य कही जा सकती हैं।