समय कितना हो रहा है
भविष्य को समझने के लिए आसमान की ओर नजर क्यों डालनी पड़ती है ?
जब हम अपनी आंखें बंद रखते हैं , तो हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता। कुछ भी देखने के लिए सबसे पहले हमें अपनी आंखे खुली रखनी पडती है। यदि हमें बाएं देखना हो तो हम अपनी आंखें बाईं ओर घुमाते हैं। दाएं देखने के लिए दाईं ओर पीछे देखने के लिए पीछे की ओर । हम सामने चलते हैं तो हमारी नजर सामने की ओर होती है। सीढी में चढते समय हमारी आंखे ऊपर की ओर तथा उतरते वक्त नीचे की ओर देखती है। इस तरह हमें वर्तमान में जो भी देखने की जरूरत होती है , आंखों को उधर घुमाकर अपनी जरूरत पूरी करते हैं।
हम जितनी दूर तक देख सकते हैं , अपनी निगाहों को उतनी दूर दौडाते हैं। यदि हमें वो जगह नहीं दिखाई पड रही हो तो हम ऊंचाई पर जाकर देखते हैं । यह पुष्टि होती है कि ऊंचाई से हम अधिक देख सकते हैं। पर आपने कभी सोंचा है , हम अपनी किस जरूरत के लिए आसमान को देखते हैं ? आज तो विज्ञान ने बहुत उन्नति कर ली है , तरह तरह के साधन बहुत कुछ समझने के लिए है। पर हमारे पूर्वजों के सामने कोई साधन न था। हमारे पूर्वज वर्तमान से आगे के भविष्य को जानने के लिए आसमान की ओर देखा करते।
आसमान में बिखरा हुआ धूल आंधी , पानी और तूफान के आने की सूचना देता है , और धूएं से जानकारी मिलती है कि निकट कहीं आग लग गयी है। इसलिए वे आसमान को देखा करते थे। पतंग उडाने के बहाने ऊंचाई में देखने से हमें हवा बहने की दिशा का अंदाजा मिलता रहा। अन्य महीनों में आंगन या धर्मस्थलों में एक लंबे बांस में लगाया गया झंडा इसमें काम आता।
उन्हें कपडे, अनाज या किसी अन्य वस्तु को सुखाने के लिए धूप की आवश्यकता होती , तो तत्काल तो धूप दिखाई देता, पर इस धूप का ठहराव कितनी देर रहेगा, इसे समझने के लिए आसमान में सूरज की स्थिति पर गौर करना पडता था। सूरज की स्थिति आसमान में कहां पर है, अब अस्त तो नहीं होने वाला, इसे बादलों ने ढंक तो नहीं रखा, पूरे तेज में है या नहीं सूरज, देखकर ही कार्यक्रम बनाते।
उनके खेत के पौधे सूख रहे होते, एक दो दिन में बारिश न हुई तो अनर्थ हो जाएगा, वैकल्पिक व्यवस्था खर्चीली थी, वे आसमान में बादलों का जमावडा देखकर बारिश की उम्मीद कर लेते और उनकी आंखों में चमक आ जाती। उल्टी स्थिति में तकलीफ होती। दिन में सूरज की स्थिति और रात में चांद और नक्षत्रों से ही वे समय का अनुमान कर पाते थे। उन्होने आसमान के चांद के घटते बढते स्वरूप पर ध्यान दिया और सीख गए कि कब रात में कितनी देर अंधेरा रहेगा और कब रातभर चांदनी बिखरी रहेगी।
वे यात्रा में होते तो शाम को आसमान में सूरज और चांद के अस्त होने की स्थिति को देखकर ही अपने कार्यक्रम बनाते। उगते और डूबते हुए सूरज , चांद , सितारे उन्हें समय और दिशा का ज्ञान कराते। नदी या समुद्र मार्ग की यात्रा करने वाले लोगों को हवा की दिशा जानने की जरूरत पडती थी। सूर्य, चंद्र, सितारे बहुत मदद करते। सूर्य की गति ने ही उन्हें 24 घंटे का दिन रात और 365 दिनों के वर्ष की जानकारी दी। सूरज के रास्ते उत्तरायण और दक्षिणायन को देखकर ही उन्हें मौसम के बारे में समझ में आता।
