indian coronavirus
पिछले माह हमारे देश में कोरोना को लेकर खास भय नहीं था, लेकिन उसी वक्त मैंने सावधानी से जुडी यह पोस्ट लिखी थी। कुछ लोगों से सराहना भी मिली तो कुछ लोगों ने यह बोला कि इतना कर पाना संभव नहीं है। हमारे गांव की परम्परा से दूर रहे लोगों को कोई भी सावधानी भारी लगती है, जो उनके जीवन का हिस्सा होना चाहिए था। मेडिकल सुविधाओं को देखकर २५ वर्षों के अंदर हमारे जीवनशैली में आयी हिम्मत एक कोरोना जैसे सूक्ष्मजीव से ही कम हो गयी है, जबकि कोरोना जैसी कई अन्य बीमारियों के आने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे समय में अपनी पुरानी जीवनशैली में लौट आना बहुत आवश्यक है।
syptoms of coronavirus
मेरी मम्मी उस युग के हिसाब से बहुत पढ़ी-लिखी, पर धर्मपरायण और परम्परागत विचारों वाली महिला थी। अपनी जीवनशैली में उन्होंने परंपरागत और नवीनतम दोनों ही प्रकार के विचारों को समाविष्ट किया हुआ था। साफ़ सफाई में जितना उपयोग गोबर का होता, उतना ही डेटॉल और फिनायल का भी। उनके लिए रसोईघर तो बहुत ही शुद्धता वाली जगह थी, नहाये-धोये बिना कोई अंदर नहीं जा सकता था। चाहे कितना भी प्यासा हो, बिना हाथ-पैर को धोये खुद से पानी भी नहीं ले सकता था। लेकिन कोई बच्चा हाथ-पैर नहीं धो रहा हो तो वे रसोई से पानी निकालकर दे देती, सारा काम खुद करती। पैसे लेने देने पर, मोबाइल छू लेने पर, दरवाजे की बाहर की कुण्डी छू लेने पर भी हाथ धोकर रसोई में जाने की आदत का पालन उन्होंने बड़े होते हम बेटियों से भी करवाया और उनके अंतिम वक्त तक तीनों बहुएँ भी यह सब करती रहीं।
How to check coronavirus
मैं जब ससुराल आयी तो अपने घर से भी अधिक नियम थे, बाहर से आने पर चप्पल घर बाहर उतारने पड़ते। काम से आने, ट्रैन या हॉस्पिटल से आने पर कपडे बदलने या नहाने पड़ते। यदि चाय- पानी पीने स्थिर होने के लिए थोड़ी देर बैठना भी हो तो आप प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ सकते थे, सोफे पर नहीं। ६-७वी कक्षा में पढ़ने वाली मेरी भतीजी को कभी भी स्कूल से आने के बाद स्कूल ड्रेस घर में टांगते नहीं देखा, वह दूसरे दिन पहनने के लिए बाथरूम के ही कोने में टांग देती थी। यह सब बिलकुल सामान्य दिनों का रूटीन था, इसका एक असर मैंने साफ़ देखा था की जहाँ दूसरे अभिभावक काम से आते ही अपने बच्चे को गोद में उठा लेते थे, उनकी तुलना में हमारे बच्चे को सर्दी-खाँसी यहाँ तक कि पूरे मोहल्ले के बच्चे को मीज़ल्स हुआ पर हमारे बच्चों को काफी बड़े होने पर।
incubation period of coronavirus
incubation period of coronavirus
कोरोना जैसी बीमारियों का हल भी हमारी पुराने जीवनशैली में ही है, साफ़-सफाई से ही इससे बचा जा सकता है। कोरोना का प्रकोप जिस तरह बूढ़ों पर अधिक देखा जा रहा है, उनको सुरक्षित रखने के लिए, बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए बाहर निकलने वालों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। आज इसलिए फेसबुक पर भी पोस्ट लिखी हूँ, भारतीयों, मत घबराओ, एक और माता आयी हैं ! जबतक टीका नहीं आ जाता, चेचक की तरह इलाज रखो, बच्चों बुजुर्गों की सारी व्यवस्था अलग रखें ! जरूरी कार्यों से बाहर निकलनेवाले अपनी सारी व्यवस्था अलग रखें ! अच्छे मास्क लगाएं, बाहर से आते ही चप्पल बाहर रखें, बहुत सावधानी से बिना किसी चीज को छुए बाथरूम जाएँ ! कपडे गरम पानी मे डुबोएं और सर से पैर तक अच्छे से सफाई करके नहाये ! बाहर से आनेवाले सामानो को मानकर चलें कि इसमें कोरोना है ! एक सप्ताह बाहर छोड़ दे या साबुन से धो लें ! गरम पानी मे 5 मिनट के लिए डाल दें ! उसके बाद ही उसका उपयोग करें ! चेन टूटेगा, हड़बड़ाहट न रखें ! भारत मे कोरोना का खास असर नहीं देखा जा रहा है ! सावधान रहेंगे तो कोरोना भी आउट और हम भी आउट हो पाएंगे !