चन्द्रमा कमजोर होने के लक्षण
facts about moon in hindi
२००९ की बात है, मेरे चाचाजी के लडके ने रविवार को मुझे सूचना दी कि पिछले तीन चार दिनों से उसकी पत्नी का तेज बुखार बिल्कुल ही नहीं उतर रहा और वह बहुत कमजोर हो गयी है। वह बोकारो के किसी अच्छे डाक्टर से अपनी पत्नी को दिखाना चाहता है। मैने उसे यहां ले आने को कहा , वह आठ महीने की गर्भवती थी , पहले से ही थोडी कमजोर थी ही , कई दिनों के बुखार ने उसके शरीर को और तोड दिया था। रविवार के दिन यहां के अधिकांश डाक्टर आराम करने के मूड में होते हें , इसलिए अपने मनचाहे नर्सिंग होम में न डालकर उसे दूसरे नर्सिंग होम में एडमिट करना पडा।
रविवार से ही चेकअप आरंभ हुआ , बुखार की दवा तो पहले से चल ही रही थी ,उसे काम न करते देख थोडी कडी दवा शुरू की गयी। कमजोरी को देखते हुए तुरंत पानी चढाना आरंभ किया गया , विभिन्न प्रकार के टेस्ट के लिए खून के सैम्पल लिए गए। दो तीन दिन बीतने के बाद भी न तो बीमारी समझ में आ रही थी और न ही बुखार उतर रहा था। होमोग्लोबीन कम होता जा रहा था , खून चढाने की जरूरत थी , पर बुखार की स्थिति में खून भी चढा पाने में दिक्कत हो रही थी। उच्चस्तरीय टेस्ट के लिए फिर से सैम्पल भेजे गए थे , अनुमान से मलेरिया की दवा शुरू कर दी गयी थी। दवाओं के असर से उस रात्रि तबियत और बिगड गयी। इतनी भयावह स्थिति में डाक्टर तो थोडे परेशान थे ही , हमलोग भी काफी तनाव से गुजर रहे थे। उस अस्पताल और डाक्टरों के प्रति भी हमारा विश्वास डिगता जा रहा था।
गत्यात्मक ज्योतिष के बारे में
सबको परेशान देखकर मैने अपनी गणना शुरू की तो पाया कि अगले दिन आसमान में चंद्रमा कमजोर रहने के लक्षण है, क्योंकि आज अमावस का दिन है , यदि इसके प्रभाव से समस्या आ रही है तो 23 से स्थिति में सुधार आ जानी चाहिए। और सचमुच 23 जुलाई को रिपोर्ट में मलेरिया की पुष्टि होने से राहत मिली , दो दिनों से चल रही सही दवा के असर से बुखार भी कम हो गया , खून भी चढा दी गयी और आज स्थिति पूर्ण रूप से नियंत्रण में है , हो सकता है एक दो दिनों में अस्पताल से छुट्टी भी मिल जाए। यह घटना मै आत्म प्रशंसा के लिए नहीं सुना रही , इस उदाहरण के द्वारा मै पाठकों को एक जानकारी प्रदान करना चाह रही हूं।
पूर्णिमा और अमावस्या के दिन समुद्र में आनेवाले ज्वारभाटे से चंद्रमा के पृथ्वी पर प्रभाव की पुष्टि तो हो ही जाती है , भले ही वैज्ञानिक इसका कोई अन्य कारण बताएं। पर चंद्रमा के अन्य रूप में पडने वाले प्रभाव को भी महसूस किया जा सकता है। पूरी दुनिया की बात तो नहीं कह सकती , पर हमारे गांव में चतुदर्शी और अमावस्या की यात्रा को बुरा माना जाता है। हालांकि आज समझ की कमी से लोग अमावस्या और पूर्णिमा दोनो के पहले की चतुदर्शी को यात्रा के लिए बुरा मान लेते हैं , पर मैं समझती हूं कि पूर्वजों ने अमावस्या के पहले की चतुदर्शी और अमावस्या के बारे में ही ये बातें कही होंगी। वैसे तो इन दिनों को शाम में ही गहरा अंधेरा हो जाना भी इसकी एक वजह मानी जा सकती है , पर एक दूसरी वजह ग्रहों का ज्योतिषीय प्रभाव भी है।
चूंकि पुराने जमाने में साधनों की कमी थी , यात्रा कुशल मंगल से व्यतीत होना कठिन होता रहा होगा , इस कारण उनलोगों ने इसपर ध्यान दिया होगा और चतुदर्शी या अमावस्या की यात्रा को कठिन पाया होगा। हमने अपने अध्ययन में पाया है कि सिर्फ यात्रा के लिए ही नहीं , छोटा चांद बहुत मामलों में कष्टदायक होता है। उस वक्त जो भी समस्या चल रही होती है , वह बढकर व्यक्ति के मानसिक तनाव को चरम सीमा तक पहुंचा देती है। अमावस्या के ठीक दूसरे या तीसरे दिन हमें काफी राहत मिल जाती है ।
‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के अनुसार पूर्णिमा के आसपास मन का प्रतीक ग्रह चंद्रमा मजबूत होता है , इस कारण काम आपके मनोनुकूल ढंग से होता है , जबकि अमावस्या के आसपास के दिनों में मन का प्रतीक ग्रह चंद्रमा बिल्कुल कमजोर होता है , इस कारण मनोनुकूल काम होने में बाधा उपस्थित होती है। आप अपने जीवन में दो तरह के काम करते हैं ... कुछ प्रतिदिन के रूटीन वर्क होते है , जबकि कुछ कभी कभी उपस्थित होने वाले काम होते हैं।
प्रतिदिन होनेवाले काम का हर रंग आप देखते आए हैं , इसलिए उसमें सफलता असफलता का कोई खास महत्व नहीं , भले ही इन दिनों के चंद्रमा की स्थिति के अनुरूप ही उसका भी वातावरण हो। पर कभी कभी होनेवाले काम कुछ नए ढंग के होते हैं , माहौल नया होता है , इसलिए मनोनुकूल काम न होने से दिक्कत आती है और होने से आनंद आता है, जैसे किसी के यहां घूमने फिरने का कार्यक्रम , बाजार में खरीदारी या किसी तरह की मीटिंग वगैरह . facts about moon in hindi