और आसमान को देखने के क्रम में, किसी खास ग्रह-स्थिति में एक तरह की घटना के उपस्थित हो जाने से ही उन्हें जानकारी मिली कि ग्रह-गतियों का धरती के जड़-चेतन पर प्रभाव है, जिसके क्रमबद्ध विकास के लिए ज्योतिष जैसे विषय को स्थापित किया गया। आसमान को देखने , समझने या ग्रह नक्षत्रों में मेरे ध्यान देने की कहानी कब से शुरू हुई , पूरा याद नहीं। पर एक पुरानी घटना मुझे अक्सर याद आ जाती है। मेरे छत के उपर की मंजिल तैयार ही हुई थी । हमलोगों को छत के दो कमरे मिल गए थे।
संयुक्त परिवार होने से मम्मी नीचे रसोई में बहुत व्यस्त रहा करती। 12 या 13 वर्ष की उम्र में ही बडी बहन होने के नाते छोटे सभी भाई बहनों की जिम्मेदारी मुझपर ही आ गयी थी। उन्हें मैं अक्सर छत पर ही संभाला करती थी।एक दिन अपने साथ ही साथ सब भाई बहनों को कमरे के आगे के चौडे बरामदे पर होमवर्क देकर पढने बैठाया तो मेरी नजर चांद पर पडी। पूर्णिमा का चांद पूरी छटा बिखेरता ठीक सामने पूरब दिशा में उदित हो रहा था।
दूसरे दिन पापाजी ने शाम बहुत देर तक पढाई शुरू न करने का कारण पूछा। मैने उन्हें जानकारी दी कि मै कल के समय यानि चांद निकलने के बाद ही पढाई शुरू करूंगी। तब पापाजी ने समझाया कि चांद हर दिन पहले दिन की तुलना में 52 मिनट बाद निकलता है। इसका कारण पूछने पर उन्होने बताया कि प्रतिदिन सूर्य और चंद्रमा के मध्य अंतर बढता जाता है। इसके कारण सूर्यास्त के बाद चंद्रमा के देर से होते जाने वाले उदय के समय में भी अंतर आता है।
उसी दिन ही मैने सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के घटने के बारे में भी आकाश के चित्रों से जानकारी प्राप्त कर ली थी। किताबों और स्कूलों में पढाए जाने के बाद भी तबतक ग्रहण की घटनाएं समझ नहीं सकी थी। 1984 में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की परीक्षा पास करने के बाद व्याख्याता के रूप में महत्वपूर्ण पद प्राप्त करने का लालच भी न रहा।
पापाजी के ज्योतिष की नयी खोज 'गत्यात्मक ज्योतिष' के सूत्रों को समझते हुए आसमान को देखदेखकर किताबी ज्ञान के साथ नहीं, वरन व्यावहारिक तौर पर आसमान में मौजूद ग्रह उपग्रहों , नक्षत्र और सितारों के रहस्य और उनका एक-एक व्यक्ति पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने का सिलसिला ही चल पडा।
नियमित तौर पर 56 वर्षों के पापाजी के अध्ययन और 36 वर्षों के अपने अध्ययन के साथ 10-20 वर्षों से कई भाई-बहनो की भी गत्यात्मक ज्योतिष में रूचि बनी है। उनका अनुभव भी इसे प्रामाणिक बनता जा रहा है। हमारे लिए स्पष्ट हो गया है कि ज्योतिष किसी की चारित्रिक विशेषताओं और भविष्य को समझने का एक स्पष्ट विज्ञान है। हर विषय में ज्योतिष यानि ग्रहों के प्रभाव को को जोड़ा जा सकता है, जिससे संभाव्यता को पुष्ट करने में मदद मिलेगी। यानी ज्योतिष के असीमित आयाम हो सकते हैं। बस हमें ज्योतिष के अंधविस्वास को छोड़कर ज्योतिष के विज्ञान को समझने की आवश्यकता है।