श्री कृष्ण बाल लीला
(About Krishna in Hindi)
भले ही महाभारत की कहानी के कुछ अंश को लेखक की एक कपोल कल्पना मान लें , पर यह मेरी व्यक्तिगत राय है कि पूरे महाभारत की कहानी पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता है। लोग भगवान कृष्ण को एक कथा या एक कहानी मान सकते हैं , पर ग्रंथो में उल्लिखित उनकी जन्मकुंडली एक ऐसा सत्य है , जो उनके साक्षात पृथ्वी पर जन्म लेने की कहानी कहता है। सिर्फ जन्म ही नहीं , उन्होने पूर्ण तौर पर मानव जीवन जीया है। इनके अनेक रूप हैं और हर रूप की लीला अद्भुत है। भले ही लोग उन्हें ईश्वर का अवतार कहते हों , पर बाल्यावस्था में उन्होने सामान्य बालक सा जीवन जीया है । कभी मां से बचने के लिए मैया मैंने माखन नहीं खाया , तो कभी मां से पूछते हैं , राधा इतनी गोरी क्यों है, मैं क्यों काला हूं? , कभी शिकायत करते हैं कि दाऊ क्यों कहते हैं कि तू मेरी मां नहीं है।
कृष्ण भक्ति में डूबे उनकी बाल लीलाओं का वर्णन करने वाले कवियों में सूरदास का नाम सर्वोपरि है। पर भले ही सूरदास ने कृष्ण के बाल्य-रूप का सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन करने में अपनी कल्पना और प्रतिभा का कुछ सहारा लिया हो , पर कृष्ण जी की जन्मकुंडली से स्पष्ट है कि वास्तव में उनका बालपन बहुत ही संतुलित रहा होगा । इसमें शक नहीं की जा सकती कि बालपन में ही एक एक घटनाओं पर उनकी दृष्टि बहुत ही गंभीर रही होगी। और बाल-कृष्ण की एक-एक चेष्टाएं पीढी दर पीढी चलती हुई सूरदास की पीढी तक पहुंच गयी होगी। भले ही उसके चित्रण में सूरदास ने अपनी कला का परिचय दे दिया हो।
'लग्नचंदायोग' की चर्चा करते हुए लेख में मैने लिखा था कि ज्योतिष में आसमान के बारहों राशियों में से जिसका उदय बालक के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर होता रहता है , उसे बालक का लग्न कहते हैं। अब इसी लग्न में यानि उदित होती राशि में चंद्रमा की स्थिति हो , तो बालक की 'जन्मकुंडली' में लग्नचंदायोग बन जाता है , जिसे ही क्षेत्रीय भाषा में 'लगनचंदा योग' कहते हैं। कृष्ण जी की कुंडली में 'लग्नचंदा योग स्पष्ट दिख रहा है , जो कृष्ण जी के बचपन को महत्वपूर्ण बनाने के लिए काफी है।
'गत्यात्मक ज्योतिष' की जानकारी देते हुए लिखे गए अपने एक लेख में चंद्रमा की कमजोरी और मजबूती की चर्चा करने के क्रम में मैने लिखा है यदि चंद्रमा की स्थिति सूर्य से 0 डिग्री की दूरी पर हो, तो चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 0 प्रतिशत, यदि 90 डिग्री, या 270 डिग्री दूरी पर हो, तो चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत और यदि 180 डिग्री की दूरी पर हो, तो चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 100 प्रतिशत होती है। चूंकि कृष्ण जी ने अष्टमी के दिन जन्म लिया , जब सूर्य और चंद्रमा के मध्य कोणिक दूरी 90 डिग्री की होती है , इसलिए उनके जन्मकालीन चंद्रमा को 50 प्रतिशत अंक प्राप्त होते हैं।
इसी लेख में मैने आगे लिखा है कि चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति के अनुसार ही जातक अपनी परिस्थितियां प्राप्त करते हैं। यदि चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत हो, तो उन भावों की अत्यिधक स्तरीय एवं मजबूत स्थिति, जिनका चंद्रमा स्वामी है तथा जहां उसकी स्थिति है, के कारण बचपन में जातक का मनोवैज्ञानिक विकास संतुलित ढंग से होता है। इस नियम से कृष्ण जी का मनोवैज्ञानिक विकास बहुत ही संतुलित ढंग से होना चाहिए।
अब यदि भाव यानि संदर्भ की की बात की जाए , तो वृष लग्न लग्न में मजबूत चांद में बच्चे का जन्म हो , तो बच्चों का भाई बहन , बंधु बांधव के साथ अच्छा संबंध होता है। बाल सखाओं के साथ्ा मीठी मीठी हरकतों के कारण कृष्ण जी का बचपन यादगार बना रहा। यहां तक कि बाल सखा सुदामा को जीवनपर्यंत नहीं भूल सके।
इसके अतिरिक्त 'गत्यात्मक ज्योतिष' की दृष्टि से एक और ग्रहीय स्थिति बनती है , जिसका उल्लेख भी मैने 'लग्नचंदा योग' वाले लेख में कर चुकी हूं। 'लग्नचंदा योग' के साथ यदि षष्ठ भाव में अधिकांश ग्रहों की स्थिति हो तो इस योग का प्रभाव और अधिक पडता है। कृष्ण जी के षष्ठ भाव में शुक्र और शनि दोनो ही ग्रहों की मजबूत स्थिति से कृष्ण जी के बचपन को महत्वपूर्ण बनाती है। इसके अलावे जिस ग्रह की पहली राशि में चंद्रमा स्थित है , उसी ग्रह की दूसरी राशि में शुक्र और शनि की स्थिति होने के कारण जीवन में झंझट भी आए और उन्होने उनका समाधान भी किया। शुक्र और शनि क्रमश: शरीर , व्यक्तित्व , प्रभाव , भाग्य और प्रतिष्ठा के मामले थे और ये सब बचपन में मजबूत बने रहें। यही था कृष्ण की संतुलित बाल लीलाओं का राज !
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