खगोलशास्त्री भास्कराचार्य और पुत्री लीलावती
ब्यूटी पार्लर आरंभ करने जा रही मेरी भांजी ने शायद पंडित या ज्योतिषी को भगवान ही समझ लिया , तभी तो उसने अपनी दुकान खोलने के लिए मुझे एक ऐसा मुहूर्त्त देखने को कहा , जिसमें खोलने पर उसकी दुकान में घाटे का कोई सवाल ही नहीं हो। ज्योतिष की सहायता से कोई दुकान खोलने या न खोलने या देर सवेर करने की सलाह दी जा सकती है , पर शकुन और मुहूर्त्त पर तो गत्यात्मक ज्योतिष बिल्कुल विश्वास नहीं करता , कई दिन पूर्व इसपर पापा जी के द्वारा एक पोस्ट भी किया जा चुका है , मुझे इस सोंच पर अचंभा हुआ।
उसने मुझे ही समझाते हुए कहा कि उसके शहर में एक पंडित है , जो ऐसा मुहूर्त्त निकालकर देते हैं , जिससे आपके फर्म में घाटे की कोई गुंजाइश नहीं। पढे लिखे लोग भी कभी कभी ऐसे भ्रम में कैसे पड जाते हैं , जो अव्यवहारिक हो। ग्रहों के पृथ्वी पर पडनेवाले प्रभाव के रहस्य को हम ढूंढ भी लें , किसी के भाग्य को समझने में सफलता भी प्राप्त कर लें , पर इसे बदलने में सफलता प्राप्त करना संभव है भला ? इसी संदर्भ में मुझे विद्वान भास्कराचार्य और उनकी पुत्री लीलावती की कथा याद आ गयी , जिसे मैने उसे भी समझाया और आज आपको सुनाने जा रही हूं ...
भास्कराचार्य प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। उनका जन्म और पालन पोषण ही एक ऐसे घर में हुआ था , जहां स लोग ज्योतिषी थे। इनका जन्म 1114 ई0 में हुआ था। भास्कराचार्य उज्जैन में स्थित वेधशाला के प्रमुख थे. यह वेधशाला प्राचीन भारत में गणित और खगोल शास्त्र का अग्रणी केंद्र था। लीलावती भास्कराचार्य की पुत्री का नाम था। जब लीलावती का जन्म हुआ , तो उसकी जन्मकुंडली देखकर या उसके जन्म के समय आसमान में ग्रहों की खास स्थिति देखकर भास्कराचार्य परेशान हो गए।
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उसकी कुंडली में वैधब्य योग था, वह योग बडा प्रबल था और उसके घटित होने की शत प्रतिशत संभावना थी। वे दिन रात किसी ऐसे उपाय की सोंच में थे जिससे कि उसके वैधब्य योग को काटा जा सके। देखते ही देखते लीलावती सयानी हो गयी , विवाह योग्य होने पर उसका विवाह आवश्यक था , पर पिता उसके विधवा रूप की कल्पना कर ही कांप जाते। अंत में चिंतन मनन कर उन्होने एक उपाय निकाल ही लिया।
गत्यात्मक ज्योतिष के बारे में
इसलिए काम पर जाने से पहले उन्होने एक यंत्र बनाया , एक बरतन में अपनी गणना के अनुसार जल डाला और उसके प्रवाह के लिए एक छिद्र बनाया। उस बरतन के पूरे जल के बह जाने के तुरंत बाद उस विवाह योग को शुरू होना था , परिवार के सब लोगों को समझाकर वे अपने काम पर चल पडें। पर बरतन के ढक्कन को उठाकर बार बार जल के स्तर को देखने के क्रम में लीलावती के गले के माले का एक मोती या कुछ और बरतन में गिर पडा और उससे जल का प्रवाह रूक गया। जल के प्रवाह में रूकावट आने से जल पूरा बह न सका और देखते ही देखते विवाह का मुहूर्त्त निकल गया। पिता के लौटने तक तो बहुत देर हो चुकी थी , मजबूरन किसी और मुहूर्त्त मे उसका विवाह करवाना पडा।
‘लीलावती’ में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है। यहां तक कि आजकल हम कहते हैं कि न्यूटन ने ही सर्वप्रथम गुरुत्वाकर्षण की खोज की, परन्तु उसके 550 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को विस्तार में समझा दिया था।