Blogging in Hindi मीनिंग
जब भी ऑनलाइन काम में कुछ स्कोप तलाश करने की बारी आती है, ब्लॉग का नाम अवश्य सुनाने को मिलता है। ब्लॉग एक डायरी की तरह होता है, जिसमे आप अपने विचारों, भावनाओं, चित्रों, वीडियो आदि को दुनिया से शेयर कर सकते हैं। ब्लॉग लिखने के लिए कंप्यूटर का बेसिक ज्ञान और किसी भी भाषा में अभिव्यक्ति की कला भी चाहिए। ब्लॉग लिखने के अभी बहुत सारे मंच हैं , जहाँ हज़ारो ब्लॉगर विभिन्न विषयों पर ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं। आजकल ब्लॉग्गिंग से पैसों की भी कमाई के रास्ते खुले हैं।
हमने 2006 से ही ज्योतिष को लेकर खूब ब्लॉग्गिंग की, मैंने ज्योतिष जैसे विषय पर खूब लिखा और ब्लॉग्गिंग के कारण ही गत्यात्मक ज्योतिष को अच्छी पहचान मिली है। यदि ब्लॉग्गिंग न होता तो समाज में ज्योतिष की इस विधा को प्रचारित प्रसारित करना बहुत मुश्किल था। उस समय पूरे विश्व में हिंदी के 200-400 ब्लोग्गेर्स रहे होंगे, जिनमे जान-पहचान और आपसी सहयोग हुआ करता था। उसी समय का यह संस्मरण है।
मेरा मायका बोकारो जिले में ही है , इसलिए आसपास ही लगभग सारे रिश्तेदार हैं , हमेशा कहीं न कहीं से न सिर्फ निमंत्रण मिलता है , हमारी उपस्थिति की उम्मीद भी की जाती है, सो हर जगह रस्म अदायगी के लिए भी मुझे ही जाना होता है। अकेले टैक्सी में भी जाना मुझे बोरिंग लगता है , बोकारो का स्टेशन भी शहर से 8 कि मी की दूरी पर है , इसलिए स्टेशन जाना , क्यू में खडे होकर टिकट लेना और ट्रेन पकडना भी कठिनाई भरा ही है , जबकि सुबह फोन करके किसी बस वाले से एक सीट रखवा लिया जाए , तो आराम से घर से निकलकर टहलते हुए अधिकतम 300 मीटर के अंदर स्थित बस स्टैण्ड में जाकर आज के आरामदेह बसों में बैठ जाने पर तीन चार घंटे में गंतब्य पर पहुंचना काफी आसान है। इसलिए मुझे झारखंड के अंदर 150 से 200 कि मी के अंदर तक के इस सफर के लिए टैक्सी या ट्रेन से अधिक सुविधाजनक बस ही लगता है।
एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए पिछले महीने जाकर बस पर बैठी ही थी कि ढेर सारी पुस्तके हाथ में लिए एक किशोर पुस्तक विक्रेता मेरी ओर बढा। मेरे नजदीक आकर उसने अपने दाहिने हाथ में रखी एक पुस्तक आगे बढायी और मुझसे कहा 'इसे ले लीजिए .. इसमें मेहंदी की डिजाइने हैं' जबतक मैने 'ना' में सर हिलाया , तबतक मेरी त्वचा से वह मेरी उम्र का सही अंदाजा लगा चुका था। वह क्षणभर भी देरी किए बिना विभिन्न देवताओं की आरती की पुस्तक निकालकर मुझे दिखाने लगा। ट्रेन में पत्र पत्रिकाएं पढी भी जा सकती हैं , पर बस के हिलने डुलने में आंख्ा कहां स्थिर रह पाता है , मुझे विवाह में भी जाना था , पुस्तके लेकर क्या करती , मैने मना कर दिया। पर उस किशोर पुस्तक विक्रेता के मनोविज्ञान समझने की कला ने मुझे खासा आकर्षित किया। इतनी कम उम्र में भी उसे पता है कि किस उम्र में किस तरह के लोगों को किस तरह की पुस्तकें चाहिए।
गत्यात्मक ज्योतिष के बारे में पढ़ें ---
- गत्यात्मक ज्योतिष क्या है ?
