'ज्योतिष दिवस' पर विशेष
वैसे तो कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठन 20-21-22 मार्च में से किसी एक दिन, जिस दिन उत्तर की ओर विषुव होता है, को 'अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष दिवस' मनाते हैं, पर कुछ वर्ष पूर्व अखबार में पढने को मिला कि सरकार द्वारा इस वर्ष से नव संवत्सर को 'विश्व ज्योतिष दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। नवसंवत्सर को ज्योतिष दिवस मनाये जाने की परंपरा का हमारे ग्रंथों में उल्लेख है। माना जाता है कि इसी दिन ब्रम्हा ने सृष्टि का निर्माण किया था, प्रथम सूर्योदय के साथ प्रकाश का आविर्भाव हुआ था, काल गणना का आरम्भ हुआ था। इसलिए भारत सरकार को 'ज्योतिष दिवस' को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाना चाहिए।
जीवन के हर कमजोर संदर्भ को मजबूती देने के लिए उन्हें वर्ष के एक एक दिन निश्चित किए गए हैं तो ज्योतिष के लिए तो होने ही चाहिए। भविष्य को जानने की उत्सुकता तो सबमें होती ही है , खासकर बडे स्तर पर पहुंचे लोगों को। जीवन आपके हाथ में कभी नहीं होता , भले ही कुछ समय तक लोगों को ऐसा भ्रम होता रहता है। जिस दिन यह भ्रम टूटता है , उसी दिन से किसी अज्ञात शक्ति के प्रति लोगों का झुकाव बनने लगता है और लोग अंधविश्वास में फंसने लगते हैं। जिनका भविष्य अनिश्चित दिशा में जा रहा होता है , उनके लिए भविष्य की जानकारी फायदेमंद भी होती है। और चूंकि भविष्य को जानने की एकमात्र विधा ज्योतिष है , इसलिए जीवन में इसके महत्व को इंकार नहीं किया जा सकता। ज्योतिष ही सही जानकारी ही समाज से हर प्रकार के भ्रम का उन्मूलन कर अंधविश्वास को बढने से रोक सकती है। इसलिए इसके विकास की ओर ध्यान तो दिया ही जाना चाहिए।
बिना आधार के ज्योतिष शास्त्र इतने दिनों तक नहीं चल रहा, इसका एक वैज्ञानिक आधार है। इसके द्वारा किसी के जीवन के हर संदर्भ के बारे में सांकेतिक रूप से बात की जा सकती है, पर 'गत्यात्मक ज्योतिष' के अनुसार उनका सिर्फ गुणात्मक पहलू ही बताया जा सकता है , परिमाणात्मक पहलू बताना संभव नहीं । जातक के चारित्रिक विशेषताओं के साथ साथ हर पक्ष के सुख , दुख , महत्वाकांक्षा , कार्यक्षमता , आई क्यू के बारे मे साल , महीने और दिन तक की चर्चा करते हुए जातक की आगे बढती जीवनयात्रा को साफ साफ बताया जा सकता है। पर इस क्षेत्र में जितने ज्ञानी ज्योतिषी है, उससे अधिक व्यावसायिक बुद्धि रखनेवाले घुसकर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने वाले भी हैं।
मुझे तो ज्योतिष के विकास के मार्ग में सबसे बडी बाधा दिखती है , लोगों का पूर्वाग्रह ग्रस्त होना , चाहे वे ज्योतिषी हों या वैज्ञानिक , परंपरावादी हों या अधुनिक विचारधारा के लोग , सबने ज्योतिष को लेकर कोई न कोई भ्रम पाल रखा है। जबतक आज के वैज्ञानिक युग के अनुरूप ज्योतिष की व्याख्या नहीं की जाएगी , ज्योतिष को उपयोगी या लोकप्रिय नहीं बनाया जा सकता। विभिन्न ज्योतिष सम्मेलनों में मेरे पिताजी श्री विद्या सागर महथा जी ने ज्योतिषियों से यही कहा था।
भौतिक विज्ञान में विभिन्न प्रकार की शक्तियों का उल्लेख है , हर शक्ति का शक्तिमापक ईकाई है , उसकी माप के लिए वैज्ञानिक सूत्र हैं , उपकरण हैं , अत: ये निकश्चत सूचना प्रदान करने में कामयाब हैं , पर फलित ज्योतिष के वैज्ञानिकों से पूछा जाए कि ग्रहशक्ति की तीव्रता को मापने के लिए उनके पास कौन सा वैज्ञानिक सूत्र या उपकरण हैं , तो इस प्रश्न का उत्तर ज्योतिषि नहीं दे सकते । और जबतक ज्योतिषियों के पास ग्रहों की शक्ति और उसके प्रतिफलन काल का एक प्रामाणिक सूत्र नहीं होगा , लोग इसे अनुमान मानते रहेंगे , अंधविश्वास मानते रहेंगे।
उन्होने कहा था कि इक्कीसवीं सदी कंप्यूटर की होगी , इसकी बहुआयामी विशेषताएं तो जगजाहिर हैं , पर इसकी एक विशेषता यह भी होगी कि नकली और अव्यवस्थित नियमों की पोल बहुत आसानी से उद्घाटित कर सकता है। ग्रहों की शक्ति के दस बीस नियमों ,कई दशा पद्धतियों के साथ ही साथ गोचर के आधार पर भविष्यवाणी करने में कंप्यूटर भी समर्थ नहीं हो सकते। क्योंकि आम ज्योतिषी तो अनुमान का सहारा ले सकता है , पर एक कंप्यूटर नहीं लेगा ,हमें उसे सशक्त आधार देना ही होगा।
ज्योतिष को उसकी कमजोरियों से छुटकारा दिलाने के लिए पूरे जीवन किए गए प्रयास के बाद समझ में आ ही गया कि ग्रहों की सारी शक्ति उसकी गति में है। उन्होंने गत्यात्मक ज्योतिष के अद्भुत सूत्र दिए। हमें बंदूक की एक छोटी सी गोली में शक्ति दिखाई पउती है , एक पत्थर का टुकडा लेकर हम अपने को बलवान समझते हैं , क्योंकि इन्हें गति देकर इनसे शक्ति उत्सर्जित करवाया जा सकता है। पर जब ग्रहों की शक्ति ढूंढने की बारी आती है तो ज्योतिषी उनकी गति पर ध्यान न देकर स्थिति पर होता है। इसके बाद इन्होने ग्रहों की शक्ति के लिए सूत्र का प्रतिपादन कर पूरे देश के ज्योतिषियों को ज्योतिष के वास्तविक स्वरूप को समझाया और कुंडली देखने का तरीका बताया ।
शरीर ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है और इसमें मौजूद ग्रंथियां ग्रहों के हिसाब से चलती हैं। इसलिए व्यक्ति के जीवन को निर्धारित करने में ग्रहों का हाथ है ,और इसे ज्योतिष के माध्यम से ही समझा जा सकता है। ज्योतिष को विकसित बनाने के लिए जहां एक ओर ज्योतिषियों को इसकी समस्त कमजोरियों को समझकर इसे सुलझाने की जरूरत है ,वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिकों को भी इसमें निहित सत्य को समझने की आवश्यकता है। तभी ज्योतिष का विकास हो सकता है , अन्यथा कितने 'ज्योतिष दिवस' आते जाते रहेंगे , न ज्योतिष और न ही ज्योतिषी को सम्मान मिलेगा। समाज उन्हें अंधविश्वासी न समझे , इसलिए भीड में लोग ज्योतिषी से बात करने से भी कतराते रहेंगे।