Rahu ketu ke upay
जब भी किसी की कुंडली में बुरे ग्रहों के प्रभाव की चर्चा होती है तो मंगल और शनि के साथ ही साथ राहू और केतु का नाम भी आना स्वाभाविक होता है। यह अचरज की ही बात है कि मंगल और शनि जैसे भीमकाय ग्रहों और राहू केतु जैसे अस्त्तिवहीन ग्रहों के प्रभाव को परंपरागत ज्योतिष एक ही रूप में कैसे देखता आया है ? इस विराट ब्रह्मांड में पृथ्वी को स्थिर रखने पर सूर्य का बन रहा काल्पनिक पथ और सूर्य की परिक्रमा करता चंद्रमा का पथ दोनो ही राहू और केतु नाम के इन दो संपात विंदूओं पर एक दूसरे को काटते हैं ।
गत्यात्मक ज्योतिष की माने तो सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के दिन सूर्य , पृथ्वी और चंद्रमा के साथ ही साथ ये दोनो विंदू भी एक ही सीध में आ जाते हैं। हो सकता है , जब यह खोज नहीं हुई हो कि एक पिंड की छाया दूसरे पर पडने से सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण होता है , तब सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण में इन दोनो संपात विंदुओं की ही भूमिका को मान लिया गया हो और इन्हें इतना महत्वपूर्ण दर्जा दे दिया गया हो।
पर भौतिक विज्ञान में विद्युत चुंबकीय या गुरूत्वाकर्षण या फिर कोई और शक्ति क्यों न हो , किसी की भी उत्पत्ति पदार्थ के बिना संभव नहीं है और हमलोग ग्रह की जिस भी उर्जा से प्रभावित हों , राहू और केतु उनमें से किसी का भी उत्सर्जन नहीं कर पाते , इसलिए राहू और केतु से प्रभावित होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। अपने 40 वर्षीय अध्ययन मनन में ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ ने सूर्य , चंद्रमा और अन्य ग्रहों की भिन्न भिन्न स्थिति के अनुसार उनकी शक्ति को पृथ्वी के जड चेतन पर महसूस किया है , पर राहू और केतु की विभिन्न स्थिति से जातक पर कोई प्रभाव नहीं देखा , इसलिए ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ में इसकी चर्चा नहीं की गयी है।
राहू और केतु को छोडकर इनकी जगह यूरेनस , नेप्च्यून और प्लूटो के आंशिक प्रभाव को देखते हुए इसे अवश्य शामिल किया गया है। इस प्रकार गत्यात्मक ज्योतिष के अनुसार हमें प्रभावित करनेवाले ग्रहों की कुल संख्या नौ की जगह दस हो गयी है , जो इस प्रकार हैं ...... चंद्र , बुध , मंगल , शुक्र , सूर्य , बृहस्पति , शनि , यूरेनस , नेप्च्यून एवं प्लूटो। 'गत्यात्मक जन्मकुंडली' में राहु और केतु नहीं होते हैं, मनुष्य पर इनके प्रभाव की बात ही नहीं, तो फिर उपाय की बात तो हो ही नहीं सकती।