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कुछ अनजान लोगों को मैं अपने प्रोफेशन ज्योतिष के बारे में बताती हूं , तो एक महिला के ज्योतिषी होने पर उन्हें आश्चर्य होता है। क्यूंकि उनकी जानकारी में एक ज्योतिषी और गांव के पंडित में कोई अंतर नहीं है , जो उनके बच्चों की जन्मकुंडली बनाता है , विभिन्न प्रकार के शुभ कार्यों के लिए मुहूर्त्त देखता है , घर में पूजा पाठ करता है , विवाह के लिए जन्मकुंडली मिलान करता है , लग्न निकालता है , कोई सामान खोने पर उसकी वापसी की दिशा बताता है। उसके पास एक पंचांग होता है , जिसमें हर काम के उपयुक्त तिथि और कर्मकांड की विधियां दी हुई है। पर चूंकि जनसामान्य को इन बातों की जानकारी नहीं है , इसलिए पंडित लोगों के लिए ज्ञानी है, उनसे पूछे बिना कोई काम नहीं करते। कभी किसी महिला की इस पेशे में उपस्थिति नहीं देखी , इसलिए उनका आश्चर्यित होना स्वाभाविक है।
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हमारे गांव में ज्योतिषीय सलाह लेने दूर दूर से लोग पापाजी के पास आया करते। पापाजी की अंधभक्तों से कभी नहीं बनी , चाहे वो परंपरा के हों या विज्ञान के। प्रारंभ से अबतक वे तार्किक बुद्धिजीवी वर्ग से ही ग्रहों के स्वभाव और उसके अनुसार उसके प्रभाव की विवेचना करते रहें। उनकी लोकप्रियता में कमी का यही एक बडा कारण रहा। पर घर के बाहर हमेशा गाडी खडी होने से गांव के लोगों को बडा आश्चर्य होता। धीरे धीरे लोगों को मालूम हुआ कि ये पंडित है , इसलिए लोग इनके पास आया करते हैं। फिर तो गांव वाले लोग भी अपनी समस्याएं लेकर आने लगे। किसी की बकरी खो गयी है , किसी का बेटा चला गया है , कोई व्रत करे तो किस दिन , कोई विवाह करे तो किससे और कौन से दिन ??
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गांव के किसी भी व्यक्ति को पापाजी 'ना' नहीं कह सकते थे , पर उनके पीछे इतना समय देने से उनके अध्ययन मनन में दिक्कत आ सकती थी। हम सभी भाई बहन भी ऊंची कक्षाओं में पढ रहे थे , किसी को भी उन्हें समय देने की फुर्सत नहीं थी। ग्रहों नक्षत्रों की स्थिति को देखने के लिए जो पंचांग पापाजी उपयोग में लाते , उसी में सबकुछ लिखा होता , पापाजी ने आठ वर्षीय छोटे भाई को पंचांग देखना सिखला दिया था।
दो चार वर्षों तक मेरा छोटा भाई ही इनकी समस्याओं को सुलझाता रहा , क्यूंकि इसमें किसी प्रकार की भविष्यवाणी नहीं करनी पडती थी। हजारो वर्ष पूर्व जिस आधार पर पंचांग बनाए जाते थे, जिस आधार पर शकुन , मुहूर्त्त , दिशा ज्ञान आदि होता था, आजतक उसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया है , इसमें कितनी सच्चाई और कितना झूठ है, इसकी भी कभी जांच नहीं की गयी है। अंधभक्ति में लोग कई बातों को आजतक सत्य मानते आ रहे हैं , आठ वर्ष के बच्चे की बातों को भी सत्य समझते रहें।
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प्राचीन काल में गांव के पंडितों का संबंध सिर्फ कर्मकांड से था, क्रमश: बालक के जन्म का रिकार्ड रखने के लिए जन्मकुंडली बनाने का काम भी उन्हें सौंप दिया गया। पर ज्योतिषीय गणना का काम और किसी प्रकार की भविष्यवाणी तो ऋषि मुनियों के अधीन था। हां उन्होने कुछ पुस्तके जरूर लिखकर इन पंडितों को दी , जिनके आधार पर बालक की जन्मकुंडली बनाने के बाद बच्चे के आनेवाले जीवन के बारे में कुछ बातें लिखी जा सकती थी।
पर समय सापेक्ष भविष्यवाणी करने के लिए बडे स्तर पर गाणितिक अध्ययन मनन की आवश्यकता होती है , जिसकी परंपरा भारतवर्ष में उन ऋषि मुनियों के बाद समाप्त हो गयी। यही कारण है कि आज तक समाज में ज्योतिष और कर्मकांड को एक ही चीज समझा जाता है , दोनो को हेय नजर से देखा जाता है।
उस समय से लोगों के मन में जो भ्रम बना, वो अभी तक दूर नहीं हो पा रहा है। एक ज्योतिषी के रूप में मुझे समझने के बाद जन्मकुंडली बनवाने, मुहूर्त्त देखने, जन्मकुंडली मिलाने तथा अन्य कर्मकांडों की जानकारी के लिए मेरे पास लोग फोन किया करते हैं। कुछ लोग पूछते हैं कि बिना संस्कृत के आप ज्योतिष का काम कैसे कर सकती है ?
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भले ही हर ज्ञान विज्ञान किसी न किसी रूप में एक दूसरे से सहसंबंध बनाते हों, पर लोगों को यह जानकारी होनी चाहिए कि कर्मकांड और ज्योतिष में फर्क है। दोनो के विशेषज्ञ अलग होते हैं , सामान्य तौर पर कोई जानकारी भले ही दूसरे विषय की दी जा सकती है , पर विशेष जानकारी के लिए लोग को संबंधित विषय के विशेष जानकारी रखने वालों से ही संपर्क करना उचित है।
मैं ग्रहों के पृथ्वी के जड चेतन पर पडनेवाले प्रभाव का अध्ययन करती हूं और उसी आधार पर व्यक्ति के जीवन में घटनेवाली या पृथ्वी में होनेवाली घटनाओं का समय से पूर्व आकलन करती हूं। काफी दिनों से ब्लॉग लिखने के कारण हमारे क्लाइंट्स देश-विदेश के विभिन्न शहरों में हैं, इसलिए हमारा काम ऑनलाइन ही अधिक होता आया है।