- संक्षिप्त परिचय
- ज्योतिष का आधुनिकतम स्वरुप
- गत्यात्मक जीवन ग्राफ
- जीवन के 10 सूत्र
Blogging Hindi me
बस चल चुकी थी और हमेशा की तरह मैं चिंतन में मग्न थी। उम्र बढने या परिस्थितियां बदलने के साथ साथ सोंच कितनी बदल जाती है। पत्र पत्रिकाएं या हल्की फुल्की पुस्तकें पढने में मेरी सदा से रूचि रही है , पिताजी के एक मित्र ने पत्र पत्रिकाओं की दुकान खोली थी। पिताजी जब भी बाजार जाते और तीन चार पत्रिकाएं ले आते थे , दूसरे या तीसरे दिन जाकर पुरानी पत्रिकाओं को वापस करते और नई पत्रिकाएं ले आते थे। हम सभी भाई बहन अपनी अपनी रूचि के अनुसार एक एक पत्रिका लेकर बैठ जाते। कोई खेल से संबंधित तो कोई बाल पत्रिका तो कोई साहित्यिक। कुछ दिनों तक तो साहित्य की पुस्तकों में से कहानी , कविताएं पढना मुझे अच्छा लगा , पर उसके बाद धीरे धीरे मेरी रूचि सिलाई-बुनाई-कढाई की ओर चली गयी । फिर तो सीधा महिलाओं की पत्रिकाओं में से नए फैशन के कपडे या बुनाई के नए नए पैटर्न देखती और सलाई या क्रोशिए में मेरे हाथ तबतक चलते , जबतक वो पैटर्न उतर नहीं जाते।
पर ग्रेज्युएशन की पढाई करते वक्त कैरियर के प्रति गंभीर होने लगी , तब प्रतियोगिता के लिए आनेवाले पत्र पत्रिकाओं में मेरी रूचि बढने लगी, फिर तो कुछ वर्ष खूब हिसाब किताब किए , जीके , आई क्यू और अंकगणितीय योग्यता को मजबूत बनाने की कोशिश की , पर फिर नौकरी करनेवाली कई महिलाओं की घर गृहस्थी को अव्यवस्थित देखकर मेरी नौकरी करने की इच्छा ही समाप्त हो गयी। कैरियर के लिए कॉलेज की प्रोफेसर के अलावे अपने लिए कोई और विकल्प नहीं दिखा और दूसरी नौकरी के लिए मैने कोशिश ही नहीं की। व्याख्याता बनने के लिए उस समय सिर्फ मास्टर डिग्री लेनी आवश्यक थी , सो ले ली । प्राइवेट कॉलेजों के ऑफर भी आए तो बच्चों की जबाबदेही के कारण टालमटोल कर दिया और सरकारी कॉलेजों में तो आजतक इसकी न तो वेकेंसी निकली और न मैं व्याख्याता बन सकी। जो भी हो, उसके बाद प्रतियोगिता के लिए भी पढाई लिखाई तो बंद हो ही गया।
विवाह के बाद ससुराल पहुंची , तो वहां के संयुक्त परिवार में अच्छे खाने पीने की प्रशंसा करने वालों की बडी संख्या को देखते हुए परिवार के लिए नई नई रेसिपी बनाने में ही कुछ दिनों तक व्यस्त रही , इस समय पत्र पत्रिकाओं में मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार की रेसिपी को पढना ही मुख्य लक्ष्य बना रहा। पर दो चार वर्षो में ही मेरी महत्वाकांक्षी मन और दिमाग में मेरे जीवन को व्यर्थ होते देख 'कुछ' करने की ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया। जब भी मैके आती , बच्चों को घरवालों के भरोसे छोडकर पिताजी के साथ ज्योतिष सीखते और उसमें लम्बी लम्बी सार्थक बहस करते हुए मैने इसे ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया । इसके बाद मेरे घर में ज्योतिष की पत्रिकाएं आने लगी और मेरा ध्यान उसके लिए नए नए आलेख लिखने में लगा रहा । दो तीन वर्षों में ही उन आलेखों को संकलित करते हुए 'अजय बुक सर्विस' ने एक पुस्तक ही प्रकाशित कर डाली।
