About Mahabharat in Hindi
हमारे धार्मिक ग्रंथों के प्रति हिन्दुओं में अटूट श्रद्धा है, पर इसके बावजूद कुछ बातें अक्सर विवादास्पद बनी रहती हैं। वेदों और पुराणों में लिखी ऋचाएं तो सामान्य लोगों को पूरी तरह समझ में आने से ही रही , इसलिए वे बहस का मुद्दा नहीं बन पाती , पर 'रामायण' और 'महाभारत' जैसे ग्रंथ या अन्य धार्मिक पुस्तकें अपनी सहज भाषा और सुलभता के कारण हमेशा ही किसी न किसी प्रकार के विवाद में बने होते हैं। कभी इन ग्रंथों के पात्रों और घटनाओं के काल्पनिक और वास्तविक होने को लेकर विवाद बनता है , तो कभी इनमें सीमा से अधिक अतिशयोक्ति भी लोगों का विश्वास डिगाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। घटनाओं का क्रम देखकर ही 'रामायण' और 'महाभारत' की कहानी मुझे कभी भी काल्पनिक नहीं लगी , साथ ही घटनाओं के साथ साथ ग्रहों नक्षत्रों की स्थिति का सटीक विवरण और रामचंद्र जी और कृष्ण जी की जन्मकुंडली इस घटना के पात्रों के वास्तविक होने की पुष्टि कर देती है। पर इन ग्रंथों में कहीं कहीं पर वर्णन सहज विश्वास के लायक नहीं है , यह मैं भी मानती हूं।
पर इसे एक अलग कोण से भी देखा और समझा जा सकता है , जिसकी प्रेरणा मुझे हमारे पडोसी श्री श्रद्धानंद पांडेय जी के द्वारा लिखा गया एक आलेख 'क्या हनुमान जी एक बंदर थे ?' से मिली। वैसे तो वे साइंस के ही विद्यार्थी रहे हैं , पर जाति से ब्राह्मण होने या फिर अपने शौक के कारण, विज्ञान के अलावे हर तरह के ग्रंथों को पढना भी उनसे नहीं छूटता। प्राचीन ग्रंथों को सीधा न नकारते हुए वे तर्क से उन खामियों का कारण ढूंढते हैं , जो अक्सर एक वैज्ञानिक मस्तिष्क में कौंधते हैं । एक घटना का उदाहरण देते हुए उन्होने इस आलेख की शुरूआत की है , जिसमें उनका चार वर्ष का पुत्र कई दिनों से 'सिंह अंकल' के आने की सूचना सुनकर अपने पापा के जंगल वाले सिंह दोस्त का इंतजार कर रहा था और 'सिंह अंकल' के आने पर उन्हें अपनी कल्पना के अनुरूप न पाकर उनके मिलकर भी असंतुष्ट था। उनका कहना था कि इस प्रकार की गलतफहमी कई पीढीयों तक कहानी सुनते सुनते आराम से हो सकती है।
उनके आलेख को पढने के बाद उनकी बातों से असहमत हुआ ही नहीं जा सकता। हो सकता है , प्राचीन काल में शब्द कम रहे हों , क्यूंकि ग्रहों को जो नाम दिया गया , वही सप्ताह के दिनों का भी दिया गया है। नक्षत्रों का जो नाम है , वहीं हिन्दी के महीनों का नाम है। जानवरों को जो नाम दिए गए , वही मनुष्य की विभिन्न जातियों को दिए गए थे। खासकर अभी भी आदिवासियों की जाति तो पशुओं के नाम पर देखी जाती है। उनका कहना है हनुमान मनुष्य ही रहे होंगे , पर जाति के कारण हनुमान के रूप में ऐसे प्रसिद्ध हो गए हों कि बाद में उनकी कल्पना हनुमान के रूप में ही कर ली गयी हो। इसी तरह 'देव' 'मनुष्य' और 'दैत्य' के रूप में वर्णित सारे चरित्र मनुष्य हो सकते हैं। रामायण में वर्णित अन्य लोगों को भी पशु ही समझ लिया गया हो , तो वर्णन में गलतफहमी होना स्वाभाविक है।
मैने पहले भी सुना है कि यदि दस बीस लोगों का एक घेरा बना लिया जाए और किसी के कान में फुसफुसाकर एक कोई बात सुनाए , वह दूसरे को और दूसरा तीसरे को सुनाता चला जाए , तो दसवें या बीसवें व्यक्ति के पास पहुंचने पर उस बात के अर्थ का अनर्थ होना तय है। महाभारत की कहानी में धृतराष्ट्र को अंधा बताया गया है , पर इस दृष्टि से सोंचती हूं तो मुझे नहीं लगता है कि वे अंधे रहे होंगे। मेरे विचार से किसी चीज का अधिक मोह लोगों को अंधा बना देता है। महाभारत की पूरी कहानी में धृतराष्ट्र का चरित्र पुत्रमोह में अंधा दिखता है , जनता को उससे नाराजगी रही होगी , इसी कारण कहानी में अंधा अंधा कहते सुनते लोगों ने उसे अंधा मान लिया होगा।
धृतराष्ट्र तो मोह में अंधे थे ही , लेकिन राजमहल में इतनी घटनाएं घटती रहीं और उनकी रानी गांधारी को भी कुछ नजर नहीं आया। अब कहानी में एक वाक्य जोड दें कि धृतराष्ट्र तो अंधा था ही , गांधारी ने भी आंख में पट्टी बांध रखी थी। इस प्रकार से कई पीढी चलने पर कहानी को एक अलग मोड लेना ही था , क्यूंकि प्रश्न उठना ही है , दोनो अंधे कैसे ? औरतों के पतिप्रेम और त्याग की भावना को देखते हुए कारण बताया जाएगा , 'गांधारी ने जब देखा कि उसके पति 'कुछ नहीं' देख सकते हैं , तो उसने भी 'कुछ नहीं' देखने के लिए आंखो पर पट्टी बांध ली।
बस इसी तरह पीढी दर पीढी एक के बाद एक कुछ गलत तथ्य जुटते चले गए होंगे, जिनपर हम आज विश्वास नहीं कर पाते। पर इसमें कुछ न कुछ वास्तविकता होने से तो इंकार नहीं किया जा सकता है।