Hindi blogging topics
पुस्तक के प्रकाशन के बाद दो तीन वर्ष बच्चों को सही दिशा देने की कोशिश में फिर इधर उधर से ध्यान हट गया, क्यूंकि मेरे विचार से उनके बेहतर मनोवैज्ञानिक और शैक्षणिक विकास पर ध्यान देना आवश्यक था। लेकिन जब दो तीन वर्षों में बच्चों ने अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियां स्वयं पर ले ली , तो फुर्सत मिलते ही ज्योतिष के इस नए सिद्धांत को कंप्यूटराइज करने का विचार मन में आया। कंप्यूटर प्रोफेशनलों से बात करने पर उन्हें यह प्रोग्राम बनाना कुछ कठिन लगा, तो मैने खुद ही कंप्यूटर के प्रोग्रामिंग सीखने का फैसला किया। संस्थान में दाखिला लेने के बाद मैं कंप्यूटर की पत्रिकाओं में भी रूचि लेने लगी थी और तबतक इसके सिद्धांतो को समझती रही , जबतक अपना सॉफ्टवेयर कंप्लीट न हो पाया। ये सब तैयारियां मैं एक लक्ष्य को लेकर कर रही थी , पर उस लक्ष्य के लिए घर से दूर निकल पाने में अभी भी समय बाकी था। एक तो ग्रहों के अनुसार भी मैं अपने अनुकूल समय का इंतजार कर रही थी , ताकि इस लक्ष्य को प्राप्त करने में बडी बाधा न आए, दूसरे बच्चों के भी बारहवीं पास कर घर से निकलने देने तक उनपर एक निगाह बनाए रखने की इच्छा से मैने अपने कार्यक्रमों को कुछ दिनों तक टाल दिया।
उसके बाद के दो तीन वर्ष शेयर बाजार पर ग्रहों के प्रभाव के अध्ययन करने में गुजरे। इस दौरान नियमित तौर पर इससे जुडे समाचारों को देखना और पढना जारी रहा। 'दलाल स्ट्रीट' भी मेरे पास आती रही। फिर भी समय कुछ अधिक था मेरे पास , कंप्यूटर की जानकारी मुझे थी ही , बचे दो तीन वर्षों के समय को बेवजह बर्वाद न होने देने के लिए मैं हिन्दी ब्लागिंग से जुड गयी और तत्काल इसके माध्यम से ही अपनी 'गत्यात्मक ज्योतिष' के बारे में पाठकों को जानकारी देने का काम शुरू किया। एक वर्ष वर्डप्रेस पर लिखा , फिर मैं ब्लॉगस्पॉट पर लिखने लगी। यह एक अलग तरह की दुनिया है , जहां लेखक और पाठक के रिश्ते बढते हुए धीरे धीरे बहुत आत्मीय हो जाते हैं। औरों की तरह मैं भी इससे गंभीरता से जुडती चली गयी और आज इसके अलावे हर कार्य गौण है। अब आगे की जीवनयात्रा में रूचि किस दिशा जाएगी , यह तो समय ही बताएगा , पर आज तो यही स्थिति है कि यदि उस पुस्तक विक्रेता किशोर के हाथ में हिन्दी ब्लागिंग से जुडी दस पुस्तकें भी होती , तो मैं सबको खरीद लेती ।